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मसूरी से दिल्ली तक हुई थी एशिया की सबसे लंबी स्केटिंग, जानिए इसका स्वर्णिम इतिहास

पहाड़ों की रानी मसूरी का कलात्मक रोलर स्केटिंग और रोलर हॉकी में स्वर्णिम इतिहास रहा है। मसूरी से दिल्ली तक एशिया की सबसे लंबी स्केटिंग हुई थी।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sat, 22 Feb 2020 02:49 PM (IST)Updated: Sat, 22 Feb 2020 08:27 PM (IST)
मसूरी से दिल्ली तक हुई थी एशिया की सबसे लंबी स्केटिंग, जानिए इसका स्वर्णिम इतिहास
मसूरी से दिल्ली तक हुई थी एशिया की सबसे लंबी स्केटिंग, जानिए इसका स्वर्णिम इतिहास

देहरादून, सूरत सिंह रावत। कलात्मक रोलर स्केटिंग और रोलर हॉकी में पहाड़ों की रानी मसूरी का स्वर्णिम इतिहास रहा है। वर्ष 1880 से लेकर वर्ष 1970 तक मसूरी के स्केटिंग रिंक हॉल को एशिया के सबसे पुराने और बड़े स्केटिंग रिंक होने का गौरव हासिल था। 20वीं सदी में वर्ष 1981 से वर्ष 1990 के बीच रोलर स्केटिंग-रोलर हॉकी और मसूरी एक-दूसरे के पूरक हुआ करते थे। इस अवधि में अक्टूबर का महीना मसूरी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हुआ करता था। यहां प्रतिवर्ष होने वाली ऑल इंडिया रोलर स्केटिंग प्रतियोगिता में देशभर के जाने-माने स्केटर जुटते थे। इस दौरान लगभग एक पखवाड़े तक वे अपनी कलात्मक और स्पीड स्केटिंग के साथ ही रोलर हॉकी का मुजायरा पेश करते थे। वहीं, मसूरी  से दिल्ली तक एशिया की सबसे लंबी स्केटिंग हुई थी। 

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लोहे के पहिए वाले स्केट्स का इस्तेमाल करते थे खिलाड़ी 

वर्तमान में अत्यंत आधुनिक स्केट्स उपलब्ध हैं, लेकिन बीती सदी में ऐसी सुविधा नहीं थी। तब खिलाड़ी लोहे के पहिए वाले स्केट्स का इस्तेमाल करते थे। इसी कालखंड में मसूरी के पांच युवा स्केटर्स ने मसूरी से दिल्ली तक की 320 किमी की दूरी रोलर स्केटिंग करते हुए तय करने की ठानी। फिगर स्केटिंग में तीन बार के नेशनल चैंपियन रहे मसूरी के अशोक पाल सिंह के दिशा-निर्देशन में मसूरी के ही संगारा सिंह, आनंद मिश्रा, गुरुदर्शन सिंह जायसवाल, गुरुचरण सिंह होरा और गोपाल भारद्वाज 14 फरवरी 1975 को मसूरी से दिल्ली की रोलर स्केटिंग यात्रा पर निकले। उनकी यह यात्रा देहरादून, रुड़की, मुजफ्फरनगर और मेरठ होते हुए 18 फरवरी 1975 को राजधानी दिल्ली पहुंचकर संपन्न हुई थी। इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि तब यूरोपीय देशों में ही इस प्रकार के इवेंट हुआ करते थे। एशिया में सड़क से इतनी लंबी दूरी की स्केटिंग की यह पहली यात्रा थी। 

 

देहरादून में विजय लक्ष्मी पंडित ने की थी स्केटर्स की हौसलाफजाई 

इतिहासकार भारद्वाज स्वयं इस स्केटिंग टीम का हिस्सा रहे हैं। बताते हैं कि दिल्ली पहुंचने पर दिल्ली के तत्कालीन उपराज्यपाल डॉ. कृष्ण चंद्र स्वयं पांचों स्केटर्स के स्वागत को मौजूद थे। उन दिनों लोहे के पहिये वाले वाले स्केट्स होते थे और हर एक किमी स्केटिंग करने के बाद स्केट्स के पहिए बदलने पड़ते थे। बकौल भारद्वाज, मसूरी से स्केट्स पर यात्रा शुरू करने के बाद जब हम देहरादून पहुंचे तो राजपुर रोड पर विजय लक्ष्मी पंडित ने खड़े होकर हमारी हौसलाफजाई की थी। इसके बाद ही हम लोग आगे के सफर पर रवाना हुए। पहले दिन देहरादून, दूसरे दिन रुड़की, तीसरे दिन मुजफ्फरनगर और चौथे दिन मेरठ में हम लोगों ने पड़ाव डाला। पांचवें दिन दिल्ली पहुंचने पर हमारा जोरदार स्वागत हुआ। 

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1975 में की थी मसूरी से अमृतसर तक की स्केटिंग 

गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि इस अभियान से उत्साहित होकर टीम के सदस्यों ने मसूरी से अमृतसर की 490 किमी की दूरी रोलर स्केट्स से तय करने की ठानी। नौ दिसंबर 1975 को मसूरी के हम दस स्केटर्स सड़क मार्ग से अमृतसर के लिए रवाना हुए और 490 किमी की दूरी तय कर 17 दिसंबर 1975 को अमृतसर पहुंचे। इस टीम में आनंद मिश्रा, जसकिरण सिंह, सूरत सिंह रावत, अजय मार्क, संगारा सिंह, गुरुदर्शन सिंह, गुरचरण सिंह होरा, लखबीर सिंह, जसविंदर सिंह और मैं स्वयं शामिल था। 

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प्रोत्साहन के बिना दम तोड़ रही रोलर स्केटिंग और रोलर हॉकी 

इतिहासकार भारद्वाज बताते हैं कि आज आनंद मिश्रा और सूरत सिंह रावत इस दुनिया में नहीं रहे, जबकि गुरुदर्शन सिंह बहुत बीमार हैं। उनको आर्थिक मदद की जरूरत है, लेकिन आज तक किसी भी स्केटर्स को सरकार की ओर से न तो कोई सम्मान मिला और न मदद ही। इसी का नतीजा है कि आज मसूरी में रोलर स्केटिंग और रोलर हॉकी दम तोड़ रही है। 

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