विजय मिश्रा, देहरादून। देहरादून जिले के विकासनगर में दिल्ली-यमुनोत्री मोटर मार्ग पर 11 साल की मासूम सृष्टि की जान भले ही पेड़ की टहनी ने ली हो, मगर इसके लिए जिम्मेदार सिस्टम भी है। सड़क की सीमा के काफी अंदर तक विस्तार ले चुकी इस टहनी को वन विभाग ने दुर्घटना के बाद आनन-फानन कटवा दिया। यह तत्परता पूर्व में टहनी काटने की मांग पर दिखाई गई होती तो शायद हादसा ही नहीं होता।

राज्य में जहां-तहां सड़क के किनारे ऐसे पेड़ मिल जाएंगे, जिनकी शाखाओं का विस्तार सड़क के काफी अंदर तक है। विकासनगर में दिल्ली-यमुनोत्री मोटर मार्ग पर ही 15 किमी हिस्से में ऐसे 24 से अधिक पेड़ हैं। इसके अलावा गिरासू और सूखे दरख्तों की भी भरमार है, जिन्हें काटने की जहमत वन विभाग नहीं उठा रहा। ऐसे हादसों को रोकने के लिए आवश्यक है कि जवाबदेही तय की जाए। ऐसे हादसों को नियति मानकर छोडऩे के बजाय सख्त कार्रवाई अमल में लाई जाए।

सीमांत में मोबाइल की घंटी

आज संचार सेवा मनुष्य के अस्तित्व से जुड़ा प्रश्न बन गई हैं। सीमा क्षेत्र में इनका महत्व और बढ़ जाता है। ऐसे में यह विडंबना ही है कि चीन-नेपाल सीमा से लगे उत्तराखंड के चमोली, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ जिले में 2000 से अधिक गांव अभी तक दूरसंचार सेवा से अछूते हैं। अब भारत सरकार के दूरसंचार विभाग ने पिथौरागढ़ में 197 सीमांत गांवों को मोबाइल नेटवर्क से जोडऩे की तैयारी की है।

सीमांत की जरूरत और सामरिक महत्व को देखते हुए यह बेहद जरूरी है। इसके साथ सरकार को संचार सेवा की निर्बाध आपूर्ति पर भी ध्यान देना होगा। पिथौरागढ़ में ही चीन-नेपाल सीमा से लगे धारचूला क्षेत्र में पिछले सात दिन से इंटरनेट सेवा ठप है। इससे हर वर्ग प्रभावित हो रहा है। टावरों की संख्या बढऩे के बाद भी सेवा बाधित होना गंभीर बात है। जरूरी है कि टावरों की क्षमता बढ़ाने के साथ निगरानी तंत्र को मजबूत किया जाए।

स्मार्ट सिटी में चोक सिस्टम

राजधानी देहरादून के व्यस्ततम चौराहों में से एक है। पिछले ढाई माह से इस चौराहे पर बह रहा सीवरेज का पानी स्मार्ट सिटी के चोक सिस्टम की गवाही दे रहा है। यह हाल तब है, जब तमाम आला अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधि तक हर रोज यहां से गुजरते हैं। चंद किलोमीटर की दूरी पर कई बड़े सरकारी कार्यालय व प्रतिष्ठान हैं।

इससे भी गंभीर यह है कि स्थायी लोक अदालत में शिकायत के बाद इस समस्या की दुर्गंध सरकारी मशीनरी तक पहुंची। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या दून इस तरह स्मार्ट बनेगा। स्मार्ट सिटी का मतलब है पर्याप्त और दुरुस्त जन सुविधाएं। समस्याओं का त्वरित समाधान। साफ-सफाई की अच्छी व्यवस्था। जिससे लोग यहां रहने के लिए आकर्षित हो सकें। न कि समस्या के समाधान में सरकारी धींगामुश्ती के चलते परेशान झेलनी पड़े। शहरी विकास और जन सुविधाओं से जुड़े सरकारी महकमों को यह बात समझनी होगी।

कदम-कदम पर दांव पर जिंदगी

किसी भी समस्या के समाधान को 21 साल का वक्त कम नहीं होता। इस लिहाज से देखें तो राज्य में वन्यजीव-मानव संघर्ष की समस्या का अब तक समाधान नहीं हो पाया है। 71.05 फीसद वन भूभाग वाला समूचा उत्तराखंड इससे जूझ रहा है। न खेत-खलिहान सुरक्षित हैं और न ही घर-आंगन। एक रोज पहले ऋषिकेश के स्वर्गाश्रम क्षेत्र में बागीचे में सोये साधु को जंगल से आबादी क्षेत्र में आ धमके हाथी ने मार डाला।

वन्यजीव-मानव संघर्ष की यह तस्वीर नई नहीं है। बीते 21 साल में यह समस्या गहराई ही है। आंकड़े बताते हैं कि इस अवधि में अकेले हाथी के हमलों में ही 191 व्यक्तियों ने जान गंवाई है, जबकि 195 लोग घायल हुए। विडंबना देखिए कि बावजूद इसके किसी भी राजनीतिक दल के एजेंडे में इस समस्या को जगह नहीं दी गई। उम्मीद है कि यह घटना सबक देगी। आने वाली सरकार वन्यजीव-मानव संघर्ष रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाएगी।

Edited By: Nirmala Bohra