40 फीसद नदियों ने बदला स्वरूप, ग्लेशियर खत्म होने से बन रही बरसाती नदियां
उत्तराखंड की 40 फीसद नदियों ने स्वरूप बदल लिया है। ग्लेशियर खत्म होने के चलते ये बरसाती नदियां बनती जा रही हैं, जो चिंता का विषय हैै।
देहरादून, [जेएनएन]: उत्तराखंड की तकरीबन 40 फीसद नदियां अपना स्वरूप बदल रही हैं। जिन नदियों को ग्लेशियर का पानी मिलता था, वो ग्लेशियर समाप्त होने से बरसाती नदियां बनती जा रही हैं। इसे लेकर पर्यावरण विशेषज्ञों और वक्ताओं ने विचार-विमर्श कर चिंता जताई। इस दौरान रिस्पना नदी को पुनर्जीवित करने के लिए स्कूली छात्रों, अधिकारियों, पर्यावरणविद और समाजसेवियों ने एक-साथ शपथ ली।
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र (यूसर्क), ग्राफिक एरा डीम्ड विवि और ग्राफिक एरा पर्वतीय विवि के संयुक्त तत्वावधान में रिस्पना और कोसी नदी के संरक्षण के लिए आयोजित विमर्श में देहरादून की ऐतिहासिक नदी रिस्पना के गंदे नाले में तब्दील होने पर चिंता जताई गई। वहीं उसे पुनर्जीवित करने के लिए समाज के हर वर्ग को रिस्पना की सफाई में सहयोग देने का भी आह्वान किया गया।
ग्राफिक एरा विवि के सभागार में 'उत्तराखंड राज्य के जलस्रोत: दशा एवं दिशा' विषय पर आयोजित दो दिवसीय विमर्श शुक्रवार से शुरू हुआ। इस मौके पर मुख्य अतिथि ऋषिकेश स्थित परमार्थ निकेतन आश्रम के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद मुनि महाराज, यूसर्क के निदेशक प्रो. दुर्गेश पंत, ईको टास्क फोर्स के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल हरिओम सिंह राणा ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की। चिदानंद मुनि महाराज ने कहा कि 60 के दशक में रिस्पना नदी में बरसात के दौरान बाढ़ आया करती थी।
रिस्पना को बढ़ती मानवीय हलचल ने ही दम तोड़ने को मजबूर कर दिया। अब उसे पुनर्जीवित करने की भी सामूहिक जिम्मेदारी है। कहा कि देश में वर्ष 2024 तक 50 फीसद लोगों को पीने के लिए साफ पानी नहीं मिलेगा। देश में आज भी हर रोज 1200 से लेकर 1600 बच्चे गंदे पानी से कुपोषण का शिकार होकर मर रहे हैं। यदि हमें अपना कल बचाना है तो आज से ही प्राकृतिक जलस्रोतों, नदी, झीलों और झरनों का संरक्षण शुरू करना होगा। कहा कि देहरादून के लिए रिस्पना नदी गंगा के समान है।
उन्होंने सभागार में बैठे सभी लोगों को रिस्पना नदी के संरक्षण की शपथ दिलाई। इस मौके पर अमेरिकन एम्बेसी के प्रतिनिधि व कार्यक्रम निदेशक स्टुअर्ट डेविस और दृष्टिबाधित क्रिकेट विश्व कप विजेता टीम के कोच महंतेश एवं सचिव शैलेंद्र ने भी लोगों से पर्यावरण संरक्षण की अपील की।
यूसर्क रिस्पना-कोसी पर कर रहा काम
सम्मलेन के आयोजक और यूसर्क के निदेशक प्रोफेसर दुर्गेश पंत ने कहा कि उनका संस्थान देहरादून में रिस्पना और अल्मोड़ा की कोसी नदी के पुनर्जीवन पर काम कर रहा है। कहा कि कोसी नदी के अधिकतर जलस्रोत सूख गए हैं। वहीं रिस्पना नदी देहरादून घाटी में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। बताया कि रिस्पना के पानी में एक बैक्टीरिया पाया गया है, जो पेट के रोगों की जड़ है। जबकि, नदी के गंदले पानी पर दून की बड़ी आबादी अभी भी निर्भर है।
41 किमी बची कोसी की लंबाई
कोसी और रिस्पना नदियों पर जानकारों ने प्रजेंटेशन दिए। मैड संस्था के अभिजय नेगी ने कहा कि रिस्पना का स्वरूप बिगाडऩे में नदी किनारे अतिक्रमण बड़ी वजह है। कुमाऊं विवि के प्रो. जेएस रावत ने बताया कि अल्मोड़ा की कोसी नदी, जो ग्लेशियर के पानी से भरी रहती थी, अब बरसाती नदी बन गई है। कोसी नदी की लंबाई 60 वर्ष पहले 225 किलोमीटर थी, जो अब घटकर 41 किलोमीटर रह गई है। कुमाऊं विवि के प्रो. सीसी पंत ने नैनीताल के प्रसिद्ध नैनी झील की स्थिति से भी रूबरू करवाया। बताया कि लगातार ड्राई सीजन रहने की वजह से तालाब का जलस्तर गिर रहा है। नैनी झील में हर वर्ष करीब 69 घनमीटर मलबा और कचरा समा रहा है। भीमताल झील भी लगातार सिकुड़ रही है। ये झील 30 किमी से सिकुड़कर 25 किमी ही रह गई है।
नदी कैचमेंट एरिया को बचाएं
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी के वैज्ञानिक आरपी पांडे ने बरसात के पानी के इस्तेमाल पर जोर दिया। पांडेय के मुताबिक नदियों के पुनर्जीवन के लिए नदी के कैचमेंट एरिया को बचाए जाने की जरूरत है। ग्राफिक एरा के चेयरमैन कमल घनसाला ने कहा कि उत्तराखंड की नदियों और तालाबों में पानी कम होना गंभीर विषय है। इस दिशा में समय रहते उचित कदम उठाए जाने की जरूरत है।
ये साइंटिस्ट हुईं सम्मानित
- अनिता पांडे
(साइंटिस्ट, जीबी पंत विवि कुमाऊं)
- रुचि बडोला
(भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून)
-डॉ.किरन रावत नेगी
(हिमालयन पर्यावरण संस्थान, हेस्को)
- जाह्नवी मिश्रा रावत
(वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून)
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