डीआइजी बोले, दून के ट्रैफिक सुधारने में करनी ही होगी पहल Dehradun News
डीआइजी अरुण मोहन जोशी का मानना है कि अगर शहर के ट्रैफिक में सुधार करना है तो किसी को तो पहल करनी होगी। पुलिस को पहल इसलिए करनी पड़ती है क्योंकि ट्रैफिक का संचालन उसी के पास है।
देहरादून, जेएनएन। दून शहर में वन-वे ट्रैफिक प्लान को लेकर व्यापारी वर्ग और आमजन के निशाने पर आए डीआइजी अरुण मोहन जोशी का मानना है कि अगर शहर के ट्रैफिक में सुधार करना है तो किसी को तो पहल करनी होगी। पुलिस को पहल इसलिए करनी पड़ती है, क्योंकि ट्रैफिक का संचालन उसी के पास है। वन-वे प्लान को लेकर डीआइजी का मानना है कि शहर का ट्रैफिक दबाव आज जिस स्थिति में है, उसे भविष्य में वन-वे प्लान के जरिए ही सुधारा जा सकता है।
शहर में घंटाघर टू दर्शनलाल चौक वाया एस्लेहाल, कनक चौक, लैंसडोन चौक व एस्लेहाल तिराहा टू घंटाघर वाया लैंसडोन चौक, दर्शनलाल चौक तक वन-वे प्लान भले डीआइजी अरुण मोहन जोशी का साहसिक कदम रहा हो, मगर शहर के मौजूदा हालात के हिसाब पर यह खरा नहीं उतरा। व्यापारी वर्ग को तो इस प्लान से बड़ी चोट लगी ही साथ ही आमजन को भी ईंधन व वक्त की दोहरी चोट सहनी पड़ी।
आखिरकार पुलिस ने चार दिन के ट्रायल के बाद प्लान स्थगित कर दिया और अब आमजन के सुझाव इस प्लान पर लिए जा रहे। फिलहाल, शहर का यातायात भी सुचारु चल रहा है। वहीं, दून के पुलिस कप्तान डीआइजी जोशी का मानना है कि इस हालात में ट्रैफिक कब तक सही व सुचारु चल सकेगा। डीआइजी ने सुझाव भी दिए हैं एवं आमजन समेत व्यापारियों से भी इसमें आगे आने को कहा है।
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डीआइजी के सुझाव
-वक्त के साथ जैसे-जैसे दून में आबादी बढ़ती गई है, यातायात की समस्या और वाहनों की संख्या उससे दोगुने अनुपात में बढ़ गई है। इसका नतीजा बेकाबू यातायात के रूप में सामने आ रहा है। इसके निदान के लिए पुलिस जो प्रयोग करती है, जनता को उसमें सहयोग करना चाहिए।
-वन-वे के लिए स्टडी कर किया जाता है काम। भविष्य में यातायात दबाव को देखते हुए जरूरी है यह कदम। जनता को भी इसे समझना चाहिए।
-परिवहन विभाग बस शेल्टरों में वाहनों के रुकने की व्यवस्था सुनिश्चित करे।
-यहां एसी व लो-फ्लोर सिटी बसें चलें, ताकि लोग कारों के बजाए इनमें सफर करें।
-धार्मिक यात्राओं को लेकर सालभर पहले ही आयोजकों को पुलिस-प्रशासन के साथ प्लान बना लेना चाहिए।
-नगर निगम ने स्वच्छता के लिए शहर में जो बोर्ड लगाए हैं, उनमें यातायात नियमों को भी जोड़ दिया जाना चाहिए।
-जिम्मेदार एजेंसियां अपने बजट में कुछ बजट ट्रैफिक एजुकेशन और जागरुकता के लिए भी निकालें।
-पुलिस बूथ में ऊपर का हिस्सा नगर निगम विज्ञापन के लिए न बेचे, वहां पर ट्रैफिक स्लोगन लगाए जाएं।
-आबादी के हिसाब से यातायात सुविधाएं जैसे-सस्ती पार्किंग, ट्रैफिक लाइट, स्टॉपेज, जेब्रा क्रासिंग, यात्री वाहनों की संख्या, रूट आदि के पुख्ता इंतजाम करने होंगे।
-यातायात समस्या को पटरी पर लाने के लिए त्वरित उपाय के साथ ही दीर्घकालिक योजनाओं पर भी काम करना होगा।
-पार्किंग के नए स्थल तलाशे जाएं, उन पर वाहनों को खड़ा करना की अनिवार्यता हो।
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