उत्तराखंड की पांच हिमनद झीलों पर मंडरा रहा है संकट, आपदा की दृष्टि से संवेदनशील; केंद्रीय गृह मंत्रालय हुआ सतर्क
केंद्रीय गृह मंत्रालय के आपदा प्रबंधन प्रभाग के तत्वावधान में मंगलवार को हिमालयी राज्यों के मुख्य सचिवों के साथ हुई वर्चुअल बैठक में उक्त जानकारी दी गई। बैठक में हिमालयी राज्यों में हिमनद झीलों के टूटने की स्थिति में बाढ़ नियंत्रण और आपदा प्रबंधन से संबंधित विषय पर विमर्श हुआ। इसमें उत्तराखंड की ओर से मुख्य सचिव राधा रतूड़ी और आपदा प्रबंधन सचिव डा रंजीत कुमार सिन्हा ने भाग लिया।
राज्य ब्यूरो, देहरादून। हिमालयी राज्यों में आपदा की दृष्टि से खतरनाक हिमनद झीलों से संभावित क्षति के न्यूनीकरण को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय सतर्क हो गया है। हिमालयी राज्यों में ऐसी 188 हिमनद झीलें चिन्हित की गई हैं। इनमें उत्तराखंड की 13 झीलें भी शामिल हैं, जिनमें से पांच को जोखिम की दृष्टि से अति संवेदनशील श्रेणी में रखा गया है।
प्रथम चरण में इन्हीं हिमनद झीलों का सर्वेक्षण कर आपदा न्यूनीकरण से संबंधित कार्य किए जाएंगे। इसके लिए नामी संस्थाओं के विशेषज्ञों की दो टीमें गठित की गई हैं।
हिमनद झीलों को लेकर हुई वर्चुअल बैठक
केंद्रीय गृह मंत्रालय के आपदा प्रबंधन प्रभाग के तत्वावधान में मंगलवार को हिमालयी राज्यों के मुख्य सचिवों के साथ हुई वर्चुअल बैठक में उक्त जानकारी दी गई। बैठक में हिमालयी राज्यों में हिमनद झीलों के टूटने की स्थिति में बाढ़ नियंत्रण और आपदा प्रबंधन से संबंधित विषय पर विमर्श हुआ। इसमें उत्तराखंड की ओर से मुख्य सचिव राधा रतूड़ी और आपदा प्रबंधन सचिव डा रंजीत कुमार सिन्हा ने भाग लिया।
13 झीलों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है
आपदा प्रबंधन सचिव डा सिन्हा के अनुसार रिस्क फैक्टर के आधार पर उत्तराखंड की 13 झीलों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है। उन्होंने बताया कि जोखिम की दृष्टि से अति संवेदनशील 'ए’ श्रेणी में चमोली जिले की एक और पिथौरागढ़ की चार झीलें हैं। 'बी' श्रेणी में वर्गीकृत हिमनद झीलों में एक-एक चमोली व टिहरी और दो पिथौरागढ़ जिले में हैं। चार हिमनद झीलें 'सी' श्रेणी में रखी गई हैं, अपेक्षाकृत कम संवेदनशील हैं।
पांच हिमनद झीलें हैं जोखिम में
प्रथम चरण में 'ए' श्रेणी में शामिल पांच हिमनद झीलों के जोखिम के आकलन के दृष्टिगत सर्वेक्षण का कार्य मई व जून में प्रस्तावित है। इसके तहत सैटेलाइट आंकड़ों का अध्ययन व एकत्रीकरण, बैथमैट्री सर्वे और क्षेत्र सर्वेक्षण के आधार पर संवेदनशीलता का आकलन संबंधी कार्य होंगे। इसके पश्चात जुलाई-अगस्त में उपकरणों की स्थापना व अर्ली वार्निंग सिस्टम विकसित करने के साथ ही आपदा न्यूनीकरण के उपाय किए जाएंगे। इन कार्यों के लिए दो टीमें बनाई गई हैं।
झीलों का होगा सर्वेक्षण
एनआईएच रुड़की, जीएसआइ लखनऊ, आईआईआरएस देहरादून, यूएसडीएमए व यूएलएमएमसी की टीम संयुक्त रूप से दो हिमनद झीलों का अध्ययन व सर्वेक्षण करेगी। द्वितीय टीम तीन झीलों के संबंध में यह कार्य करेगी। टीम में सी-डेक पुणे, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलाजी, आईआईआरएस देहरादून, यूएसडीएमए व यूएलएमएमसी के विशेषज्ञ शामिल होंगे।
विशेषज्ञों के साथ मिलकर करेगी काम
बताया गया कि इस मुहिम के लिए सी-डेक (सेंटर फॉर डेवलपमेंट एंड एडवांस कंप्यूटिंग) पुणे को लीड टेक्निकल एजेंसी के रूप में रखा गया है, जो दोनों टीमों के विशेषज्ञों के साथ समन्वय करते हुए कार्य करेगी।
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