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देवप्रयाग के शराब बॉटलिंग प्लांट पर गरमाई सियासत

देवभूमि उत्तराखंड में अलकनंदा व भागीरथी के संगम स्थल देवप्रयाग के निकट शराब के बॉटलिंग प्लांट के मामले को लेकर सियासत गरमा गई है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 08 Jul 2019 08:38 PM (IST)Updated: Mon, 08 Jul 2019 08:38 PM (IST)
देवप्रयाग के शराब बॉटलिंग प्लांट पर गरमाई सियासत

राज्य ब्यूरो, देहरादून

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देवभूमि उत्तराखंड में अलकनंदा व भागीरथी के संगम स्थल देवप्रयाग के निकट शराब के बॉटलिंग प्लांट के मामले को लेकर सियासत गरमा गई है। सोशल मीडिया में इस बॉटलिंग प्लांट के देवप्रयाग के दिए गए पते और ब्रांड के नाम लेकर कई पोस्ट वायरल हो रही हैं। सोशल मीडिया में आने के बाद ही देवप्रयाग के निकट शराब बॉटलिंग प्लांट की जानकारी सार्वजनिक हुई, जिससे एकबारगी सब चौंक गए। मामला किस कदर तूल पकड़ गया, यह इससे समझा जा सकता है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने एक-दूसरे पर वार-पलटवार करने में देर नहीं लगाई।

हाल में सोशल मीडिया में शराब के एक नए ब्रांड का नाम व इसके बॉटलिंग प्लांट का पता तेजी से वायरल हुआ। इस प्लांट का पता देवप्रयाग के ददुवा गांव का दिया गया है। इसे सीधे देवभूमि व इसकी मान्यताओं से जोड़कर सरकार पर निशाना साधा जा रहा है। कहा जा रहा है कि अब अलकनंदा व भागीरथी के संगम स्थल पर, जहां पवित्र गंगाजल मिलता है, वहीं अब शराब की बॉटलिंग की जा रही है। इससे देवभूमि की छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इससे आबकारी महकमे में भी हलचल मची है।

विभागीय सूत्रों की मानें तो प्रदेश में शराब की बॉटलिंग करने के लिए 24 दिसंबर 2012 को तत्कालीन विजय बहुगुणा सरकार में नीति बनाई गई। इसमें यह प्रावधान किया गया कि जो भी शराब कंपनी यह प्लांट स्थापित करना चाहेगी, वह बाजार में पांच वर्ष पूर्व आ चुकी होनी चाहिए। उस कंपनी के ब्रांड की कम से कम तीन राज्यों में बिक्री हो रही हो और पिछले तीन वर्षो में उसका उत्पादन कम से कम दो लाख पेटी प्रतिवर्ष हो। इसका मकसद यह बताया गया कि इससे बाजार में पहले से ही प्रचलित ब्रांड ही बॉटलिंग प्लांट लगा सकेंगे। साथ ही इनकी गुणवत्ता की पहले ही परख हो चुकी होगी।

वर्ष 2016 में तत्कालीन हरीश रावत सरकार ने इन नियमों में संशोधन किया। पहला संशोधन 17 अक्टूबर 2016 को लाया गया। इसमें पांच वर्ष पुरानी कंपनी, तीन राज्यों में ब्रांड की बिक्री और दो लाख पेटी प्रतिवर्ष के उत्पादन की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई। इसके बाद 23 नवंबर 2016 को एक और संशोधन लाया गया। इसमें सीधे शराब बनाने वाली कंपनी को भी आवेदन करने की छूट दी गई। इसके अलावा इन बॉटलिंग प्लांट में कंपनी को अपने ब्रांड के साथ ही अन्य कंपनियों के ब्रांड भरने की भी छूट दी गई।

कैबिनेट में लिए गए इन दोनो निर्णयों पर हंगामा हुआ तो उस समय यह तर्क दिया कि यहां गंगाजल की बॉटलिंग व पैकेजिंग की जाएगी और इससे स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिलेगा। हालांकि, मौजूदा समय में परिस्थितियां अब भिन्न नजर आ रही हैं। यहां शराब के एक नए ब्रांड की बॉटलिंग की जा रही है। इस पूरे प्रकरण पर सियासत गरमा गई है। 'यह प्रोजेक्ट पिछली कांग्रेस सरकार के समय ही तय हो गया था। वर्तमान सरकार उसी पर आगे बढ़ी है। इसका विरोध बेवजह किसी मामले को तूल देने जैसा है। जो लोग विरोध कर रहे हैं, मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि इससे न केवल स्थानीय फलों के उत्पादन को प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि सूबे के युवाओं को रोजगार भी मिलेगा। हर मामले में विरोध करने की मानसिकता सही नहीं है।'

-त्रिवेंद्र सिंह रावत, मुख्यमंत्री उत्तराखंड। 'मैने उत्तराखंडी फलों, सब्जियों आदि की खपत को बढ़ाने के लिए जब आबकारी नीति में परिवर्तन किया तो लोगों ने एक शराब का नाम लेकर आसमान सिर पर उठा लिया। उसमें 10 प्रतिशत फलों का रस ब्लेंड होता था, स्वाद उसका कुछ बदला-बदला सा था। फिर कुमाऊं व गढ़वाल में वाइनरी प्लांट लगाने को लाइसेंस दिए, तो लोग सड़कों पर उतर आए। ऊंचे लोगों के ख्याल ऊंचे होते हैं।'

-हरीश रावत, वरिष्ठ कांग्रेस नेता व पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड।


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