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आरडीजी न ग्रीन बोनस, आखिर यह कैसी सजा

15वें वित्त आयोग के समक्ष सोमवार को उत्तराखंड का दर्द उभरकर सामने आ गया। अहम बात है कि सत्तापक्ष भाजपा और उसके धुर विरोधी दलों कांग्रेस, माकपा, भाकपा ने एक सुर में इस दर्द को बयां किया।

By JagranEdited By: Published: Tue, 16 Oct 2018 03:01 AM (IST)Updated: Tue, 16 Oct 2018 03:01 AM (IST)
आरडीजी न ग्रीन बोनस, आखिर यह कैसी सजा

राज्य ब्यूरो, देहरादून

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15वें वित्त आयोग के समक्ष सोमवार को उत्तराखंड का दर्द उभरकर सामने आ गया। अहम बात है कि सत्तापक्ष भाजपा और उसके धुर विरोधी दलों कांग्रेस, माकपा, भाकपा ने एक सुर में इस दर्द को बयां किया। यह दर्द है 14वें वित्त आयोग में उत्तराखंड की घोर उपेक्षा। हिमालयी राज्यों में एकमात्र उत्तराखंड राज्य को ही रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट (आरडीजी) से वंचित रखा गया। वहीं हिमालय के पारिस्थितिकी तंत्र को बचाए रखने और देश को सालाना हजारों करोड़ रुपये की पर्यावरणीय सेवाएं देने के एवज में पिछड़ापन भोग रही बड़ी आबादी के विकास के लिए अतिरिक्त मदद के मामले में उत्तराखंड के हाथ सिर्फ मायूसी लगी है। पक्ष-विपक्ष समेत सभी दलों ने एकजुट होकर राज्य को आरडीजी और ग्रीन बोनस देने की पुरजोर मांग की।

राज्य ने बिछाए पलक पांवड़े

15वें वित्त आयोग के इस तीन दिनी बहुप्रतीक्षित दौरे का राज्य सरकार बेताबी से इंतजार कर रही थी। लिहाजा आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह, चार सदस्यों समेत कुल 18 सदस्यीय दल का राज्य सरकार ने सोमवार को पलक पांवड़े बिछाकर स्वागत किया। वित्त मंत्री प्रकाश पंत ने सोमवार को जौलीग्रांट एयरपोर्ट पहुंचकर आयोग के दल की अगवानी की। दौरे के पहले दिन आयोग ने सबसे पहले सचिवालय में विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ मुलाकात कर जन अपेक्षाओं की थाह ली। सभी दलों ने 14वें वित्त आयोग से राज्य को हुए नुकसान का ब्योरा विस्तार से रखा। भाजपा की ओर से प्रदेश प्रवक्ता मुन्ना सिंह चौहान और पुनीत मित्तल ने आयोग को प्रतिवेदन सौंपा। इसमें राज्य में लागू नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था से हुई राजस्व हानि पर विचार करने और आरडीजी की स्वीकृति के लिए फार्मूला तय किए जाने से पहले राज्य की विषम परिस्थितियां, कमजोर आर्थिक ढांचे, सीमित वित्तीय संसाधन, अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से घिरे होने और सामरिक नजरिये से राज्य की जरूरतों का ध्यान रखने की पैरवी की।

सालाना 2500 करोड़ का नुकसान

प्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना व पीसीसी सदस्य राजेश चमोली ने कहा कि 12वें व 13वें वित्त आयोग ने जम्मू-कश्मीर व हिमाचल प्रदेश जैसी भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखंड के लिए आरडीजी मंजूर किया, लेकिन 14वें वित्त आयोग ने इसे नजरअंदाज कर दिया। हालांकि अन्य हिमालयी राज्यों समेत 11 राज्यों को आरडीजी दी गई। इससे राज्य को सालाना 2500 करोड़ की हानि उठानी पड़ी। माकपा राज्य कमेटी सदस्य बच्चीराम कौंसवाल व अनंत आकाश ने कहा कि आरडीजी में पिछली दफा अपनाया गया फार्मूला न्यायसंगत नहीं रहा। इससे सामान्य सहायता, अतिरिक्त केंद्रीय सहायता और योजनागत अनुदान में भारी नुकसान उठाना पड़ा। जीएसटी में 91 फीसद से ज्यादा वसूली के बावजूद राज्य को अपने हिस्से के राजस्व में 31 फीसद की हानि हुई।

इनसेट

दलों ने उठाए ये प्रमुख बिंदु:

-चीन व नेपाल की दो अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से जुड़ा है उत्तराखंड

-पर्वतीय क्षेत्रों में चिकित्सा अवस्थापना, ट्रॉमा सेंटर, विशेष जीवनरक्षक उपकरण की अनिवार्य उपलब्धता

-उत्तराखंड को डिजिटल प्रदेश बनाने में बिजली, नेट कनेक्टिविटी की कठिनाई बाधक, निर्बाध बिजली आपूर्ति को भूमिगत बिजली लाइन बिछाई जाएं

-पर्यावरणीय प्रतिबंधों, इको सेंसिटिव जोन से स्थानीय विकास व रोजगार पर प्रतिकूल असर

-जलविद्युत समेत राज्य की प्राकृतिक संपदा का वैज्ञानिक दोहन जरूरी, बंद पड़ी परियोजनाएं जल्द हों शुरू


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