उपयोगिता प्रमाणपत्र से कन्नी नहीं काट सकेंगी पंचायतें
प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायतों को सीधे खाते में पैसा मिलने के बाद अब जवाबदेही के मोर्चे पर भी चुस्त-दुरुस्त होना पड़ेगा।
राज्य ब्यूरो, देहरादून
प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायतों को सीधे खाते में पैसा मिलने के बाद अब जवाबदेही के मोर्चे पर भी चुस्त-दुरुस्त होना पड़ेगा। बजट का समयबद्ध उपयोग करने के साथ ही उपयोगिता प्रमाणपत्र देना बाध्यकारी हो गया है। इसमें हीलाहवाली होने पर उन्हें आगे बजट मिलने में दिक्कतें पेश आएगी।
प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायतों को सीधे खाते में पैसा देने के लिए ऑनलाइन व्यवस्था प्रारंभ की जा चुकी है। इसके साथ ही पंचायतों को एकीकृत वित्तीय प्रबंधन प्रणाली (आइएफएमएस) से भी जोड़ दिया गया है। अभी तक पंचायतों को केंद्र सरकार की ओर से टाइड और अनटाइड फंड बतौर अनुदान दिया जा रहा है। इन दोनों ही मदों में मिलने वाले बजट का दिए गए निर्देशों के मुताबिक इस्तेमाल करना होगा। यह व्यवस्था भी बाध्यकारी रूप ले चुकी है।
प्रदेश को अपनी सभी पंचायतों को 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के मुताबिक अनटाइड फंड की अगली किस्त लेने के लिए आइएफएमएस पर पूरी सूचना केंद्र सरकार को देनी पड़ी है। इससे पहले पंचायतों को टाइड फंड के रूप में धन दिया जा चुका है। इसमें विभिन्न योजनाओं में धन खर्च करना होगा। इस धनराशि के इस्तेमाल के बाद उन्हें उपयोगिता प्रमाणपत्र देना होगा। वित्त सचिव अमित नेगी का कहना है कि पंचायतों को आगे अनुदान लेने के लिए पीछे दी गई धनराशि का उपयोगिता प्रमाणपत्र देना होगा। इस संबंध में सभी पंचायतों को निर्देश दिए गए हैं। इसमें भविष्य में पंचायतों के स्तर पर लापरवाही बरती गई तो उन्हें अनुदान मिलने में दिक्कतें उठानी पड़ेंगी।