Move to Jagran APP

उत्तराखंड में पार्टी अध्यक्ष के साथ चार-चार कार्यकारी अध्यक्ष- कांग्रेस के लिए जरूरी या मजबूरी ?

उत्तराखंड कांग्रेस के अध्यक्ष बने हैं गणेश गोदियाल चुनाव प्रचार समिति की बागडोर संभालेंगे पूर्व सीएम हरीश रावत और प्रीतम सिंह को बनाया गया है विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष। यानि प्रदेश अध्यक्ष के साथ चार- चार कार्यकारी अध्यक्ष।

By Shashank PandeyEdited By: Published: Wed, 04 Aug 2021 11:11 AM (IST)Updated: Wed, 04 Aug 2021 08:34 PM (IST)
उत्तराखंड में पार्टी अध्यक्ष के साथ चार-चार कार्यकारी अध्यक्ष- कांग्रेस के लिए जरूरी या मजबूरी ?
तो क्या काम करेगा कांग्रेस में चार-चार कार्यकारी अध्यक्ष का फार्मूला!(फोटो: फाइल)

कुशल कोठियाल। पंजाब कांग्रेस की सांगठनिक समस्या का हल निकालने में अहम भूमिका निभाने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय महामंत्री एवं उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (हरदा) पर पंजाब का ऐसा रंग चढ़ा कि उन्होंने गृह राज्य (उत्तराखंड) में भी नए अध्यक्ष को चार-चार कार्यकारी अध्यक्षों से लदवा दिया। साथ में दस प्रांतीय प्रवक्ता भी नियुक्त किए गए हैं। यह जरूरत थी या मजबूरी, कांग्रेस में भी विमर्श का बिंदु बना हुआ है।

loksabha election banner

कांग्रेस ने उत्तराखंड में भी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सांगठनिक फेरबदल को अंजाम दिया है। गणोश गोदियाल ने शक्ति प्रदर्शन के साथ प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व संभाल लिया और पिछले चार वर्षो तक इस पद पर रहे प्रीतम सिंह ने विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद से समझौता कर लिया है। इसके साथ ही जीत राम, भुवन कापड़ी, तिलक राज बेहड़ और रंजीत रावत ने भी कार्यकारी अध्यक्ष की कुर्सी संभाल ली है। पूरी कसरत के पीछे खड़े हरीश रावत को हाईकमान ने तीन सदस्यीय प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया है। जाहिर है चुनाव अभियान की कमान रावत के पास ही रहेगी। प्रदेश अध्यक्ष उनका अपना होने के कारण टिकटों के बंटवारे से लेकर अन्य महत्वपूर्ण निर्णयों में उनकी भूमिका निर्णायक ही होगी।

अब राज्य के राजनीतिक पंडित इस बात को लेकर सिर धुन रहे हैं कि छोटे से राज्य में युवा व सक्रिय प्रदेश अध्यक्ष को संगठन चलाने के लिए चार-चार कार्यकारी अध्यक्ष की जरूरत क्यों आन पड़ी? यह जरूरत थी या मजबूरी। पंजाब में कांग्रेस की गुत्थी सुलझाते-सुलझाते हरीश रावत यहां भी वही क्यों करवा बैठे जो पंजाब में किया? खास तौर पर जबकि प्रदेश में कांग्रेस के पास पहले से ही 260 सदस्यीय जम्बो कार्यकारिणी मौजूद है। इस बेड़े में 31 महामंत्री, 22 उपाध्यक्ष और 79 प्रदेश सचिव मौजूद हैं। हालांकि यह सीधे-सीधे कांग्रेस का आंतरिक मामला है और पार्टी चाहे तो कितने भी कार्यकारी अध्यक्ष बना सकती है, लेकिन इस सांगठनिक अधिकार पर क्यों लगाने वाले भी तो कांग्रेस के ही हैं और उनके भी अपने अधिकार हैं। पहला प्रश्न तो यह उठाया जा रहा है कि जब कांग्रेस को सात माह बाद राज्य में चुनाव में उतरना है तो चार साल से चले आ रहे अध्यक्ष को बदलने की जरूरत ही क्यों पड़ी? कांग्रेस उन्हें अध्यक्ष के रूप में चला कर अब तक गलती कर रही थी या अब गलती कर रही है? कांग्रेस के धड़े अपनी-अपनी सुविधा के हिसाब से इसका उत्तर चुन रहे हैं। कुछ कांग्रेसी तो यह भी दावा कर रहे हैं कि प्रदेश अध्यक्ष पद पर गोदियाल को लाकर पार्टी ने भाजपा को भी अपने प्रदेश अध्यक्ष को फिर से बदलने को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है।

गौरतलब है कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक हरिद्वार से हैं व वह भी ब्राह्मण हैं। चुनाव से पहले प्रदेश में संगठन की कमान में परिवर्तन करने के दो कारण जाहिर हैं। पहला, पूर्व अध्यक्ष प्रीतम सिंह प्रदेश में हरीश रावत धड़े को सूट नहीं कर रहे थे। गोदियाल को प्रीतम के मुकाबले ज्यादा सक्रिय और वफादार समझा गया। दूसरा, पहाड़ में ब्राह्मण वोट बैंक को पार्टी फोल्ड में लाने के लिए पहाड़ के ब्राह्मण को संगठन का नेतृत्व सौंपना उचित समझा गया। कांग्रेस के इस दांव को भाजपा सरकार में बनाए गए उत्तराखंड चारधाम देवास्थानम बोर्ड एवं पंडा-पुरोहितों के खुले विरोध के संदर्भ में भी समझा जा सकता है। अब दूसरा सवाल यह है कि प्रदेश अध्यक्ष के पद पर जब सक्षम, सक्रिय और तुलना में युवा नेता को लाया गया है तो चार-चार कार्यकारी अध्यक्ष उतारने की जरूरत क्यों पड़ी? यहां जरूरत से ज्यादा मजबूरी दिखाई दे रही है। हालांकि यह पंजाब के स्तर की मजबूरी या व्यावहारिकता नहीं कही जा सकती। कांग्रेसी ही इस सच को बयां करने से गुरेज नहीं कर रहे कि राज्य में आधी कांग्रेस के भाजपा में विलय हो जाने के बाद से पार्टी अब इस स्थिति में नहीं है कि किसी को नाराज कर सके। इसी सच को चार-चार कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति का आधार माना जा रहा है।

पुराने कांग्रेसियों का भी मानना है कि पार्टी संगठन में अनुशासन जिस पायदान पर खड़ा है, उसमें यही एकमात्र हल था। इसीलिए प्रदेश में हरीश रावत के विरोधियों को भी थामे रखने की खासी कोशिशें हुई हैं। कभी उनके खास व अब मुखर विरोधी रंजीत रावत को भी कार्यकारी अध्यक्ष का ओहदा मिला है। अध्यक्ष पद से हटाए गए प्रीतम सिंह को नेता प्रतिपक्ष के ओहदे से नवाजा गया है। कोषाध्यक्ष के पद पर आर्येद्र शर्मा की नियुक्ति को भी इसी कोण से देखा जा सकता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.