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coronavirus: पहले दुर्गम बताकर छोड़ दिए पहाड़, अब संकट में कर रहे घर वापसी

कोरोना संक्रमण के बीच जब काम-धंधा ठप्प है तो लोग क्यों उन पहाड़ों की तरफ लौटने को आतुर हैं जिन्हें दुर्गम बताकर पीछे छोड़ आए थे।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sun, 05 Apr 2020 03:52 PM (IST)Updated: Sun, 05 Apr 2020 03:52 PM (IST)
coronavirus: पहले दुर्गम बताकर छोड़ दिए पहाड़, अब संकट में कर रहे घर वापसी
coronavirus: पहले दुर्गम बताकर छोड़ दिए पहाड़, अब संकट में कर रहे घर वापसी

देहरादून, सुमन सेमवाल। कहते हैं सपने अपनों से बड़े होते हैं। ..और हम हैं कि सपनों के लिए अपनों और अपनी जमीन को छोड़ने में पलभर भी नहीं सोचते। अब जब संकट सिर पर खड़ा है तो कौन पनाह दे रहा है? कोरोना संक्रमण के बीच जब काम-धंधा ठप्प है तो लोग क्यों उन पहाड़ों की तरफ लौटने को आतुर हैं, जिन्हें दुर्गम बताकर पीछे छोड़ आए थे। अब परिस्थितियां विषम हई तो बड़ी संख्या में लोग पहाड़ लौट गए हैं। आगे बढ़ने में गुरेज नहीं है, पर अपनी जड़ों को भूल जाना भी गलत है। रोज नहीं, कुछ महीने नहीं, साल में एक बार तो अपने मूल स्थान की सुध लेनी चाहिए। क्या पता लोगों की हलचल पाकर सरकार भी इन गांवों की सुध ले ले। क्या पता कुछ का प्रेम भी जाग जाए पहाड़ के प्रति। रिवर्स माइग्रेशन का मतलब पीछे हटना नहीं, अपनी जड़ों को और मजबूत बनाना भी होता है।

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खाद जाए भाड़ में

देहरादून मंडी समिति ने सड़-गल गई सब्जियों से खाद बनाने के जिस प्लांट को लगाकर वाहवाही लूटी थी, वही आज उसके लिए मुसीबत बन गई। समिति के नए अध्यक्ष को यह प्लांट कतई नहीं जंचा। नए अध्यक्ष राजेश शर्मा को खाद बनने की प्रक्रिया में उठने वाली दुर्गंध नागवार गुजरी। अब अध्यक्ष जो ठहरे। तत्काल फरमान सुनाया की आगे से ऐसा नहीं चलेगा। या तो प्लांट बंद करो या दुर्गंध को रोको। अब फल-सब्जियां सड़-गल गई हैं तो कुछ गंध तो आएगी ही। इसे कौन रोके। सो बेचारे अधिकारियों को प्लांट ही बंद करना पड़ गया। 

किसानों को जैविक खाद न मिले, उससे क्या फर्क पड़ता है। बस ऑफिस में परफ्यूम महकना चाहिए। अब अध्यक्ष जी से कौन पूछे कि इससे पहले भी तो अध्यक्ष रहे हैं। क्या उनकी नाक बंद थी या इनकी ज्यादा तेज है। खैर, यह तो तभी सोचना चाहिए था, जब प्लांट लगा था। फिलहाल अध्यक्ष बड़े और खाद भाड़ में है।

बत्ती गुल मीटर चालू

पूरा देश कोरोना के संक्रमण से लड़ रहा है। सरकार मकान मालिकों से किराया न लेने के लिए कह रही है। कंपनियों को अपने कार्मिकों को पूरा वेतन देने की अपील की जा रही है। तमाम देनदारियों को स्थगित किया जा रहा है। एक हमारा ऊर्जा निगम है, जो चाहकर भी उपभोक्ताओं को राहत नहीं दे सकता। अब भी भावुक अपील कर बिजली का बिल मांगा जा रहा है।

बिल्कुल बत्ती गुल मीटर चालू वाला हाल है। किसी पहुंचे फकीर ने यूं ही नहीं कहा, समझदारी उसमें जो आपातकाल से पहले परिस्थितियों को वश में कर ले। समय रहते ऊर्जा निगम ने हालात पर काबू पा लिया होता तो यह दिन न देखने पड़ते। ऊर्जा निगम की माली हालत ऐसी नहीं कि वो भी सीना ठोककर कहे कि अभी कोरोना को हराओ, बिल का बाद में देख लेंगे। इससे कुछ हमदर्दी ही मिल जाती। यहां तो निगम अपना रोना लेकर बैठ गया।

कोरोना ने खोली आंखें

अक्लमंद वो जो दूसरों की गलती से सीख ले और बुद्धिहीन वो जो खुद ठोकर खाकर भी पत्थर को दोष दे। कोरोना वायरस को हल्के में आंक कर जो गलती चीन, इटली, स्पेन और अमेरिका ने की उत्तराखंड भी उसी राह पर बढ़ रहा था। पीएम मोदी ने दूसरे की गलती से सीख ली और देश में संपूर्ण लॉकडाउन का ऐलान कर दिया। हमारी सरकार है कि मार्च को जो जहां हैं, उसे निकालने पर आतुर थी।

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कर देते गलती तो जो कुछ जमाती पकड़े भी जा रहे हैं, वो कहां कहां चले जाते, क्या क्या गुल खिलाते सोचकर भी बदन में सिहरन दौड़ने लगती है। अब चेते हैं तो गलती जरा भी मत दोहराना और कोरोना को अब हर हाल में हराना। वरना जो जख्म दूसरे देशों को मिले हैं, हमारे उससे भी गहरे हो सकते हैं। हमारी दुश्वारियां बड़ी हैं। मैदान से ज्यादा पहाड़ की चुनौती बड़ी है। 

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