267 करोड़ खर्च, फिर भी 74 फीसद सीवर निस्तारित नहीं Dehradun News
राजधानी देहरादून में सीवर निस्तारण की परियोजनाओं से सिर्फ 26 फीसद सीवर का ही निस्तारण हो पा रहा है।
देहरादून, जेएनएन। यकीन नहीं होता कि यह हाल उस राजधानी दून का है, जहां से पूरे प्रदेश की मशीनरी का संचालन किया जाता है। सीवर निस्तारण की जिन अतिमहत्वकांक्षी परियोजनाओं को पूरा करने में 10 साल का लंबा समय लग गया और 267 करोड़ रुपये से अधिक की भारी-भरकम राशि खर्च कर दी गई। उन परियोजनाओं से सिर्फ 26 फीसद सीवर का ही निस्तारण हो पा रहा है। कहने को तो हमने 115 एमएलडी (मिलियन लीटर डेली) से अधिक क्षमता के सात सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तैयार कर लिए हैं, मगर इनमें महज 30 एमएलडी के करीब ही सीवर जा रहा है।
वर्ष 2008 तक एडीबी पोषित, जवाहरलाल नेहरू नेशनल अर्बन रिन्यूवल मिशन (जेएनएनयूआरएम) और 13वें वित्त आयोग की अलग-अलग योजना के तहत दून की सीवरेज व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने का काम शुरू कर लिया गया था। 2015-2016 से 2017-18 के बीच ये काम पूरे कर लिए गए। ऐसे में उम्मीद थी कि अब दून का सीवर न तो नदी-नालों में उड़ेला जाएगा, न ही वह शॉक-पिट के माध्यम से भूगर्भ को प्रदूषित करेगा। हालांकि, दून की उम्मीदों को तब झटका लगा, जब पता चला कि बड़ी संख्या में नव-निर्मित सीवर लाइनें जगह-जगह मिट्टी-पत्थर और अन्य कबाड़ से चोक हो रखी हैं, या जिन पुरानी लाइनों के नेटवर्क को नई मेन लाइनों से जोड़ा गया था, वह क्षतिग्रस्त होकर चोक हो गई हैं।
अब स्थिति यह है कि सीवर लाइनों के संचालन का जिम्मा संभालने वाले जल संस्थान ने अकेले पेयजल निगम (जेएनएनयूआरएम और 13वां वित्त आयोग पोषित योजना का निर्माण करने वाली एजेंसी) की 200 किलोमीटर लाइनों को अपनी सुपुर्दगी में लेने से इनकार कर दिया है। दूसरी तरफ एडीबी विंग ने जो 128 किलोमीटर नई लाइनें बिछाई थीं, उनसे तो सीवर ट्रीटमेंट प्लांट में जा रहा है। मगर करीब 400 किलोमीटर की पुरानी सीवर लाइनें जगह-जगह क्षतिग्रस्त हो जाने से इनका सीवर निस्तारित नहीं किया जा रहा।
सीवर निस्तारण की यह है तस्वीर
कार्यदायी संस्था एडीबी विंग
कुल नई सीवर लाइन, 128 किलोमीटर
नेटवर्क से जुड़ी पुरानी सीवर लाइन, करीब 400 किलोमीटर
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, कारगी में 68 एमएलडी
प्लांट में सीवर जा रहा, महज 12 एमएलडी
कार्यदायी संस्था पेयजल निगम (जेएनएनयूआरएम/13वां वित्त आयोग)
कुल बिछाई गई सीवर लाइन, करीब 270 किलोमीटर
जल संस्थान ने सुपुर्दगी ली, महज 70 किलोमीटर
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता और निस्तारण
मोथरोवाला, 40 एमएलडी के दो प्लांट (निस्तारण औसतन 13 एमएलडी)
इंदिरा नगर, पांच एमएलडी (निस्तारण 2.5 एमएलडी)
दून विहार, एक एमएलडी (निस्तारण 0.4 एमएलडी)
सालावाला, 0.71 एमएलडी (निस्तारण 0.30 एमएलडी)
विजय कॉलोनी, 0.42 एमएलडी (निस्तारण 0.20 एमएलडी)
दून को 1000 किलोमीटर लाइनों की जरूरत
यदि पूरे दून के सीवर को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों तक लाना है तो इसके लिए कम से कम 1000 किलोमीटर की सीवर लाइनों की जरूरत पड़ेगी। अभी एडीबी विंग और पेयजल निगम की ओर से बिछाई गई लाइनों को देखें तो 398 किलोमीटर लाइनें ही बिछ पाई हैं। यानी कि अभी भी 602 किलोमीटर सीवर लाइनों की जरूरत है। यह सब इसलिए हुआ, क्योंकि देहरादून की जरूरत के हिसाब से समग्र प्लान तैयार नहीं किया गया और उन जर्जर लाइनों को भी ठीक मान लिया गया, जो आज जब-तब चोक ही रहती हैं।
पेयजल निगम के अधिशासी अभियंता पल्लवी ने बताया कि यह सच है कि अभी अधिकतर संख्या में सीवर के कनेक्शन जारी नहीं किए जा सके हैं। इसकी बड़ी वजह सीवर लाइनों का हस्तांतरण न हो पाना है। इन दिनों लाइनों को लेकर संयुक्त सर्वे किया जा रहा है। जिन क्षेत्रों में लाइनें दुरुस्त मिल रही हैं, वहां जल संस्थान कनेक्शन जारी कर रहा है। जहां लाइनों में दिक्कत है, वहां सुधार किया जाएगा। इसके अलावा लोनिवि और अन्य एजेंसियों के बेतरतीब काम के चलते भी लाइनों में दिक्कत आ रही है और उनमें मलबा भर रहा है।
एडीबी विंग के उप परियोजना निदेशक विनय मिश्रा ने बताया कि कारगी में 68 एमएलडी का सीवेज ट्रीटमेंट प्लान 50 से अधिक साल की जरूरत के लिए बनाया गया है। हालांकि, अभी इसमें बेहद कम सीवर जा पा रहा है। इसकी बड़ी वजह जल संस्थान की पुरानी लाइनों का चोक होना है। अब इन लाइनों को दुरुस्त करने के लिए उनके स्तर पर ही काम किया जाएगा।
धीमी चाल ने भी खड़ी की मुसीबत
सीवरेज योजना का काम डेडलाइन बढ़ाने के बाद भी 2014 तक पूरा हो जाना चाहिए था। मगर, यह काम धीरे-धीरे कर अलग-अलग 2016 से 2018 के बीच पूरा होता रहा। ऐसे में जिन इलाकों में पहले सीवर लाइन बिछ गई थी, उन्हें चालू नहीं किया जा सका। इसके लिए इस अवधि में तमाम निर्माण कार्य होने से लाइनों में कहीं मिट्टी-पत्थर भरते चले गए तो कहीं उनके चैंबर बंद कर दिए गए। इसके चलते कहीं सीवर लाइन अब तक बंद है तो कहीं उनके चोक होने की स्थिति भी पैदा हो रही है।
दूसरी तरफ पेयजल निगम ने बिना उचित तकनीकी आकलन के रिस्पना नदी के बीचों बीच भी लाइन डाल दी है। यदि यह लाइन कभी चोक होती है तो उसकी मरम्मत करना आसान काम नहीं। वहीं, अगर यह कभी चोक होकर ओवरफ्लो होने लगी तो इसका क्या परिणाम हो सकते हैं, इस तरफ भी अधिकारियों ने ध्यान ही नहीं दिया।
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