अफगानिस्तान से वतन वापसी में पूर्व सैनिक निभा रहे अहम भूमिका, पढ़िए पूरी खबर
अफगानिस्तान में फंसे लोग वतन वापसी में सेना के साथ ही पूर्व सैनिक अहम भूमिका निभा रहे हैं। अब तक करीब 400 उत्तराखंडी अफगानिस्तान से अपने घर पहुंच चुके हैं। बता दें कि अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा होने के बाद से वहां तनाव का माहौल है।
जागरण संवाददाता, देहरादून। अफगानिस्तान की सत्ता में तालिबान का कब्जा होने के बाद से वहां तनाव का माहौल बना हुआ है। अफगानिस्तान में फंसे लोग वतन वापसी के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं। भारत की सरकार भी अपने नागरिकों को सकुशल वापस लाने के लिए पूरा जोर लगा रही है। बीते कुछ रोज में अफगानिस्तान से तकरीबन 400 उत्तराखंडी सकुशल अपने घर पहुंच चुके हैं। हालांकि, उनकी वतन वापसी की राह इतनी आसान नहीं रही। परिवार से दोबारा मुलाकात के लिए उन्हें कई दिन जिद्दोजहद करनी पड़ी। इस रेस्क्यू आपरेशन में सेना के साथ उत्तराखंड के पूर्व सैनिकों का भी अहम योगदान रहा।
ऐसे ही पूर्व सैनिक हैं देहरादून निवासी बाल किशन थापा, जिनका सैन्य अनुभव 22 अगस्त को भारत लौटे 89 उत्तराखंडियों समेत 200 भारतीय नागरिकों के रेस्क्यू में महत्वपूर्ण साबित हुआ। काबुल में एक कंपनी में सिक्योरिटी में तैनात रहे बाल किशन थापा ने इस रेस्क्यू में सेना, सरकार और वहां फंसे नागरिकों के बीच सेतु का काम किया। दरअसल, गोरखा रेजीमेंट में रहे बाल किशन के छोटे भाई धन बहादुर थापा भी इसी रेजीमेंट में हैं। वर्तमान में वह क्लेमेनटाउन में तैनात हैं। अफगानिस्तान में तालिबान के काबिज होने के बाद हालात बिगड़े तो 16 अगस्त को बाल किशन ने धन बहादुर से संपर्क किया। उन्हें वहां के हालात की जानकारी दी। धन बहादुर ने इसे उच्च अधिकारियों के माध्यम से उत्तराखंड सब एरिया के जीओसी मेजर जनरल संजीव खत्री तक पहुंचाया। मेजर जनरल संजीव खत्री ने तुरंत बाल किशन से संपर्क साधकर वहां फंसे देश के सभी नागरिकों की जानकारी जुटाई। इसके बाद बाल किशन थापा ने आसपास फंसे उत्तराखंडियों समेत अन्य भारतीय नागरिकों की जानकारी जुटाकर सूची तैयार की। 20 अगस्त को इसे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, गोरखा मिलिट्री के राष्ट्रीय दफ्तर समेत अन्य जगह पहुंचाया। यह सूची जब चीफ आफ डिफेंस स्टाफ के दफ्तर और रक्षा मंत्रालय पहुंची तो रेस्क्यू की प्रक्रिया में तेजी आई। नतीजतन दो दिन में ही काबुल से कजाकस्तान के रास्ते 200 भारतीय नागरिक दिल्ली पहुंच गए।
उपनल से नौकरी मिल जाती तो नहीं जाते गैर मुल्क
मेजर जनरल संजीव खत्री ने बुधवार को अफगानिस्तान से सकुशल घर पहुंच चुके पूर्व सैनिकों से संवाद किया। इस दौरान पूर्व सैनिक कमल थापा ने बताया कि उपनल में पंजीकरण करवाने के बाद दो साल तक नौकरी मिलने का इंतजार किया। जब नाम नहीं आया तो अफगानिस्तान चले गए। संवाद में शामिल अन्य पूर्व सैनिकों ने भी कहा कि अगर उन्हें यहीं पर उपनल के जरिये नौकरी मिल जाती तो अफगानिस्तान जाने की नौबत ही नहीं आती।
पूर्व सैनिकों के लिए विंग स्थापित
मेजर जनरल संजीव खत्री ने बताया कि उन्होंने पूर्व सैनिकों को नौकरी देने के लिए एक नई विंग स्थापित की है। उपनल के अलावा अब पूर्व सैनिक यहां भी पंजीकरण करा सकेंगे। यह विंग आउटसोर्स एजेंसी के तौर पर काम करेगी। अफगानिस्तान से लौटे सभी पूर्व सैनिकों से इस विंग में पंजीकरण करवाने के लिए कहा।
यह भी पढ़ें:-तालिबान के खौफ से तीन दिन तक उड़ी रही नींद, काबुल से निकले तो सताने लगा आसमान में अनहोनी का डर