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वनोपज से भी संवरेगी सूबे की आर्थिकी

बदली परिस्थितियों में 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में वनोपज भी आर्थिकी संवारने का प्रमुख जरिया बन सकती है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 26 May 2020 07:34 PM (IST)Updated: Tue, 26 May 2020 07:34 PM (IST)
वनोपज से भी संवरेगी सूबे की आर्थिकी
वनोपज से भी संवरेगी सूबे की आर्थिकी

राज्य ब्यूरो, देहरादून: बदली परिस्थितियों में 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में वनोपज भी आर्थिकी संवारने का प्रमुख जरिया बन सकती है। वन महकमे ने इस संबंध में शासन को सुझाव दिए हैं कि राज्य में पीपीपी मोड पर तारपीन के तेल की यूनिटों, फर्नीचर इकाइयों की स्थापना, पारिस्थितिकीय पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ ही विभाग के वन विश्राम गृहों को ऑनलाइन कर न सिर्फ रोजगार के अवसर सृजित किए जा सकते हैं, बल्कि इससे सूबे की आर्थिकी भी मजूबत होगी। इन सुझावों के मद्देनजर शासन स्तर पर इन्हें लेकर मंथन भी शुरू हो गया है।

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कोरोना महामारी के दृष्टिगत लॉकडाउन से राज्य की अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमराई हुई है। इसे अब पटरी पर लाने के लिए सरकार कसरत में जुटी है। पूर्व मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडेय की अध्यक्षता में गठित कमेटी अपनी सिफारिशें सरकार को सौंप चुकी है, जबकि कृषि मंत्री सुबोध उनियाल की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट आनी बाकी है। इसके साथ ही अब वनाधारित उद्यमों पर भी जोर दिया जाने लगा है।

वन विभाग की ओर से मौजूदा परिस्थितियों से उबरने और आजीविका के नए साधन तलाशने के मद्देनजर शासन को कई सुझाव देते हुए इसका विस्तृत ब्योरा भेजा गया है। इसमें सबसे अहम है चीड़ के पेड़ों से मिलने वाली वनोपज लीसा (रेजिन) से तारपीन का तेल निकालने का कार्य पीपीपी मोड में देने का सुझाव। असल में राज्य के 15 फीसद भूभाग में पसरे चीड़ के पेड़ों से सालाना औसन डेढ़ लाख कुंतल लीसा मिल रहा है। नीलामी के जरिये इसे लीसा को तारपीन का तेल समेत अन्य उत्पाद बनाने वाली पंजीकृत फर्माें को बेचा जाता है, जिससे विभाग को हर साल करोड़ों की आय होती है।

वन विभाग के मुखिया प्रमुख मुख्य वन संरक्षक जय राज ने सुझाव दिया है कि यदि वर्तमान में पीपीपी मोड पर तारपीन तेल की यूनिटों की स्थापना की जाए तो यह बड़े अवसर के रूप में सामने आएगा। उन्होंने कहा कि इसी तरह स्थानीय स्तर पर फर्नीचर यूनिटों को वन विकास निगम के माध्यम से लकड़ी की आपूर्ति की जाए तो इससे भी रोजगार के अवसर सृजित होंगे। उन्होंने बताया कि राज्य में पारिस्थितिकीय पर्यटन को बढ़ावा देकर ग्रामीणों को इससे जोड़ने, विभाग के वन विश्राम गृहों की ऑनलाइन बुकिंग से भी काफी कुछ लाभ मिल सकता है।


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