कोरोना को हराने की जिद ने मानव संसाधन प्रबंधन के नए युग की शुरुआत कर दी
कोरोना को हराने की जिद ने पूरे देश और उत्तराखंड में मानव संसाधन प्रबंधन के नए युग की शुरुआत कर दी है। सरकार का पूरा तंत्र पूरी शिद्दत के साथ अपने-अपने काम में जुटा है।
देहरादून, रविंद्र बड़थ्वाल। कोरोना महामारी को हराने की जिद ने पूरे देश और उत्तराखंड में मानव संसाधन प्रबंधन के नए युग की शुरुआत कर दी है। सरकार का पूरा तंत्र मुख्यमंत्री, मंत्री, आला नौकरशाह से लेकर जिलों में पुलिस-प्रशासन पूरी शिद्दत के साथ अपने-अपने काम में जुटा है। लॉकडाउन के बाद जब कई मोर्चों पर चुनौती बढ़ी तो कोरोना संदिग्धों को तलाश करने की नई चुनौती ने सरकार को नए सिरे से मानव संसाधन के उपयोग के लिए प्रेरित किया। कामकाज ठप होने से दैनिक मजदूर, कामगार के साथ ही असहायों, निराश्रितों की परेशानी बढ़ गई है। इन तक मदद पहुंचाने को सरकारी मशीनरी के खुद के हाथ पर्याप्त लंबे साबित नहीं हो रहे हैं। ऐसे में स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ ही स्कूलों-डिग्री कॉलेजों में एनसीसी कैडेट और एनएसएस स्वयंसेवकों की मदद ली जा रही है। इनकी सूचियां जिलों में प्रशासन को सौंपी गई हैं। है ना मानव संसाधन का बेहतर प्रबंधन।
परीक्षा दे रहे मेडिकल कॉलेज
प्रदेश में जब भी जन सुविधाओं और सेवाओं पर बात होती है तो सबसे पहले निशाने पर स्वास्थ्य महकमा ही होता है। कोरोना सबसे ज्यादा इसी महकमे की परीक्षा ले रहा है। ऐसे में सबसे ज्यादा जिम्मेदारी सरकारी मेडिकल कॉलेजों पर आ पड़ी है। देहरादून, श्रीनगर, हल्द्वानी के सरकारी मेडिकल कॉलेज स्थापित हो चुके हैं, लेकिन अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज अभी स्थापना की प्रक्रिया में है। इन सभी मेडिकल कॉलेजों के अस्पतालों को कोरोना वायरस संक्रमण रोकने के लिए खासतौर पर तैयार किया जा रहा है। ये सभी कॉलेज स्वास्थ्य सुविधाओं में चिकित्सा उपकरणों, चिकित्सकों और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी से जूझते रहे हैं। अब ये कमी दूर कर स्टाफ की भर्ती प्रारंभ हो चुकी है। तेजी से संसाधन जुटाने रहे हैं। कोरोना की जंग में इन कॉलेजों पर दूसरी जिम्मेदारी भी आ पड़ी। ये है कोरोना संदिग्धों की ट्रेकिंग व ट्रेसिंग में मदद।
एक ये भी है डर
कोरोना से उपजे संकट के इस दौर में राज्य के निजी स्कूलों पर फीस वसूल करने पर पाबंदी लगाई जा चुकी है। लॉकडाउन के चलते राज्य में सभी स्कूल-कॉलेज बंद हैं। नया शैक्षिक सत्र शुरू होने के मौके पर इस बंदी से स्कूल संचालकों में अजीब सा पसरा है। नई कक्षाओं में दाखिले के लिए नई किताबें-कॉपियों के लिए फरमान जारी किया गया था। इसके मुताबिक कई स्कूलों के बच्चे नई किताबें खरीद चुके हैं, लेकिन फीस जमा नहीं हुई है। कुछ स्कूलों को ये खतरा लग रहा है कि लॉकडाउन लंबा चला तो नई परिस्थितियों में बच्चों और अभिभावकों का मन बदल सकता है। यदि फीस जमा हो जाए तो ऐसे किसी अंदेशे से जूझना नहीं पड़ेगा। लिहाजा निजी स्कूलों ने अपनी एसोसिएशन के माध्यम से सरकार के दर पर दस्तक दी है। फीस लेने की अनुमति मांगी है। लॉकडाउन के दौर में ये अपने तरीके का डर है।
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काम पर लगी छोटी सरकार
तब्लीगी जमात के लोगों ने राज्य सरकार की आंखों से नींद उड़ा दी है। कोरोना की लड़ाई में शिद्दत से जुटी सरकारी मशीनरी की धड़कनें कोरोना के मामलों पर टिकी हैं। रिपोर्ट पॉजिटिव आते ही धड़कनें तेज। सबसे पहले संबंधित व्यक्ति को क्वारंटाइन करने के बाद उसके संपर्क में आने वालों को ढूंढ़ने की मशक्कत। पूरे प्रदेश में दो सेटेलाइट केंद्र और राज्य मुख्यालय हर जिलों में कोरोना संदिग्धों पर नजरें गड़ाए हुए हैं। लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में कोरोना संक्रमण को काबू में रखने की उम्मीदों को तब्लीगी जमातियों से सदमा लगा है। कब और कहां से कोरोना के ये संदिग्ध प्रकट होंगे, कहना मुश्किल। ऐसे में तोड़ निकाली सरकार के थिंक टैंक ने। इन जमातियों को सामने लाने को स्थानीय धर्मगुरुओं के साथ ही छोटी सरकार यानी पंचायतों और शहरी निकायों के प्रतिनिधियों को मुस्तैदी से काम पर लगाया गया। हर थाना ग्राम प्रधानों और पार्षदों के संपर्क में है।
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