डेढ़ मीटर खनन का नियम, कारोबारी खोद रहे थे तीन मीटर Dehradun News
नदियों में डेढ़ मीटर गहराई तक ही खुदान करने का नियम था मगर कारोबारी फिर भी तीन मीटर तक या इससे भी अधिक गहराई से रेत बजरी बोल्डर निकाल रहे थे।
देहरादून, जेएनएन। उप खनिज चुगान नीति 2016 में संशोधन से पहले बेशक नदियों में डेढ़ मीटर गहराई तक ही खुदान करने का नियम था, मगर कारोबारी फिर भी तीन मीटर तक या इससे भी अधिक गहराई से रेत, बजरी, बोल्डर निकाल रहे थे। डेढ़ मीटर तक की ही रायल्टी सरकार को मिल रही थी और बाकी का राजस्व सीधे खनन कारोबारियों की जेब में जा रहा था। अब कम से कम सरकार को तीन मीटर तक की रॉयल्टी मिल पाएगी। जिससे खनन से मिलने वाला 500 करोड़ रुपये के आसपास का राजस्व 900 से 1000 करोड़ रुपये पहुंचने की उम्मीद है। हालांकि, पर्यावरणविद् इसको लेकर चिंतित हैं और उनका कहना है कि जब पहले डेढ़ मीटर के नियम में तीन मीटर व अधिक की खुदाई की जा रही थी, जो अब और भी अधिक हो सकती है।
दूसरी तरफ खनन विभाग के निदेशक मेहरबान सिंह बिष्ट का कहना है कि उप खनिज चुगान नीति में किया गया संशोधन एक्ट के अनुरूप है। एक्ट ही इस बात की मंजूरी देता है कि नदियों में उप खनिज का चुगान कुछ प्रतिबंध के साथ तीन मीटर गहराई में किया जा सकता है। नई व्यवस्था में सरकार को अधिक राजस्व मिलेगा और यह प्रदेश की अर्थव्यवस्था के लिहाज से उचित कदम है। फिर भी पर्यावरणविदों की चिंता अपनी जगह कायम है। नदियों की सेहत पर इसका क्या असर पड़ेगा, इसका ठोस आकलन नहीं हो पाया है। पर्यावरणद् िव विज्ञानी न सिर्फ इस बात को लेकर चिंतित हैं, बल्कि उनका यहां तक कहना है कि जिन तौर-तरीकों से खनन किया जाना चाहिए, वह सिरे से गायब हैं। प्रदेश की नदियों से जो भी बालू, बजरी व बोल्डर उठाए जा रहे हैं, उनके लिए स्पष्ट नियम हैं। नियमों के अनुरूप श्रमिकों के माध्यम से और औजारों के प्रयोग से चुगान किया जाएगा। हालांकि, जिन खनन पट्टों से उप खनिज उठाए जाते हैं, वहां रात दिन जेसीबी चलती दिख जाएंगी। लिहाजा, सरकार के सामने इस बात की चुनौती रहेगी कि तीन मीटर की आड़ में खनन कारोबारी बेतहाशा रूप से नदियों का सीना न छलनी करने पाएं।
अधिकारी तर्क दे रहे हैं कि तीन मीटर तक खुदाई से पहले खनन पट्टाधारकों को पर्यावरणीय अनुमति लेनी जरूरी होगी। हालांकि, यह काम महज इसलिए भी औपचारिकता साबित हो रहा है, क्योंकि वर्तमान में चुगान संबंधी नियम धरातल पर नजर नहीं आ रहे।
पर्यावरणविद् पद्मभूषण डॉ. अनिल जोशी का कहना है कि राजस्व बढ़ाने से अधिक जरूरी है कि नदियों की सेहत का ध्यान रखा जाए। जिन नदियों में पर्याप्त मात्रा में उप खनिज जमा रहते हैं, वहां बाढ़ का खतरा कम रहता है। इसके उलट अधिक मात्रा में खनन किए जाने से पानी का बहाव तेज हो जाता है। खासकर अधिक ढाल वाले क्षेत्रों में अधिक खनन नहीं किया जाना चाहिए। नदियों की सतह से तीन मीटर तक गहराई में खनन करने पर उनकी सेहत प्रभावित होने का खतरा बढ़ गया है। सरकार को यह देखना चाहिए कि सुरक्षित ढंग से खनन किस तरह किया जाए।
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डॉ. एसएस भाकुनी (रिटायर्ड विज्ञानी, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान) का कहना है कि नदियों की सुरक्षा के लिए खनन सिर्फ बीच के भाग पर किया जाना चाहिए। क्योंकि किनारों की तरफ से उपखनिज निकालने पर भू-कटाव तेज हो जाता है। अब संशोधित नीति के बाद नदियों में और गहराई पर खुदाई होगी और इससे जलीय जीवों के प्राकृतिक वासस्थल भी प्रभावित होंगे। खासकर रेत के नीचे कई तरह के जीव निवास करते हैं। अधिक गहराई में खुदाई किए जाने पर नदी का पूरा पारिस्थितिक तंत्र गड़बड़ा सकता है।
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