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जौनसार में जैंता-रासौ, तांदी-नृत्य के साथ मना बिरुड़ी का जश्न

त्यूणी/चकराता देवनगरी के नाम से विख्यात प्रमुख पर्यटन स्थल लाखामंडल में पहाड़ी बूढ़ी दिवाली पर बिरुड़ी का जश्न मनाने ग्रामीण जुटे।

By JagranEdited By: Published: Sun, 05 Dec 2021 08:14 PM (IST)Updated: Sun, 05 Dec 2021 08:14 PM (IST)
जौनसार में जैंता-रासौ, तांदी-नृत्य के साथ मना बिरुड़ी का जश्न

संवाद सूत्र, त्यूणी/चकराता: देवनगरी के नाम से विख्यात प्रमुख पर्यटन स्थल लाखामंडल में पहाड़ी बूढ़ी दिवाली पर बिरुड़ी का जश्न मनाने बोंदूर खत से जुड़े 24 गांवों के लोग गाजे-बाजे के साथ पहुंचे। स्थानीय महिलाओं ने परपंरागत पोशाक में ढोल-दमोऊ की थाप पर हारुल के साथ जैंता, रासौ व तांदी-नृत्य की शानदार प्रस्तुति से देवता की स्तुति की। इसके अलावा क्षेत्र के अन्य गांवों में भी बिरुड़ी परंपरागत तरीके से मनाया गया।

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जौनसार के खत शैली, बोंदूर, बमटाड़, विशायल, बाना, दसेऊ, क्वानू-मंझगांव, कोरुवा, पंजगांव, बहलाड़, उपलगांव, कोरु, सिलगांव, नागथात, ठाणा-टुंगरा, पशगांव, तपलाड़, लखवाड़, सिली-गोथान और शिलगांव समेत 20 खतों से जुड़े क्षेत्र के दो सौ से अधिक गांव के लोग बूढ़ी दिवाली के जश्न में डूबे हैं। जनजाति क्षेत्र जौनसार में पहाड़ की परपंरागत बूढ़ी दिवाली मनाने का अंदाज सबसे निराला है। यहां दो दिन होलियात निकालने के बाद रविवार को तीसरे दिन बिरुड़ी मनाया गया। गाजे-बाजे के साथ प्राचीन शिव मंदिर लाखामंडल में जुटी महिलाओं ने देवता की स्तुति की। लोक संस्कृति की जानकार स्थानीय महिलाओं ने समय के साथ विलुप्त हो रहे जैंता-रासौ नृत्य से युवा पीढ़ी को जौनसारी समाज की इस पौराणिक संस्कृति को बचाने का संदेश दिया। लोक कलाकार बाबूराम शर्मा ने कहा कि जौनसार की पहचान उसकी विशिष्ट संस्कृति से है। उन्होंने कहा कि जौनसार की लोक संस्कृति का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है। समाज के युवाओं को अपनी संस्कृति बचाने के लिए आगे आना होगा। कहा कि, समय के साथ क्षेत्र में तीज-त्योहार का पैटर्न बदला है, लेकिन पौराणिक संस्कृति की अपनी विशेषता है। लाखमंडल के अलावा क्षेत्र के अन्य मंदिरों और ग्रामीण इलाकों में बूढ़ी दिवाली पर बिरुड़ी का जश्न बड़ी धूमधाम से मना। पंचायती आंगन लोक नृत्य से गुलजार रहे। क्षेत्र के कई गांवों में नाच-गाने का दौर चला। इस मौके पर धोइरा निवासी पूर्व पुलिस महानिरीक्षक अनंतराम चौहान, लाखामंडल की प्रधान सोनिया, पूर्व प्रधान सुरेश शर्मा, जौनसार-बावर जनकल्याण विकास समिति अध्यक्ष बचना शर्मा, नरेश बहुगुणा, रंगकर्मी बाबूराम शर्मा, महिमानंद गौड़, केशव शर्मा, राजेंद्र शर्मा, ओमप्रकाश, मनोज कुमार, आसाराम शर्मा, अमन बहुगुणा, प्यारेलाल भट्ट आदि मौजूद रहे।

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लाखांमडल में निभाई पांडव कालीन परंपरा की रस्म

त्यूणी: लोक परंपरा के अनुसार पहाड़ी बूढ़ी दिवाली के मौके पर देवनगरी लाखामंडल में प्रतिवर्ष बिरुड़ी के दिन शिव मंदिर में पांडव कालीन रस्म निभाई जाती है। इसके लिए मंदिर में जुटे स्थानीय ग्रामीणों ने सदियों से चली आ रही कौंरव और पांडव के बीच रस्साकशी की रस्म पूरी की। लोक मान्यता के अनुसार स्थानीय लोग स्वयं को पांडव का वंशज माते हैं। इसी क्रम में कौंरव-पांडव के बीच दो खेमे में बंटे ग्रामीणों की ताकत का प्रदर्शन करने को रस्साकशी का नजारा देखने बड़ी संख्या में लोग मंदिर परिसर में जमा हुए। बाहर से घूमने आए पर्यटकों के लिए रस्साकशी की प्रतिस्पर्धा आकर्षण का केंद्र रही। स्थानीय लोग बूढ़ी दिवाली से पहले जंगल से बाबोई घास को काटकर अपने घरों में लाकर उसकी रस्सी तैयार करते हैं, जिससे वह मंदिर में रस्साकशी करते हैं। इस बार ग्रामीणों ने करीब बीस मीटर लंबी बाबोई घास से बनी मोटी रस्सी को पहले मंदिर के देव कुंड में शुद्धि की। इसके बाद जोर आजमाइश कर अपनी ताकत का प्रदर्शन किया। रस्म अदायगी के बाद ग्रामीणों ने शिव मंदिर में मत्था टेक बिरुड़ी के अखरोट-चिउड़ा मूड़ी का प्रसाद ग्रहण किया। स्थानीय ग्रामीणों और महिलाओं ने एक दूसरे को अखरोट भेंट कर बूढ़ी दिवाली व बिरुडी मेले की बधाई दी।


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