कोपभवन में हरक, सियासत में हलचल
उत्तराखंड भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद वन एवं पर्यावरण तथा श्रम सेवायोजन मंत्री हरक सिंह रावत की नाराजगी कम होती नजर नहीं आ रही है। हालांकि तल्ख तेवरों का प्रदर्शन वह पहले भी करते रहे हैं।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। उत्तराखंड भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद वन एवं पर्यावरण तथा श्रम सेवायोजन मंत्री हरक सिंह रावत की नाराजगी कम होती नजर नहीं आ रही है। हालांकि तल्ख तेवरों का प्रदर्शन वह पहले भी करते रहे हैं, लेकिन इस बार जिस तरह वह मुख्यमंत्री का सामना करने से गुरेज करते रहे, उसके कई निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। हालांकि अब गुरुवार को हरक सिंह रावत, मुख्यमंत्री से मुलाकात करेंगे।
कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत को तेज तर्रार नेताओं में शुमार किया जाता है। कांग्रेस में रहें हों या अब भाजपा में, वह कभी भी अपनी बात सार्वजनिक करने का मौका नहीं चूके। वर्ष 2012 में, जब उत्तराखंड में विजय बहुगुणा के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी, तब हरक सिंह रावत भी कैबिनेट मंत्री बने। वर्ष 2014 की शुरुआत में कांग्रेस आलाकमान ने बहुगुणा को पद से हटाकर हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया, उस समय रावत मंत्रिमंडल का भी हरक हिस्सा रहे। हरक को विजय बहुगुणा का करीबी माना जाता है। यही वजह रही कि मार्च 2016 में जब विजय बहुगुणा के नेतृत्व में नौ कांग्रेस विधायकों ने पार्टी छोड़ भाजपा का दामन थाम हरीश रावत सरकार को संकट में डाला, इस घटनाक्रम में हरक की महत्वपूर्ण भूमिका थी। दरअसल, उनकी पटरी तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के साथ बिल्कुल नहीं बैठी, तो वह पार्टी में विभाजन कराने जैसा बड़ा कदम उठाने से भी पीछे नहीं हटे।
कांग्रेस से भाजपा में आने के बाद हरक सिंह भाजपा से चुनाव लड़े और जीत कर कैबिनेट मंत्री बने। उन्हें वन एवं पर्यावरण के साथ ही श्रम सेवायोजन और आयुष मंत्रालय का जिम्मा दिया गया। कुछ समय पहले उन्हें वन विभाग के अफसरों की कार्यशैली रास नहीं आई तो उन्होंने अपनी नाराजगी को खुलकर जाहिर किया।हालिया मामला भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष पद से हटाए जाने का है। सरकार ने हाल में हरक सिंह रावत को इस पद से हटाते हुए शमशेर सिंह सत्याल को बोर्ड के अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी। यह बात उन्हें नागवार गुजरी। पहले उनकी ओर से इस संबंध में मुख्यमंत्री से बातचीत के बाद ही कोई प्रतिक्रिया देने की बात कही गई।
हरक अपने मंत्रालयों के उन कार्यक्रमों में भी शामिल नहीं हुए, जिनमें मुख्यमंत्री मौजूद थे। मुख्यमंत्री से मुलाकात करने की बजाए नाराज हरक अपने चुनाव क्षेत्र कोटद्वार चले गए और बुधवार को वापस देहरादून लौटे। उनका फोन भी पिछले कई दिनों से स्विच ऑफ है। हालांकि हरक ने कुछ दिन पहले कहा था कि वह स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं, लिहाजा फोन बंद किया, लेकिन महत्वपूर्ण सवाल यह है कि कैसे कैबिनेट का एक वरिष्ठ सदस्य इस तरह तमाम जिम्मेदारियों से स्वयं को अलग रख सकता है। इस बीच डॉ. रावत ने एक बयान दिया कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने उनसे फोन पर संपर्क साधा था, मगर बात नहीं हो पाई। ऐसे में यह भी साफ हो गया कि यह मामला भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के संज्ञान में भी है।
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मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि पहले मैं दो दिन के लिए कुमाऊं के दौरे पर चला गया और फिर स्वयं हरक सिंह रावत के कोटद्वार जाने के कारण मुलाकात नहीं हो पाई। अब हरक सिंह रावत ने गुरुवार को मुलाकात का समय मांगा है। गुरुवार को वह मुलाकात के लिए आएंगे।
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