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माउंट एवरेस्‍ट की ऊंचाई देहरादून के बिना अधूरी, जानिए

इतिहास के दस्तावेजों में जो जानकारी बेहद सीमित है, वह यह कि एवरेस्ट की ऊंचाई का पता लगाने के लिए सर्वे ऑफ इंडिया के सर्वेक्षकों को कितने अथक प्रयास करने पड़े थे।

By Gaurav KalaEdited By: Published: Wed, 01 Mar 2017 01:08 PM (IST)Updated: Thu, 02 Mar 2017 06:50 AM (IST)
माउंट एवरेस्‍ट की ऊंचाई देहरादून के बिना अधूरी, जानिए
माउंट एवरेस्‍ट की ऊंचाई देहरादून के बिना अधूरी, जानिए

 देहरादून, [सुमन सेमवाल]: जब भी माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई का जिक्र आता है तो इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में दून का नाम भी अंकित मिलता है, क्योंकि दून स्थित सर्वे ऑफ इंडिया ने ही विश्व की इस सबसे ऊंची चोटी की ऊंचाई का पता लगाया गया था। इतिहास के दस्तावेजों में जो जानकारी बेहद सीमित है, वह यह कि एवरेस्ट की ऊंचाई का पता लगाने के लिए सर्वे ऑफ इंडिया के सर्वेक्षकों को कितने अथक प्रयास करने पड़े थे।

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विज्ञान दिवस पर सर्वे ऑफ इंडिया की ज्योडीय एवं अनुसंधान शाखा ने इन अनछुए पहलुओं से रूबरू कराते हुए कहा कि जब हिमालय की चोटियों की ऊंचाई की गणना की जा रही थी, तब माउंट एवरेस्ट का नाम पीक-15 था।
ज्योडीय एवं अनुसंधान शाखा के निदेशक नितिन जोशी के अनुसार सर्वे ऑफ इंडिया की स्थापना वर्ष 1767 में हुई और उस समय नक्शों व चोटियों की ऊंचाई की गणना के कार्य में वैज्ञानिकता की कमी थी।
पहली बार वर्ष 1802 में सर्वे ऑफ इंडिया के तत्कालीन कर्नल लेंब्टन ने चेन्नई (उस समय मद्रास) में सेंट थॉमस माउंट पर ग्रेट थ्योडोलाइट उपकरण से वृहद त्रिकोणमितीय (ट्रिग्नोमेट्रिकल) सर्वे से कार्य शुरू किया था, जो मध्य प्रदेश तक चला।
वर्ष 1823 में कर्नल लेंब्टन की मृत्यु के बाद अधीक्षक जॉर्ज एवरेस्ट ने इस कार्य को आगे बढ़ाया। वर्ष 1830 में महासर्वेक्षक बनने के बाद भी यह कार्य उनके ही अधीन रहा और उन्होंने उत्तर भारत से हिमालय की ऊंची चोटियों का प्रेक्षण (ऑब्जर्वेशन) शुरू किया। उस समय चोटियों को उनके क्रम के अनुसार पीक-1, पीक-2 आदि नाम से जाना जाता था। इसी दौरान उन्होंने पीक-15 का भी प्रेक्षण किया।
हालांकि, उसी दौरान जॉर्ज एवरेस्ट सेवानिवृत्त हो गए और उनके स्थान पर एएस वॉफ ने यह जिम्मेदारी संभाली। पीक-15 की ऊंचाई की गणना तब तक शुरू हो चुकी थी। इस चोटी की ऊंचाई अप्रत्याशित मिली। इसे पुष्ट करने के लिए ऊंचाई की गणना कई बार की गई, लेकिन हर बार ऊंचाई अप्रत्याशित आई।
महासर्वेक्षक वॉफ के ही कार्यकाल में 1856 में पीक-15 की ऊंचाई का मापन पूरा किया गया, तब इसकी ऊंचाई 8840 मीटर मापते हुए इसे विश्व की सबसे ऊंची चोटी घोषित किया गया। चोटी का नाम पूर्व महासर्वेक्षक जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर 'माउंट एवरेस्ट' गया। वहीं, 1956 में अन्य उत्कृष्ट उपकरणों से एवरेस्ट की ऊंचाई 8848 मीटर मापी गई और आज तक यही ऊंचाई चली आ रही है।
चीफ कंप्यूटर की रही अहम भूमिका
चोटियों की ऊंचाई की गणना के शुरुआती समय में कंप्यूटर नहीं होते थे, तब गणना करने वाले व्यक्ति को ही कंप्यूटर कहा जाता था। पीक-15 की ऊंचाई की गणना में चीफ कंप्यूटर की भूमिका राधानाथ सिकधर ने निभाई थी। अन्य चोटियों की ऊंचाई की गणना में भी इनकी अहम भूमिका रही।

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