उत्तराखंड में बंजर जमीन पर भांग की खेती से लड़ेंगे रोजगार की जंग
पलायन से बेहाल उत्तराखंड की सीमा से सटे और पर्वतीय इलाकों में बंजर जमीन पर हैंप (भांग) की खेती स्थानीय आर्थिकी में ठोस बदलाव का सबब बनने जा रही है।
देहरादून, रविंद्र बड़थ्वाल। पलायन से बेहाल उत्तराखंड की सीमा से सटे और पर्वतीय इलाकों में बंजर जमीन पर हैंप (भांग) की खेती स्थानीय आर्थिकी में ठोस बदलाव का सबब बनने जा रही है। दवाइयों में हैंप की मांग और इसके बीजों के तेल में उद्योगों और स्टार्टअप की रुचि देखकर सरकार की बांछें खिली हैं।
वर्तमान में स्पेन और इजरायल में हैंप की खेती पर विशेष कार्य चल रहा है। इसी तर्ज पर उत्तराखंड सरकार भी हैंप की खेती को आजीविका और रोजगार की जंग में नए हथियार के तौर पर देख रही है। मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह इस योजना को अंतिम रूप देने को 26 फरवरी को बैठक करेंगे।
उत्तराखंड राज्य में हैंप की खेती की संभावनाओं को खंगाला जा रहा है। खास बात ये है कि हैंप की खेती को राज्य में अब तक कुल 10 लाइसेंस जारी किए गए हैं। पौड़ी में छह और ऊधमसिंहनगर में चार लाइसेंस दिए गए हैं। ऊधमसिंहनगर में लाइसेंसप्राप्त चार फर्मों ने 34 हेक्टेयर में हैंप उत्पादन के लिए आवेदन किया है। हैंप पर आगे कदम बढ़ाने के लिए सरकार इंडियन इंडस्ट्रियल हैंप एसिोसिएशन (आइआइएचए) का सहयोग ले रही है।
औषधि में हैंप की बहुत ज्यादा मांग है। इसे देखते हुए उत्तराखंड ने केंद्र को प्रस्ताव भेजा है। ऐसा करने वाला देश का यह पहला राज्य है। बीज पंजीकरण को लेकर भी कृषि महकमा केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेज चुका है। इसके बाद रिमाइंडर भेजा गया, लेकिन केंद्र के जवाब का इंतजार किया जा रहा है।
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मुख्य सचिव ने कहा कि हैंप बीज के इस्तेमाल से पहले इसकी टेस्टिंग अनिवार्य होगी। इस संबंध में नीति बनाई जा रही है। हैंप की खेती और अनुश्रवण की जियो मैपिंग की संभावना को खंगाला जा रहा है। इसकी खेती से जुड़कर लोग बेरोजगारी से लड़ सकते हैं।
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