उत्तराखंड में बजा निकाय चुनाव का बिगुल, 18 नवंबर को होगा मतदान
15 अक्टूबर को सरकार ने राज्य निर्वाचन आयोग को चुनाव कार्यक्रम सौंपा और आयोग ने भी तत्काल निकाय चुनावों की घोषणा कर दी। इसके साथ ही राज्य में आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू हो गई।
[कुशल कोठियाल]: नैनीताल हाई कोर्ट ने गत 10 अक्टूबर को प्रदेश सरकार को एक सप्ताह के भीतर निकाय चुनाव की प्रक्रिया शुरू करने के आदेश दिए हैं। प्रदेश सरकार ने भी तत्परता दिखाते हुए छुट्टी के दिन भी काम कर 14 अक्टूबर को 84 निकायों में आरक्षण की अधिसूचना जारी कर दी।
सोमवार 15 अक्टूबर को सरकार ने राज्य निर्वाचन आयोग को चुनाव कार्यक्रम सौंपा और आयोग ने भी तत्काल निकाय चुनावों की घोषणा कर दी। इसके साथ ही राज्य में आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू हो गई। राज्य के 84 नगर निकायों में 18 नवंबर को मतदान होगा, जबकि मतगणना 20 नवंबर को। प्रदेश के आठ नगर निगमों में से रुड़की को छोड़ कर सात में चुनाव होने हैं। प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी भाजपा के लिए इन चुनावों का खासा महत्व है।
उधर विधानसभा चुनावों के बाद से किनारे खड़ी कांग्रेस इसे मौके के रूप में देख रही है। कांग्रेस को अपने किए से ज्यादा भरोसा निकाय क्षेत्रों में लटके हुए उन कामों से है जो सरकार ने नहीं किए। हाई कोर्ट के आदेश प्रदेश के बड़े शहरों से हटाए जा रहे अतिक्रमण पर भी कांग्रेस जरूरत से ज्यादा भरोसा कर रही है। कांग्रेसी नेताओं का मानना है कि देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और नैनीताल जैसे बड़े शहरों में भाजपा की लुटिया अतिक्रमण विरोधी अभियान ही डुबो देगा, जबकि हकीकत यह है कि अतिक्रमण हटाए जाने से प्रभावित व्यक्ति को छोड़ कर आम शहरी सहूलियत महसूस कर रहा है। दोनों दलों ने निकाय क्षेत्रों के लिए प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया भी तेज कर दी है। प्रत्याशी चयन के औपचारिक मापदंडों से ज्यादा जुगाड़ और आकापरस्ती का चलन है। दोनों दलों में तिकड़म की राजनीति ने उछाल मारा है। चुनौती बगावत और असंतोष को दबाने की कोशिश भी है।
सवा लाख हजार करोड़ के एमओयू
देहरादून में आयोजित दो दिवसीय इन्वेस्टर्स समिट बेहतर व बड़ी उम्मीदों वाला रहा। केंद्र व प्रदेश में एक ही दल की सरकार, प्रदेश सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ जोरी टॉलरेंस और मोदी प्रभाव शायद वे दो फैक्टर हैं जो उद्यमियों को भा रहे हैं। यही वजह है कि समिट में एक लाख चौबीस हजार करोड़ रुपये से ज्यादा के एमओयू पर हस्ताक्षर हुए। इन प्रस्तावों में अगर 50 फीसद भी जमीन पर उतरते हैं तो उत्तराखंड राज्य के लिए बहुत बड़ी कामयाबी होगी। समिट के परिणामों से आमजन को भी रोजगार व कच्चे माल का बाजार दिखाई दे रहा है। कांग्रेस ने इस समिट में भी नकारात्मक रवैया बरकरार रखा। प्रधानमंत्री के आगमन पर धरना-प्रदर्शन किए, उत्तराखंड वासियों को कांग्रेस की यह हरकत शायद ही ठीक लगी हो। बहरहाल भारी निवेश के इतने ज्यादा प्रस्तावों को जमीन पर उतारना त्रिवेंद्र रावत सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। इस चुनौती को पार पाने के लिए सरकार चिंतित भी दिखाई दे रही है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने बगैर समय गंवाए हस्ताक्षरित एमओयू की मॉनिटरिंग के लिए अपने कार्यालय में अलग से सेल का गठन का निर्णय किया है। इसकी बैठकें वह समय-समय पर स्वयं करेंगे। समिट का उद्घाटन करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रदेश सरकार को स्पिरिचुअल इको जोन (एसईजेड) की विकास अवधारणा भी दे गए। सरकार ने राज्य के विकास के लिए इस पर कार्य करने की कटिबद्धता जताई है।
नहीं रहे सानंद, चल रहे आरोप-प्रत्यारोप
11 अक्टूबर को पिछले 113 दिनों से गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए तप (अनशन) पर बैठे स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद (प्रो. जीडी अग्रवाल) ने देह त्याग दी। उन्हें ऋषिकेश स्थित एम्स में उपचार के लिए भर्ती किया गया था। स्वामी सानंद आस्था और विज्ञान के जीवंत समागम थे। उनके देहांत के बाद कुछ लोगों ने केंद्र तथा प्रदेश की सरकारों को जिम्मेदार ठहराने तथा सरकारों को कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया, लेकिन यह अभियान परवान नहीं चढ़ पाया। हरिद्वार स्थित मातृ सदन के स्वामी शिवानंद ने जिला प्रशासन और एम्स प्रबंधन पर उनकी हत्या का आरोप लगाया है, जबकि एम्स प्रबंधन ने मातृ सदन को मानहानि का मुकदमा करने की चेतावनी दी है। एम्स निदेशक ने इस बात का खुलासा भी किया है कि स्वामी सानंद अनशन खत्म करने को राजी थे, लेकिन इस दौरान कोई बाहरी व्यक्ति उन्हें अनशन न तोड़ने के लिए प्रेरित करता रहा। उधर प्रदेश सरकार का कहना है कि स्वामी सानंद के अनशन में प्रदेश सरकार ने पूरी संवेदनशीलता के साथ काम किया है। उन्हें दो बार एम्स में उपचार के लिए भर्ती किया तथा प्रदेश सरकार के जिम्मेदार लोगों ने अनशन तुड़वाने का पूरा प्रयास किया। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने उनकी लगभग सभी मांगे मान ली थीं और उनसे फोन पर संवाद भी कायम किया। उमा भारती स्वयं उनसे दो बार मिलीं व अनशन खत्म कराने का प्रयास किया। स्वामी सानंद नहीं रहे, यह एक कड़वा सच है। अब उनके देहांत पर जो आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चल रहा है, उसकी आवश्यकता और उपादेयता पर भी प्रश्न उठ रहे हैं। आने वाले कुछ समय में यह दौर भी थम जाएगा, जिंदा रहेंगे तो स्वामी सानंद द्वारा उठाए गए मुद्दे।
(राज्य संपादक, उत्तराखंड)