Haridwar Kumbh Mela 2021: कुंभ की दिव्यता के दर्शन कराते हैं अखाड़े, जानिए कब और कैसे शुरू हुए ये अखाड़े
Haridwar Kumbh Mela 2021 कुंभ और अखाड़े एक-दूसरे के पर्याय हैं। अखाड़े कुंभ को भव्यता ही नहीं संपूर्णता भी प्रदान करते हैं। कुंभ का होना भले ही खगोलीय गणना पर निर्भर हो लेकिन व्यवहार में कुंभ की शुरुआत कुंभनगर में अखाड़ों के प्रवेश के साथ ही होती है।
दिनेश कुकरेती, देहरादून। Haridwar Kumbh Mela 2021 कुंभ और अखाड़े एक-दूसरे के पर्याय हैं। अखाड़े कुंभ को भव्यता ही नहीं, संपूर्णता भी प्रदान करते हैं। कुंभ का होना भले ही खगोलीय गणना पर निर्भर हो, लेकिन व्यवहार में कुंभ की शुरुआत कुंभनगर में अखाड़ों के प्रवेश के साथ ही होती है। शैव, वैष्णव और उदासीन पंथ के 13 अखाड़ों को ही मान्यता मिली हुई है।
अखाड़ा, कुश्ती से जुड़ा हुआ शब्द है, लेकिन जहां भी दांव-पेंच की गुंजाइश होती है, वहां अमूमन इस शब्द को इस्तेमाल में लाया जाता है। पूर्व काल में आश्रमों के अखाड़ों को बेड़ा (साधुओं का समूह) कहा जाता था। तब अखाड़ा शब्द का चलन नहीं था। साधुओं के जत्थे में पीर होते थे। अखाड़ा शब्द मुगलकाल से चलन में आया। हालांकि, कुछ विद्वान अलख शब्द से अखाड़ा शब्द की उत्पत्ति मानते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि साधुओं के अक्खड़ स्वभाव के चलते ही उनके समूह को अखाड़ा नाम दिया गया होगा। लेकिन, सर्वप्रचलित मान्यता के अनुसार अखाड़ों की स्थापना का क्रम सनातनी संस्कृति के उन्नयन के लिए आदि शंकराचार्य ने शुरू किया था।
मूलत: अखाड़े साधु-संन्यासियों का वह दल हैं, जो शस्त्र विद्या में निपुण होते हैं। अखाड़ों से जुड़े साधु-संतों के मुताबिक जो शास्त्र से नहीं मानते, उन्हें शस्त्र से मनाने के लिए अखाड़ों का जन्म हुआ। व्याकरणाचार्य स्वामी दिव्येश्वरानंद कहते हैं कि एक हाथ में माला और एक हाथ में भाला वाले सिद्धांत पर अखाड़ों को शास्त्र और शस्त्र, दोनों की शिक्षा दी गई। व्यवस्था बनाई गई कि शंकराचार्य या उनके द्वारा नामित आचार्य सनातनी संस्कृति की रक्षा के लिए जब कभी इन अखाड़ों को शस्त्र उठाने का आदेश देंगे, यह अपना काम करेंगे। आजादी के आंदोलन में भी इन अखाड़ों ने अहम भूमिका निभाई। लेकिन, आजादी के बाद उन्होंने अपना सैन्य चरित्र त्याग दिया। वर्तमान में भारतीय संस्कृति एवं दर्शन के सनातनी मूल्यों का अध्ययन और अनुपालन करते हुए संयमित जीवन व्यतीत करना अखाड़ों का मुख्य ध्येय बन गया है।
हरिद्वार कुंभ में शामिल 13 अखाड़े
शैव संन्यासी संप्रदाय के अखाड़े
- श्री पंचदशनाम आह्वान अखाड़ा
- श्री पंच अटल अखाड़ा
- श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी
- श्री पंचायती तपोनिधि आनंद अखाड़ा
- श्री पंचायती तपोनिधि निरंजनी अखाड़ा
- श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा
- श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा
उदासीन संप्रदाय के अखाड़े
- श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन
- श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन
- श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल
बैरागी वैष्णव संप्रदाय के अखाड़े
- श्रीपंच निर्वाणी अणि अखाड़ा
- श्रीपंच दिगंबर अणि अखाड़ा
- श्रीपंच निर्मोही अणि अखाड़ा
तंबुओं का शहर
प्रत्येक कुंभ में छोटे बड़े सभी अखाड़े अपना तंबू लगाते हैं। इसीलिए कुंभ को तंबुओं का शहर कहा जाता है। पहले अखाड़े साधारण तंबू लगाते थे और साधु रेती पर धुनी जमाते थे। लेकिन, अब में अखाड़े शानदार सुविधा संपन्न तंबू लगाते हैं। भूमि पूजन के साथ ही सभी अखाड़े रहने की व्यवस्था में जुट जाते हैं। अखाड़ों में निश्शुल्क भोजन का भी वितरण किया जाता है।
संन्यासी अखाड़ों का स्थापना क्रम
शास्त्रों के अनुसार 660 ईस्वी में सर्वप्रथम आह्वान अखाड़ा की स्थापना हुई। इसके बाद 760 ईस्वी में अटल, 862 ईस्वी में महानिर्वाणी, 969 ईस्वी में आनंद, 1017 ईस्वी में निरंजनी, 1136 में पंच अग्नि और 1259 ईस्वी में जूना अखाड़ा अस्तित्व में आया। जबकि, वर्ष 1954 में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का गठन हुआ।
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