ओलों की मार से महफूज रहेंगे सेब
उत्तराखंड में उत्पादित होने वाले सेब को भले ही ब्रांडिंग की दरकार हो, मगर अब यह ओलों की मार से तो महफूज होगा ही प¨रदे भी इसे नुकसान नहीं पहुंचा सकेंगे।
राज्य ब्यूरो, देहरादून
उत्तराखंड में उत्पादित होने वाले सेब को भले ही ब्रांडिंग की दरकार हो, मगर अब यह ओलों की मार से तो महफूज होगा ही प¨रदे भी इसे नुकसान नहीं पहुंचा सकेंगे। केंद्र के संबल से यह संभव हो सकेगा। सेब को ओलावृष्टि से बचाने के मद्देनजर किसानों को दिए जाने वाले एंटी हेल नेट के लिए हॉर्टिकल्चर टेक्नोलॉजी मिशन के तहत बजट को आठ से बढ़ाकर 16 लाख कर दिया गया है। यानी अब सेब उत्पादक दोगुना मात्रा में बागीचों के लिए एंटी हेल नेट ले सकेंगे। जाहिर है कि इससे उत्पादन में बढ़ोतरी होगी।
प्रदेश में 34685 हेक्टेयर क्षेत्र में सेब की पैदावार होती है। अक्सर फूल खिलने और फल लगने के दौरान ओलावृष्टि से सेब को भारी नुकसान पहुंचता है। ओलों से फल पर दाग पड़ जाते हैं। यही नहीं, पक्षी सेब को खासी क्षति पहुंचाते हैं। इस सबके मद्देनजर सेब उत्पादकों को उद्यान विभाग की ओर से एंटी हेल नेट (विशेष प्रकार का जाल) मुहैया कराया जाता है, लेकिन इसमें बजट काफी कम होने के कारण यह बेहद कम मात्रा में ही मिल पाता था। इसे देखते हुए सरकार की ओर से हॉर्टिकल्चर टेक्नोलॉजी मिशन में एंटी हेल नेट का बजट बढ़ाने का आग्रह केंद्र सरकार से किया गया।
केंद्र ने इसे स्वीकार किया और एंटी हेल नेट के लिए दिए जाने वाले बजट को आठ से बढ़ाकर 16 लाख कर दिया है। यह राशि मंजूर कर दी गई है। उद्यान निदेशक आरसी श्रीवास्तव ने इसकी पुष्टि की। उन्होंने बताया कि एंटी हेल नेट पर बागवानों को करीब 75 फीसद अनुदान दिया जाता है। इसमें केंद्र का योगदान 50 फीसद और राज्य का 25 फीसद होता है। उन्होंने बताया कि अब बजट में बढ़ोतरी होने के बाद अधिक संख्या में सेब उत्पादकों को एंटी हेल नेट दिए जा सकेंगे।
उन्होंने बताया कि एंटी हेल नेट से सेब के पेड़ों को इस प्रकार से ढका जाता है, जिससे ओलावृष्टि से तो सेब की रक्षा होती ही है, पक्षी भी नुकसान नहीं पहुंचा पाते। यही नहीं, जाल होने के कारण बंदरों की समस्या से भी काफी हद तक निजात मिल सकेगी। ऐसे में सेब उत्पादन को बढ़ाने में मदद मिलेगी और इससे किसानों की आय दोगुना हो सकेगी।