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Adventure Tourism: रोमांच के शौकीनों की पहुंच से दूर भारत-तिब्बत सीमा पर स्थित गर्तांगली, अभी तक नहीं खुल पाया मार्ग

उत्तराखंड में रोमांच के शौकीनों को आकर्षित करने और साहसिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई योजनाएं बनाई हैं। इनमें से एक भारत-तिब्बत सीमा पर स्थित गर्तांगली भी है। यह साहसिक पर्यटन के शौकीनों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Fri, 25 Jun 2021 08:27 AM (IST)Updated: Fri, 25 Jun 2021 01:58 PM (IST)
Adventure Tourism: रोमांच के शौकीनों की पहुंच से दूर भारत-तिब्बत सीमा पर स्थित गर्तांगली, अभी तक नहीं खुल पाया मार्ग
रोमांच के शौकीनों की पहुंच से दूर भारत-तिब्बत सीमा पर स्थित गर्तांगली।

विकास गुसाईं, देहरादून। उत्तराखंड में रोमांच के शौकीनों को आकर्षित करने और साहसिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई योजनाएं बनाई हैं। इनमें से एक भारत-तिब्बत सीमा पर स्थित गर्तांगली भी है। यह साहसिक पर्यटन के शौकीनों को अपनी ओर आकर्षित करता है। गर्तांगली उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री नेशनल पार्क में भैरवघाटी को नेलांग को जोड़ने वाले मार्ग पर स्थित है।

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कहा जाता है कि पेशावर के पठानों ने एक हजार फीट की ऊंचाई पर चट्टान काटकर भारत-चीन सीमा के बीच इस व्यापारिक मार्ग का निर्माण किया था। 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद इसे बंद कर दिया गया। अब यह मार्ग पूरी तरह जर्जर हो चुका है। इस मार्ग को इंटरनेट मीडिया में भी साहसिक पर्यटक क्षेत्र के रूप में दिखाया जाता है। इसे खोलने के लिए प्रदेश सरकार ने कई दावे किए और केंद्र में दस्तक भी दी, लेकिन इसके बावजूद तक यह मार्ग नहीं खुल पाया है।

झील की गहराई में सी प्लेन

उत्तराखंड का नैसर्गिक सौंदर्य बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां पर्यटक स्थलों की कोई कमी नहीं है। इन पर्यटक स्थलों को और बेहतर बनाने के लिए सरकार तमाम योजनाएं बनाती है। इनमें से एक सी प्लेन योजना भी है। सरकार ने कुछ वर्ष पूर्व प्रदेश की झीलों में सी प्लेन उतारने की योजना बनाई थी। कहा गया कि इससे पर्यटन का रोमांच बढ़ेगा और पर्यटक सीधे इन झीलों तक पहुंच सकेंगे।

फोकस में टिहरी झील को रखा गया। कहा गया कि सबसे पहले सी प्लेन टिहरी झील में उतारा जाएगा। इसके लिए जगह का भी चयन किया गया, मानक तक बनाने की बात हुई। कंपनियों से वार्ता करने के लिए दिशा-निर्देश तक जारी किए गए। अफसोस, कुछ माह तक जोर शोर तक चली कसरत के बाद यह योजना झील की गहराईयों में लापता सी हो गई। अब तो इस बारे में कोई चर्चा भी नहीं है।

पहाड़ी गांवों में नहीं बजता फोन

आज जमाना फोर जी से फाइव जी की ओर जा रहा है, लेकिन उत्तराखंड के कई गांव ऐसे हैं, जहां आज भी मोबाइल की घंटी नहीं बजती। कारण, संचार सेवाओं का बेहद लचर होना। यह स्थिति उन गांवों की भी है, जो प्रदेश के सीमांत क्षेत्रों से लगे हैं और सामरिक दृष्टि से बेहद ही महत्वपूर्ण हैं। स्थानीय निवासी व जनप्रतिनिधि वर्षों से प्रदेश सरकार से इन क्षेत्रों में संचार सुविधाएं दुरुस्त करने की मांग कर रहे हैं लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सका है। स्थिति यह है कि चाहे आपदा हो या फिर मौजूदा महामारी का दौर, यहां के निवासियों को आपातकालीन नंबर मिलाने के लिए भी कई किमी दूर जाना पड़ता है। नेपाल से सटी सीमा के गांव के लोग तो भारत के बजाय नेपाली टेलीकाम कंपनियों के नंबर इस्तेमाल कर रहे हैं। वैसे, यह मसला केंद्र के समक्ष भी उठाया जा चुका है।

कोरोना ने थामे रोजगार के कदम

सरकार ने युवाओं के रोजगार के लिए कई योजनाएं बनाईं। कोरोना के कारण घर लौटे युवाओं के लिए ये योजनाएं सार्थक भी सिद्ध हो रही हैं। हालांकि, इनमें एक योजना कोरोना के कारण ही आगे नहीं बढ़ पा रही है। यह योजना वीर चंद्र सिंह गढ़वाली योजना के तहत इलेक्ट्रिक बस लेने की है। इसमें इलेक्ट्रिक अथवा अन्य महंगी बस की खरीद पर सरकार 50 फीसद तक की सब्सिडी देगी।

यदि युवा स्वयं इन बसों को किसी मार्ग पर नहीं चला सके तो फिर इन्हें परिवहन निगम में संचालन को लगाया जाएगा। फरवरी 2020 में यह योजना शुरू हुई। मार्च में कोरोना के कारण लाकडाउन लग गया। इस कारण युवाओं ने इसमें रुचि नहीं दिखाई। इस वर्ष शुरुआत में अच्छे पर्यटन सीजन की उम्मीद जताई गई। इस बीच कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने परिवहन व्यवसाय को काफी नुकसान पहुंचाया। ऐसे में युवा इसके लिए आगे नहीं आ रहे हैं।

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