शिक्षाविद होना चाहिए विश्वविद्यालय का कुलपति, चयन को गठित पैनल न हो राजनीति से प्रभावित
राज्य के विश्वविद्यालयों को तभी श्रेष्ठ कुलपति मिल सकते हैं जब चयन को लेकर गठित पैनल में अनुभवी शिक्षाविद शामिल हों और जो बिना किसी दबाव के पारदर्शी तरीके से योग्यता के आधार पर कुलपति का चयन करें।
देहरादून, जेएनएन। राज्य के विश्वविद्यालयों को तभी श्रेष्ठ कुलपति मिल सकते हैं जब चयन को लेकर गठित पैनल में अनुभवी शिक्षाविद शामिल हों और जो बिना किसी दबाव के पारदर्शी तरीके से योग्यता के आधार पर कुलपति का चयन करें। प्रदेश भर के शिक्षाविदों ने कुलपतियों के चयन को लेकर जागरण से बातचीत में खुलकर अपने विचार रखे।
उन्होंने कहा कि कुलपति व कुलसचिव के चयन को लेकर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की गाइडलाइन का अक्षरस पालन होना चाहिए। पैनल पर जब बाहरी दबाव होता है तो योग्यता पीछे रह जाती है। शिक्षाविदों का मानना है कि कुलपति नियुक्त हो जाने के बाद उस पद पर सवाल खड़े नहीं किया जाने चाहिए। इसके लिए चयन करने वाले पैनल की जवाबदेही तय होनी चाहिए। यदि कुलपति व कुलसचिव पर सवाल खड़े होते हैं या उनकी योग्यता को चुनौती दी जाती है तो इसके लिए भी पैनल जिम्मेदार होता है। प्रदेश के उच्च शिक्षण संस्थानों के प्राचार्य, निदेशक आदि ने विवि के कुलपतियों के चयन को लेकर अपनी राय रखी।
उत्तराखंड संस्कृत विवि हरिद्वार की पूर्व कुलपति डॉ. सुधा पांडे का कहना है कि कुलपति चयन को लेकर योग्यता व अनुभव सबसे पहले देखा जाना चाहिए। कोई भी विवि अपने यहां उच्च शिक्षा के प्रतिमान तभी स्थापित कर सकता है जब कुलपति जैसे शीर्ष पद पर शिक्षाविद तैनात हो। यूजीसी की गाइडलाइन में कुलपति व कुलसचिव के चयन प्रक्रिया के स्पष्ट निर्देश हैं। यदि उनका पालन कर योग्यता को आधार बनाया जाता है तो कुलपति की नियुक्ति पर कोई अंगुली नहीं उठा सकता।
उत्तराखंड की पूर्व उच्च शिक्षा निदेशक डॉ. सविता मोहन कहती हैं कि कुलपति बनने के लिए उन्हीं शिक्षाविदों का आवेदन करना चाहिए जो एकेडमिक, शैक्षणिक, अनुसंधान के क्षेत्र में व्यापक अनुभव रखते हों। फिर कुलपति चयन के लिए गठित पैनल में ऐसे विद्वानों को शामिल करना होगा जो कुलपति से अधिक अनुभव व शैक्षिक योग्यता रखते हों। यूजीसी की गाइडलाइन का शत फीसद पालन हो और दलगत राजनीति से ऊपर उठकर यदि सुयोग्य व्यक्ति को कुलपति चुना जाए तो विवादों से बचा जा सकता है। देश के अन्य ख्याति प्राप्त विश्वविद्यालयों में नियुक्त कुलपति के हजारों उदाहरण हमारे सामने हैं।
वहीं, डीबीएस पीजी कॉलेज के सेवानिवृत्त प्राचार्य डॉ. ओपी कुलश्रेष्णा का कहना है कि कुलपति व कुलसचिव की चयन प्रक्रिया में उत्तराखंड में विवाद खड़ा होना कोई नई बात नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि कुलपति व कुलसचिव की चयन प्रक्रिया में यूजीसी के नियमों की अनदेखी की जाती है। प्रदेश के 11 राजकीय विश्वविद्यालयों में से केवल एक विवि में स्थायी कुलसचिव है। प्रदेश सरकार जब तक कुलपति व कुलसचिव की चयन प्रक्रिया में दखल देती रहेगी तब तक कुलपति के लिए गठित चयन पैनल पारदर्शी व न्यायोचित निर्णय नहीं ले सकता।