बूढ़ी दीपावली के जश्न में डूबा समूचा जौनसार क्षेत्र, पढ़िए पूरी खबर
जनजाति क्षेत्र जौनसार शिलगांव व बोंदूर खत के लाखामंडल से जुड़े करीब दो सौ गांवों में बूढ़ी दीपावली का जश्न परंपरागत तरीके से चल रहा है। मंगलवार को जश्न के दूसरे दिन क्षेत्र में बड़ी दीपावली मनाई गई।
संवाद सूत्र, चकराता/साहिया/कालसी: जनजाति क्षेत्र जौनसार, शिलगांव व बोंदूर खत के लाखामंडल से जुड़े करीब दो सौ गांवों में बूढ़ी दीपावली का जश्न परंपरागत तरीके से चल रहा है। मंगलवार को जश्न के दूसरे दिन क्षेत्र में बड़ी दीपावली मनाई गई। रात में गाजे-बाजे के साथ होलियात निकलने के बाद ग्रामीण महिलाओं ने दोपहर को पंचायती आंगन में बिरुडी का त्योहार मनाया। इस दौरान ग्रामीण महिलाओं व पुरुषों ने एक दूसरे को अखरोट भेंट कर बूढ़ी दीपावली के जश्न की बधाई व सामाजिक सौहार्द बनाने का संदेश दिया। पांडवकालीन महत्व के शिव मंदिर लाखामंडल में बूढ़ी दीपावली के मौके पर कौरव-पांडव के बीच दो खेमे में बंटे ग्रामीणों ने रस्साकशी के जरिए अपनी ताकत दिखाई। रस्साकशी की यह रस्म लाखामंडल में पिछले कई वर्षों से ग्रामीण मनाते आ रहे हैं, जो सभी के लिए आर्कषण का केंद्र रहा!
जौनसार के उपलगांव खत, कोरुवा, समाल्टा, बाना, शैली, लखवाड़, बाढौ, उदपाल्टा, बमटाड़, रंगेऊ, बेहलाड़, कोरु, बोंदूर, पंजगांव, सिलगांव, विशायल, लाखामंडल व सीमांत कथियान क्षेत्र के शिलगांव खत से जुड़े कई गांवों में बूढ़ी दीपावली का जश्न जोर शोर से चल रहा है। मंगलवार को दूसरे दिन क्षेत्र में बड़ी दीपावली मनाई गई। इस दौरान ग्रामीणों ने मशालें जलाकर रात में गाजे-बाजे के साथ मंदिर प्रांगण व पंचायती आंगन में होलियात निकाली। कोरुवा, थैना, लाखवाड़, बिसोई के महासू-चालदा देवता मंदिर, कोटा-डिमोऊ व पंजिया में शिलगुर-विजट महाराज मंदिर में स्थानीय ग्रामीणों ने ढोल-दमोऊ की थाप पर हारुल के साथ जौनसारी परपंरागत तांदी-नृत्य की प्रस्तुति से अपने कुल देवता की स्तुति की।
कोरुवा मंदिर में परपंरागत पोशाक पहने ग्रामीणों ने लोक गीतों की प्रस्तुति से बूढ़ी दीपावली का जश्न मनाया। बाढौ गांव में दोपहर बाद बड़ी संख्या में जुटी ग्रामीण महिलाओं ने बिरुडी मेले का जश्न परंपरागत तरीके से मनाया। जौनसार के कई गांवों में बड़ी दीपावली के दिन रात में होलियात निकालने के बाद बिरुडी मनाई गई। इस दौरान ग्रामीण महिलाओं को अखरोट व नए धान की चिवड़ा मूड़ी भेंट की गई।
बिरुडी के जश्न में डूबी ग्रामीण महिलाओं ने पंचायती आंगन में लोक गीतों के साथ जैंता, रासौ व तांदी नृत्य की शानदार प्रस्तुति से समा बांधा। जनजाति क्षेत्र की इस परपंरागत दीपावली को देखने के लिए बाहर से कई लोग जौनसार पहुंचे। जश्न में शामिल होने आए पर्यटकों ने मेहमान नवाजी के साथ जौनसारी लोक संस्कृति की खुले मन से तारीफ की। कहा क्षेत्र विशेष की यह अद्भुत संस्कृति सामाजिक एकता व सौहार्द का प्रतीक स्वरुप है। इस मौके पर पूर्व आइजी अनंतराम चौहान, पूर्व कनिष्ठ उपप्रमुख कालसी खजान नेगी, आनंद सिंह चौहान, राजेश तोमर, बचना शर्मा, केसर सिंह, गीताराम तोमर, प्रताप सिंह रावत, सूरत सिंह, महावीर सिंह रावत, भाव सिंह, देवेंद्र रावत, विरेंद्र सिंह तोमर, ओमप्रकाश आदि मौजूद रहे।
लाखांमडल में कौरव-पांडव के बीच हुई रस्साकशी
चकराता: लोक परंपरानुसार बूढ़ी दीपावली के मौके पर प्रतिवर्ष पांडव कालीन महत्व के देवनगरी लाखामंडल स्थित शिव मंदिर में कौरव व पांडव के बीच रस्साकशी की रस्म होती है। स्थानीय ग्रामीण बूढ़ी दीपावली से कुछ समय पहले जंगल से बाबोई घास को काट कर लाते हैं। जिससे वह मंदिर में पौराणिक रस्म निभाने को बाबोई घास की रस्सी बनाते हैं। परंपरानुसार मंगलवार को बूढ़ी दीपावली के मौके पर स्थानीय ग्रामीण करीब बीस मीटर लंबी बाबोई घास की रस्सी को मंदिर में लेकर आए। इस दौरान मंदिर में गाजे-बाजे के साथ पुजारी सुरेश शर्मा ने इस रस्सी को देवकुंड के पास ले जाकर उसकी पूजा-अर्चना कर जल अर्पित किया। इसके बाद ग्रामीण कौरव-पांडव के बीच चली रस्साकशी की रस्म निभाई को दो खेमे में बंट गए। मंदिर में कौरव-पांडव के बीच ताकत की नुमाइश को करीब आधे घंटे चले रस्साकशी की इस पौराणिक परंपरा के तहत पांडव पक्ष के खेमे की जीत हुई। रस्स होने के बाद ग्रामीणों ने मंदिर में मत्था टेका व प्रसाद ग्रहण कर भगवान शिव से मनौती मांगी। ग्रामीणों बीच जोर आजमाइश को चली रस्साकशी विशेष आर्कषण का केंद्र रही।
पांडव नृत्य को मंदिर पहुंचे लावड़ी के ग्रामीण
बूढ़ी दीपावली के अवसर पर बोंदूर खत से जुड़े लावड़ी व दतरोटा क्षेत्र के करीब सौ ग्रामीण गाजे-बाजे के साथ पांडव नृत्य की प्रस्तुति के लिए प्राचीन शिव मंदिर लाखामंडल पहुंचे। मंगलवार को मंदिर में पूचा-अर्चना कर देव दर्शन के बाद ग्रामीणों ने मंदिर परिसर में ढोल-बाजे से पांडव नृत्य कर भगवान शिव की आराधना की। पांडव नृत्य को समूह के साथ लाखामंडल आए देव मालियों ने पहले यमुना नदी में स्नान कर मंदिर में करीब एक घंटे पांडव नृत्य की प्रस्तुति दी। पांडव नृत्य के दौरान कई ग्रामीण व महिलाओं में देवता के भाव पकड़ हुए, जिन्हें मंदिर से प्रसाद के रूप में चावल देकर शांत कराया।