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यहां बदल रहा है गजराज का मिजाज, जानिए क्या है इसके पीछे की वजह

उत्तर पश्चिमी सीमा में हाथियों के अंतिम पड़ाव उत्तराखंड में बदली परिस्थितियों में गजराज का मिजाज बदल रहा है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Mon, 12 Aug 2019 03:34 PM (IST)Updated: Mon, 12 Aug 2019 09:07 PM (IST)
यहां बदल रहा है गजराज का मिजाज, जानिए क्या है इसके पीछे की वजह
यहां बदल रहा है गजराज का मिजाज, जानिए क्या है इसके पीछे की वजह

देहरादून, केदार दत्त। देश की उत्तर पश्चिमी सीमा में हाथियों के अंतिम पड़ाव उत्तराखंड में बदली परिस्थितियों में गजराज का मिजाज बदल रहा है। स्वछंद आवाजाही के रास्तों में अवरोध के कारण उनका जंगल का दायरा सिमटा है और इसे वे आत्मसात भी करने लगे हैं। हाथियों के व्यवहार पर लंबे समय तक अध्ययन करने वाले वन्यजीव वैज्ञानिक डॉ. रितेश जोशी की रिपोर्ट तो यही बयां कर रही है। इसके मुताबिक हाथियों ने अपने भोजन में 20 नई प्रजातियों को शामिल किया है। यही नहीं, गलियारों में अवरोध के कारण लंबी प्रवास यात्राएं बाधित होने से इनके झुंड का आकार घटा है। ऐसे में जंगल की देहरी लांघने पर हाथियों का मनुष्य से टकराव बढ़ रहा है। 

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एक दौर में यमुना से लेकर ब्रह्मपुत्र नदी तक के क्षेत्र में विचरण करने वाले यहां के हाथी अब गलियारे (कॉरीडोर) बाधित होने के कारण दड़बों (जंगल का सीमित दायरा) में सिमटे हैं। वर्तमान में उत्तराखंड में राजाजी और कार्बेट टाइगर रिजर्व के साथ ही 11 वन प्रभागों में यमुना से लेकर शारदा नदी तक 6643.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है हाथियों का बसेरा। बावजूद इसके, एक से दूसरे जंगल में आवाजाही करने में उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ा रहा है। ऐसे में लंबी प्रवास यात्राएं करने वाले हाथियों की यह यात्राएं भी छोटी हुई हैं। 

कॉरीडोर बाधित होने के साथ ही जंगल और विकास के मध्य सामंजस्य न होने का असर हाथियों पर दिखने लगा है। ऐसे में उनके व्यवहार में भी बदलाव आ रहा है। वन्यजीव वैज्ञानिक डॉ.रितेश जोशी के मुताबिक पिछले दो दशक में हाथियों में काफी बदलाव देखे गए हैं। राजाजी टाइगर रिजर्व और उससे लगे क्षेत्रों में पूर्व में हुए अध्ययन के मुताबिक वहां हाथी करीब 40 प्रजातियों का ही भोजन करते थे। अब इन्होंने फल्दू, कैम, लसोड़ा, सागौन, जंगली अमरूद समेत 20 नई प्रजातियों को अपने भोजन में शामिल कर लिया है। 

डॉ. जोशी कहते हैं कि भोजन में नई प्रजाति शामिल करने का ये अर्थ नहीं कि जंगल में भोजन कम हुआ है। असल में हाथी समय और बदलते वातावरण के साथ खुद को ढालने लगे हैं। इसी कारण हाथियों के झुंड भी छोटे दिखने लगे हैं। लंबी प्रवास यात्रा बाधित होने से वे छोटी यात्राएं कर रहे हैं और इसी कारण झुंड भी छोटे हुए हैं। जो झुंड कभी 60 से 80 के बीच होते थे, वे अब 32-40 के बीच आ गए हैं। 

ये हैं चुनौतियां 

-चयनित 11 गलियारों को निर्बाध करना 

-विकास और जंगल में बेहतर समन्वय 

-जंगल से सटी की बस्तियों का पुनर्वास 

-रेल मार्गों पर लगातार बढ़ते हादसे 

-जंगलों में पानी की कमी 

ये हैं समाधान 

-प्रबंधन में सभी हितधारकों की भागीदारी हो अनिवार्य 

-कॉरीडोर पुनर्जीवित करने के साथ ही रास्ते करने होंगे निर्बाध 

-वासस्थल सुदृढ़ीकरण के साथ-साथ जंगलों में बनें बड़े जलकुंड 

-जंगल के कानून स्थानीय समुदाय की भागीदारी से हों लागू 

-ट्रेनों से हादसे थामने को विकसित हो अर्ली वार्निंग सिस्टम 

उत्तराखंड  में हाथी 

गणना वर्ष,   संख्या 

2017,  1839 

2015,  1779 

2012,  1559 

2008,  1346 

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