गजराज की धमक से उत्तराखंड में बढ़ी चुनौती, बेजुबानों के स्वभाव में आई तब्दीली
हाथी की पहाड़ में धमक से चिंता और चुनौती दोनों बढ़ गई हैं। अब तो 1500 मीटर की ऊंचाई तक हाथियों के पहुंचने के प्रमाण मिले हैं।
देहरादून, केदार दत्त। वन्यजीव संरक्षण में अहम भूमिका निभा रहे 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में राष्ट्रीय विरासत पशु हाथी की पहाड़ में धमक से चिंता और चुनौती दोनों बढ़ गई हैं। अभी तक यमुना नदी से लेकर शारदा तक फैले तराई-भाबर क्षेत्र के साथ ही इनसे लगे विभिन्न वन प्रभागों की लघु पहाड़ियों तक ही हाथियों की आवाजाही होती थी। अब तो 1500 मीटर की ऊंचाई तक हाथियों के पहुंचने के प्रमाण मिले हैं। अल्मोड़ा डिवीजन की जौरासी रेंज में हाथी गणना के दरम्यान मिले हाथी के मल के नमूने इसकी तस्दीक करते हैं। सूरतेहाल, हाथियों के पहाड़ों की तरफ कदम बढ़ाने से चिंता सताने लगी है कि कहीं इनके परंपरागत आशियाने में फूड चेन तो नहीं गड़बड़ा रही। वहीं, हाथियों के पहाड़ चढ़ने से इनके साथ ही आमजन की सुरक्षा की चुनौती भी है। हालांकि, दोनों मसलों में गहन अध्ययन की जरूरत है, तभी किसी निष्कर्ष पहुंचा जा सकता है।
बेजुबानों के स्वभाव में आई तब्दीली
लॉकडाउन के बाद बदली परिस्थितियों में उत्तराखंड में बेजुबानों के स्वभाव में बदलाव नजर आने लगा है। शिवालिक वृत्त के अंतर्गत देहरादून, हरिद्वार, लैंसडौन प्रभाग के जंगलों से लगे आबादी वाले इलाके इसकी तस्दीक कर रहे हैं। इन क्षेत्रों में सड़कों, धार्मिक स्थलों के साथ ही शहरों में बेखौफ धमकने वाले बंदरों के झुंड अब जंगलों की तरफ निकल पड़े हैं। विभाग की ओर से जुटाई गई जानकारी में ये बात सामने आई है। जंगलों में बंदरों की संख्या बढ़ी है और वे प्राकृतिक तरीके से भोजन तलाश रहे हैं। ऐसे में लोग भी सुकून में हैं और बंदर भी। अलबत्ता, चिंता वाली बात ये है कि मैदानी इलाकों में हाथी और गुलदार और पर्वतीय क्षेत्रों में गुलदार और भालू की सक्रियता अधिक बढ़ी है। इसके साथ ही हिरन, वनरोज जैसे जानवर भी आबादी के नजदीक देखे जा रहे। हालांकि, इस समस्या से निबटने को कदम उठाए जा रहे हैं।
केरल की घटना से कान खड़े
केरल के मल्लापुरम में हथिनी की पटाखे भरे फल खिलाने से हुई मौत के मामले से उत्तराखंड में भी वन्यजीव महकमे के कान खड़े हो गए हैं। हालांकि, केरल जैसी स्थिति यहां नहीं हैं, मगर चुनौती कम भी नहीं। दरअसल, राज्य के तमाम इलाकों में न सिर्फ हाथी, बल्कि गुलदार, बाघ समेत दूसरे वन्यजीवों ने नाक में दम किया है। कहीं ये फसलों को नुकसान पहुंचा रहे तो कहीं जनमानस के लिए खतरे का सबब बने हैं। इसीलिए चिंता अधिक सताने लगी है। गुलदारों के मामले में पूर्व में रिवेंज किलिंग के मामले सामने आ चुके हैं। इस सबको देखते हुए चौकसी बढ़ाने के साथ ही उन सभी संवेदनशील स्थलों पर खास निगाह रखी जानी आवश्यक है, जहां वन्यजीवों का मूवमेंट अधिक है। हालांकि, वन्यजीव महकमे ने इस दिशा में कदम भी उठाने शुरू कर दिए हैं। वनकर्मियों की टीमें तैनात करने के साथ ही गश्त तेज की गई है।
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कब आएंगे गैंडे और वाइल्ड डॉग
ज्यादा वक्त नहीं बीता, जब राज्य में कॉर्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व में वन्यजीवों के कुनबे में दो नए सदस्यों को लाने का निश्चय हुआ। इसके तहत कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में असम से गैंडे लाए जाने थे, जबकि राजाजी में वाइल्ड डॉग। तब वन विभाग ने इस मुहिम को जोर-शोर से प्रचारित किया। कहा गया कि इससे कॉर्बेट की जैव विविधता को और अधिक मजबूती मिलेगी। इसके अलावा राजाजी में वाइल्ड डॉग को लाने के पीछे तर्क दिया गया था कि इससे प्राकृतिक तौर पर गुलदार की संख्या पर अंकुश लगेगा। करीब सात माह का वक्फा गुजर चुका है, मगर ये मुहिम परवान नहीं चढ़ पाई है। कहा जा रहा कि अब गैंडों को लाने के संबंध में डीपीआर तैयार हो रही है, जबकि वाइल्ड डॉग के मसले को फिलहाल ठंडे बस्ते में रखने की तैयारी है। इस परिदृश्य के बीच सवाल उठ रहा कि ये मुहिम कब परवान चढ़ेगी।
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