यूं तो होली में हुड़दंग का रहा है लंबा इतिहास, पढ़िए
यूं तो होली में हुड़दंग का लंबा इतिहास रहा है। हलांकि इस मानस पर्व पर हुड़दंग की प्रवृत्ति कहां से और कैसे आई यह कई शोध के बाद भी पता नहीं लगाया जा सका है।
देहरादून, अंकुर अग्रवाल। यूं तो होली में हुड़दंग का लंबा इतिहास रहा है। हलांकि, इस मानस पर्व पर हुड़दंग की प्रवृत्ति कहां से और कैसे आई, यह कई शोध के बाद भी पता नहीं लगाया जा सका है। अमूमन पर्व की पूर्व संध्या से ही सड़क पर अराजकता का माहौल, होली पर शराब का उपयोग अब ज्यादा होने लगा है, जिससे त्योहार का स्वरूप बदल रहा है। अपने गुलाटी जी टाइप सामाजिक लोग तो होली के मौके पर पूरे दिन घर में दुबके रहते हैं। शाम में कुछ दोस्तों या रिश्तेदारों से मिलकर औपचारिकताएं पूरी करते हैं। बीते कुछ सालों में होली का जो स्वरूप है वह मूल स्वरूप से जुदा हो गया है। प्रह्लाद का जीवन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रमाण है और होलिका दहन हमें अंदर की बुराई का अंत कर अच्छाई को अपनाने का संदेश देती है, लेकिन इससे विपरीत कुछ लोगों ने होली को केवल हुड़दंग का जरिया बना लिया है।
बुराई का भी करें दहन
उमंग के इस त्योहार में जब होलिका जलती है तो बुराई को भी दहन किया जाना चाहिए। हर इंसान में कोई न कोई कमी तो जरूर होती है। होली पर प्रण लें कि कम से कम किसी एक बुराई का त्याग किया जाए। इससे खुद में सुधार करने की प्रक्रिया जारी रहेगी और इस बहाने आत्म सुधार के लिए मंथन भी हो जाएगा। यह जरूरी है कि कम से कम एक अच्छाई को त्योहार पर अपनाई जाए। यदि कुछ न करना हो तो पौधा रोपने का संकल्प ही कर लें। हर आदमी का यह छोटा सा कदम पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक एक बड़ी पहल होगा। प्रदेश में इन दिनों कोरोना वॉयरस का खौफ है। ऐसे में लोगों को चाहिए कि वह होली पर इस बीमारी से सचेत रहें। कोई व्यक्ति बीमार है तो उसे रंग लगाने से परहेज करें। पर्वों पर यदि हम इस प्रकार के छोटे-छोटे सुधार खुद में करेंगे तो खुद को बेहतर व्यक्ति बनाने के साथ दूसरों को भी प्रेरणा देंगे।
लालपरी के लिए एडवांस बुकिंग
जिस होली की परंपराओं में सनातन धर्म की गरिमा और उच्च भारतीय संस्कृति की झलक मिलती है, पता नहीं कब से इस पर्व को मनाने के लिए लोगों को लालपरी की जरूरत पड़ने लगी। होलिका दहन से लेकर होली की शाम तक जो भी डोलता हुआ ना दिखे, उसे तो भाई लोग हिकारत भी नजरों से देखते हैं। दूध शर्बत या पल्लर से होली पर मेहमानों का स्वागत करने वाले पूरे दिन घरों में दुबके रहते हैं। माहौल ऐसा रहता है कि आधी आबादी तो सड़क पर निकलने से हिचकने लगी है। इसके बावजूद अपने पियक्कड़ भाई लोग कहां मानने-सुनने वाले हैं। ये तो होली मनाने के लिए हफ्ते-पहले से तैयारी में जुटे हुए थे। लालपरी की तो एडवांस बुकिंग करा दी थी। भाई लोगों ने तो होम डिलीवरी तक की व्यवस्था की हुई है। लेकिन जरा संभल के खाकी वाले भी सजग है। ऊंच नीच हुई तो पूरा वसंत सलाखों के पीछे गुजरेगा।
पर्यावरण संरक्षण का दें संदेश
होली रंगों व उल्लास का त्योहार है। यह त्योहार हर रंजिश या विरोध को भुलाकर मिलन का प्रतीक है। होलिका दहन के रूप में होली पर बुराई पर अच्छाई की जीत भी भी प्रेरणा मिलती है। होली पर अपनों संग नाचना या गाना गलत नहीं है, लेकिन किसी अपरिचित को जबरदस्ती रंग लगाना उचित नहीं। हर शहरवासी का यह प्रयास रहे कि होली का माहौल खुशनुमा ही रहे। कोई इस डर के कारण आपके सामने ही न आए कि कहीं आप उसे रंग न देंगे, तो यह गलत है। लोग प्रयास करें कि वे सिर्फ सूखे व हर्बल रंगों का प्रयोग भूल कर भी न करें। कोशिश यह की जाए कि त्योहार के बहाने पर्यावरण का संरक्षण भी हो। जो लोग होली पर पानी अत्याधिक बर्बाद करते हैं, जो ठीक नहीं है। पानी बर्बाद करने के बजाए जल संरक्षण के लिए सोचें।
यह भी पढ़ें: Holi 2020: उत्तराखंड में होली की उमंग, फूलों और प्राकृतिक रंगों से खेली होली