देहरादून लिटरेचर फेस्टिवल-2018 का हुआ आगाज, रस्किन बॉन्ड बने एंकर
देहरादून में तीन दिवसीय देहरादून लिटरेचर फेस्टिवल-2018 का आगाज हो गया है। पहले दिन सदगुरु जग्गी वासुदेव व लोकप्रिय लेखक रस्किन बॉन्ड के साथ हुआ टॉक सेशन बेहद खास रहा।
देहरादून, [जेएनएन]: तीन दिवसीय देहरादून लिटरेचर फेस्टिवल-2018 का आगाज हो गया है। इस बहुआयामी साहित्य, कला एवं आध्यात्मिक मंच पर देश-विदेश के प्रसिद्ध लेखक, आध्यात्मिक गुरु, फिल्म कलाकार, निर्देशक समेत अन्य हस्तियां हिस्सा ले रही हैं। पहले दिन ईशा संस्था के संस्थापक सदगुरु जग्गी वासुदेव व लोकप्रिय लेखक रस्किन बॉन्ड के साथ हुआ टॉक सेशन बेहद खास रहा।
गुरुवार शाम मसूरी रोड स्थित यूनिसन वर्ल्ड स्कूल में देहरादून लिटरेचर फेस्टिवल का शुभारंभ बतौर मुख्य अतिथि राज्यपाल डॉ. केके पाल ने दीप प्रज्वलित कर किया। राज्यपाल ने कहा कि साहित्य एक ऐसी कला है, जिसका हर किसी के जीवन में महत्व होता है। चाहे बात छात्र जीवन की हो, या फिर दूसरे आयु वर्ग की, साहित्य के जरिये अभिव्यक्ति को अधिक प्रभावी ढंग से व्यक्त किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि लिटरेचर फेस्टिवल के जरिये युवा पीढ़ी में साहित्य के प्रति लगाव पैदा होगा, यह अच्छी पहल है। कार्यक्रम की शुरुआत ईशा संस्था के म्यूजिकल थीम के साथ हुई। इसमें गंगा स्वच्छता अभियान, योग, पर्यावरण संरक्षण समेत कई अन्य संदेश दिए गए। इसके बाद शुरू हुआ ईशा के संस्थापक सदगुरु जग्गी वासुदेव और प्रसिद्ध लेखक रस्किन बांड का टॉक सेशन, जो खासा ज्ञानवद्र्धक रहा। इस अवसर पर यूनिसन वल्र्ड स्कूल के निदेशक अमित अग्रवाल, हेड्स अप के संस्थापक सम्रांत, ह्यूमन फॉर ह्यूमैनिटी के फाउंडर अनुराग चौहान समेत कई अन्य उपस्थित रहे।
रस्किन बॉन्ड बने एंकर, सदगुरु ने रखे विचार
लिटरेचर फेस्टिवल में पहले दिन ईशा संस्था के संस्थापक सदगुरु जग्गी वासुदेव व लोकप्रिय लेखक रस्किन बॉन्ड के साथ हुआ टॉक सेशन बेहद खास रहा। रस्किन बॉन्ड ने एंकर की भूमिका निभाते हुए सदगुरु से विभिन्न विषयों पर विचार जाने। युवा पीढ़ी में टेक्नोलॉजी के प्रभाव, भारतीयों में संस्कृति प्रेम का अभाव, सुखी रहने, क्रोध जैसे कई महत्वपूर्ण विषयों पर सदगुरु ने विचार प्रस्तुत किए, जिसे साहित्य प्रेमियों ने आत्मसात किया।
रस्किन बॉन्ड के युवा पीढ़ी में बढ़ रहे टेक्नोलॉजी के प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर सदगुरु ने कहा कि टेक्नोलॉजी का उपयोग करने में कोई बुराई नहीं।
लेकिन, हमें सीमाएं भी समझनी होंगी। क्योंकि टेक्नोलॉजी का अनावश्यक व हद से अधिक उपयोग किसी न किसी रूप में हानिकारक साबित होता है। इससे मनुष्य शारीरिक परिश्रम करने से भी बचता है। यह नहीं होना चाहिए। सदगुरु ने कहा कि हम भारतीय पश्चिमी देशों की हर चीज को बेवजह तवज्जो देते हैं, फिर हम कहने लगते हैं कि हम भारतीय पीछे हैं। यदि भारतवासी अपनी संस्कृति, परंपरा व आध्यात्म को अपनाएं तो यह सोच खुद बदलने लगेगी। फिर दुनिया भी मानने को मजबूर होगी कि भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्म दुनिया में सबसे संपन्न है।
उन्होंने मनुष्य को जीवन में सुखी रहने का सबसे सरल मार्ग बताते हुए यह भी कहा कि आप मानवतापूर्ण व्यवहार करें। आपके सामने मनुष्य है तो उसके साथ मधुर व्यवहार करें। जरूरतमंद की मदद करें, जानवर को प्यार व आहार दें। पौधों को पानी दें, नदी की स्वच्छता का ख्याल रखें। इस तरह आपका जीवन सुखमय हो जाएगा। उन्होंने मानव स्वभाव में बढ़ रही क्रोध प्रवृत्ति को भी मनुष्य के विनाश का कारण बताते हुए कहा कि यह वायरस की तरह है। जो मनुष्य को शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर करता है। मनुष्य दूसरे को नुकसान पहुंचाने के लिए क्रोध करता है, लेकिन क्रोध उसे ही नुकसान पहुंचाता चला जाता है।
बाइक से करता हूं माउंटेन की सैर
सदगुरु ने अपने माउंटेन प्रेम (पर्वतों के प्रेम) को साझा करते हुए कहा कि वे माउंटेन के सेवक हैं, प्रशंसक नहीं। वह 18 वर्ष की उम्र में घर से पर्वतों की सैर पर निकल गए थे। उन्हें बाइक राइडिंग बेहद पसंद है, वह आज भी बाइक से सैर पर निकल पड़ते हैं। उन्होंने बताया कि वह कभी-कभी अपना चार्टर्ड प्लेन भी उड़ा लेते हैं।
बचपन से रस्किन बॉन्ड का प्रशंसक
सदगुरु ने बताया कि वे आठ वर्ष की उम्र से ही रस्किन बॉन्ड के कायल हैं। वह बचपन से ही रस्किन बॉन्ड से मिलना चाहते थे। आखिरकार दून लिटरेचर फेस्टिवल ने उनकी यह इच्छा पूरी कर दी।
ठहाके लगाते नजर आए दर्शक
टॉक सेशन में आध्यात्म और साहित्य की जबरदस्त केमिस्ट्री देखने को मिली। एंकर की भूमिका निभा रहे रस्किन बॉन्ड ने रोचक तरीके से सवाल किए तो सदगुरु ने भी हंसीभरे उदाहरण के साथ जवाब दिए और कई बार एक्टिंग भी करने लगे। टॉक सेशन में दर्शकों ने रस्किन बॉन्ड व सदगुरु के हंसी-मजाक के दौरान जमकर ठहाके लगाए।
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