Move to Jagran APP

जंगलों में फायर सीजन की उल्टी गिनती शुरू, तैयारियों में जुटा मकहमा; चुनौती बरकरार

फायर सीजन (अग्निकाल) की उल्टी गिनती शुरू होने के साथ ही राज्य में वनों को आग से बचाने के मद्देनजर महकमा तैयारियों में जुट गया है। इस राह में चुनौतियां भी कम नहीं हैं

By BhanuEdited By: Published: Thu, 06 Feb 2020 08:55 AM (IST)Updated: Thu, 06 Feb 2020 08:55 AM (IST)
जंगलों में फायर सीजन की उल्टी गिनती शुरू, तैयारियों में जुटा मकहमा; चुनौती बरकरार
जंगलों में फायर सीजन की उल्टी गिनती शुरू, तैयारियों में जुटा मकहमा; चुनौती बरकरार

देहरादून, केदार दत्त। फायर सीजन (अग्निकाल) की उल्टी गिनती शुरू होने के साथ ही राज्य में वनों को आग से बचाने के मद्देनजर महकमा तैयारियों में जुट गया है।इस राह में चुनौतियां भी कम नहीं हैं। जंगल की आग पर काबू पाने की दिशा में फायर लाइन सबसे महत्वपूर्ण है, लेकिन अभी तक करीब पांच हजार किमी फायर लाइन ही साफ हो पाई है। प्रदेशभर में फायर लाइनों की कुल लंबाई 13917.1 किलोमीटर है। 

loksabha election banner

क्या होती है फायर लाइन

वन क्षेत्रों में आग पर नियंत्रण के मद्देनजर फायर लाइन बनाई जाती हैं। यह एक प्रकार से चौड़े रास्ते हैं, जिन्हें पूरी तरह साफ रखा जाता है। वहां उगी झाड़ियों, जमा पत्तियों को फूंककर इनकी सफाई होती है। फायर लाइन साफ रहने से आग एक से दूसरे हिस्से में नहीं जा पाती। प्रतिवर्ष फायर सीजन में इन्हें साफ रखना होता है।

फायर लाइनों की सफाई चुनौती

राज्य में 13917.1 किमी लंबी फायर लाइनें हैं। इसमें 1448.94 किमी 100 फीट चौड़ी, 2451.02 किमी 50 फीट चौड़ी और 3174.56 30 फीट चौड़ी हैं। इन्हें साफ रखना बड़ी चुनौती है। मैदानी क्षेत्रों में तो सफाई में दिक्कत नहीं, लेकिन पहाड़ की विषम परिस्थितियों को देखते हुए वहां यह काम आसान नहीं है।

जल्द क्लीयर होंगी फायर लाइनें

नोडल अधिकारी (वनाग्नि) बीके गांगटे के अनुसार अभी तक मैदानी क्षेत्रों में 5000 किमी फायर लाइन क्लीयर हो चुकी हैं। पहाड़ में बर्फबारी-बारिश के मद्देनजर फायर लाइन क्लीयर करने में फिलवक्त दिक्कत है। अलबत्ता, मौसम के साथ देने पर इन्हें क्लीयर करने को युद्ध स्तर पर कदम उठाए जाएंगे।

हर साल भारी क्षति

उत्तराखंड में हर साल फायर सीजन (15 फरवरी से मानसून के आगमन तक) में बड़े पैमाने पर वन संपदा आग की भेंट चढ़ती है। वर्ष 2010 से 2019 तक के आंकड़े देखें तो इस अवधि में 19945 हेक्टेयर वन क्षेत्र तबाह हुआ। यानी औसतन प्रतिवर्ष 1994 हेक्टेयर जंगल आग से झुलस रहा है। इससे पारिस्थितिकी तंत्र को क्षति पहुंच रही है।

फिलहाल मौसम का साथ

नियमित अंतराल में बर्फबारी-बारिश से जंगलों में अच्छी-खासी नमी बनी है। ऐसे में माना जा रहा कि कुछ दिन आग के लिहाज से सुकून रहेगा। अलबत्ता, चिंता भी साल रही कि मौसम के करवट बदलने के साथ ही पारे ने उछाल भरी तो...। हालांकि, विभाग का दावा है कि किसी भी परिस्थति से निबटने को उसकी तैयारियां पूरी हैं।

ये किए गए उपाय

-40 मास्टर कंट्रोल रूम किए स्थापित 

-175 वॉच टावरों से होगी निगरानी

-1437 क्रू-स्टेशन में 24 घंटे कर्मियों की मौजूदगी

यह भी पढ़ें: उत्तराखंडः इद्रदेव की मेहरबानी से फायर सीजन में कुछ राहत की उम्मीद

बीट तक पहुंचेगी सूचना

फायर अलर्ट की सूचना बीट तक पहुंचाने के मद्देनजर वायरलेस नेटवर्क सशक्त करने का दावा है। इसके लिए 35 रिपीटर, 506 वायरलेस सेट, 1631 हैंड सेट, 199 मोबाइल सेट की तैनाती है।

यह भी पढ़ें: जंगलों की आग से ग्लेशियरों में पहुंच रहा ब्लैक कार्बन, रिपोर्ट में हुआ खुलासा


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.