बागबां ने ही काट डाले हजारों पेड़
राज्य ब्यूरो, देहरादून चंपावत वन प्रभाग में छह साल में जो कुछ हुआ, वह पर्यावरण के साथ ही
राज्य ब्यूरो, देहरादून
चंपावत वन प्रभाग में छह साल में जो कुछ हुआ, वह पर्यावरण के साथ ही राजकोष को पहुंची करोड़ों की क्षति की दृष्टि से हैरत में डालने वाला है। वन संरक्षक अनुसंधान वृत्त संजीव चतुर्वेदी की जांच रिपोर्ट के अनुसार इस प्रभाग में गुलिया-छिल्का के विदोहन की आड़ में पंचायती व आरक्षित वनों में हजारों की संख्या में चीड़ के पेड़ों पर आरी चलाकर लकड़ी भी ठिकाने लगा दी गई। इतना सब होने के बावजूद महकमे के आला अफसरों को इसकी भनक तक न लगना उसकी कार्यशैली पर भी सवाल खडे़ करता है।
जांच रिपोर्ट के अनुसार पिछले छह साल के दौरान चीड़ के प्रौढ़ वृक्षों के साथ ही सड़े-गले व गिरे पेड़ों से निकलने वाले गुलिया-छिलका के संग्रहण एवं निकासी परमिट की जांच में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। नाप भूमि से संग्रहण एवं निकासी परमिट में दिखाई गई मात्रा और मौके पर मौजूदा वास्तविक मात्रा में कई-कई गुना का अंतर पाया गया। नाप भूमि में चीड़ के पेड़ों की कम संख्या को देखते हुए इसकी भरपाई के लिए पंचायती व आरक्षित वनों में बड़े पैमाने पर पेड़ काटकर गुलिया-छिल्का की निकासी दी गई। वह भी एक नहीं कई-कई बार।
इन प्रकरणों में आवेदक को आंख मूंदकर स्वीकृतियां जारी की गई। एक-एक काश्तकार की भूमि से सैकड़ों कुंतल संग्रहण व निकासी की अनुमति जारी की गई। तत्कालीन फील्ड स्टाफ की रिपोर्ट और जांच टीम के निरीक्षण में पेड़ों की संख्या में भारी अंतर पाया गया। पूर्व में बनाई गई रिपोर्टो में दिखाए गए पेड़ों में से 50 फीसद से भी कम वृक्ष सड़े-गले, टूटे व जले पाए गए।
रिपोर्ट के मुताबिक गुलिया-छिल्का निकालने की अवधि एक सप्ताह होने का आदेश होने के बावजूद वर्षभर निकासी चालू रखी गई। और तो और 13 जुलाई 2011 को गुलिया-छिल्का विदोहन पर पूरी तरह रोक के आदेश के बावजूद इसका अनुपालन नहीं किया गया। नतीजतन, इससे पर्यावरण के साथ ही राजकोष को करोड़ों की वित्तीय क्षति हुई।
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गुलिया-छिल्का निकासी परमिट की संख्या
वर्ष, आरक्षित वन, पंचायती वन, नाप वन
2012, 00, 38, 23
2013, 35, 240, 33
2014, 00, 122, 163
2015, 00, 34, 153
2016, 00, 08, 183
2017, 00, 01, 133
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लीसा मद में भारी अनियमितता
चंपावत में चीड़ के पेड़ों से निकलने वाले लीसा के मामले में भी न सिर्फ नियमों को ताक पर रखा गया, बल्कि वर्ष 2009-10 से 2016-17 तक लीसा मद में भारी अनियमितताएं बरती गई। जांच रिपोर्ट के मुताबिक इस अवधि में 5.63 करोड़ का अनियमित व्यय किया गया। रिपोर्ट में उल्लेख है कि लीसा मद की राशि उन मदों में आवंटित की गई, जिनके लिए यह थी ही नहीं।
तीन साल तक लंबित रखा भुगतान
लीसा टिनों के भुगतान को लेकर वायरल हुए आडियो की जांच के संबंध में रिपोर्ट में बताया गया है कि लीसा मद में बजट की उपलब्धता के बाद भी भुगतान तीन साल तक लंबित रखा गया। इसमें विभागीय उच्चाधिकारियों के आदेशों की अवहेलना की गई।
लीसा में अनियमित व्यय
वर्ष, व्यय धनराशि
2009-10, 82.16 लाख
2010-11, 1.86 करोड़
2011-12, 55.58 लाख
2012-13, 87.18 लाख
2013-14, 49.48 लाख
2014-15, 70.86 लाख
2015-16, 18.05 लाख
2016-17, 13.72 लाख
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नर्सरी पौध क्षति में फर्जीबाड़ा
जांच रिपोर्ट में चंपावत में नर्सरी पौध क्षति पर भी सवाल उठाए गए हैं। रिपोर्ट में उल्लेख है कि वित्तीय वर्ष 2016-17 व 2017-18 में 337230 पौधों की क्षति की सूचना भेजी गई, जो असामान्य संख्या है। तय मानकों के अनुसार यह क्षति 27.07 लाख रुपये आंकी गई। इसमें फर्जीबाड़े की आशंका जताते हुए वसूली की कार्रवाई अमल में लाने की सिफारिश की गई है।
नियम ताक पर रख करोड़ों का नकद भुगतान
रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व में जारी शासनादेश में साफ है कि निजी व्यक्तियों, संस्थाओं व पार्टियों को किसी भी दशा में दो हजार रुपये से अधिक का नकद भुगतान न किया जाए। बावजूद इसके चंपावत प्रभाग में पिछले तीन सालों में चंपावत, काली कुमाऊं, लोहाघाट, भिगराड़ा, देवीधूरा व बूम रेंजों के साथ ही टनकपुर डिपो में वन क्षेत्राधिकारियों को तीन करोड़ से अधिक का नकद रूप में भुगतान पश्चात विभिन्न कार्य कराए गए। करोड़ों के नकद भुगतान से इसमें भ्रष्टाचार की आशंका जताई गई है।
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चहेतों को दी गई तैनाती
रिपोर्ट में उल्लेख है कि इस प्रभाग में कार्मिकों की तैनाती में नियमों की अनदेखी कर दी गई। नियमत: तीन साल में तबादले होने चाहिएं, लेकिन प्रभाग की रेंज, लेखा अनुभाग, लीसा अनुभाग में कार्मिक पिछले सात-आठ साल से लगातार तैनात हैं। रिपोर्ट में इन कार्मिकों के भी तत्काल स्थानांतरण की सिफारिश की गई है।