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    उत्तराखंड के खेतों से हर साल खिसक रही है 15 टन मिट्टी, जानिए

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    Updated: Wed, 05 Dec 2018 08:30 PM (IST)

    प्रदेश का करीब 70 फीसद कृषि भूभाग मिट्टी के गंभीर क्षरण से जूझ रहा है और इस दायरे में समूचा पर्वतीय क्षेत्र शामिल है। यहां प्रति हेक्टेयर 15 टन से अधिक मिट्टी हर साल खेतों से दूर हो रही है।

    उत्तराखंड के खेतों से हर साल खिसक रही है 15 टन मिट्टी, जानिए

    देहरादून, जेएनएन। मिट्टी को 'मिट्टी' समझने की भूल अन्न बरसाने वाले खेतों की सेहत नासाज कर रही है। खेतों से 'सोना' उगलने वाली मिट्टी लगातार गायब हो रही है। प्रदेश का करीब 70 फीसद कृषि भूभाग मिट्टी के गंभीर क्षरण से जूझ रहा है और इस दायरे में समूचा पर्वतीय क्षेत्र शामिल है। यहां प्रति हेक्टेयर 15 टन से अधिक मिट्टी हर साल खेतों से दूर हो रही है, जबकि पर्वतीय क्षेत्रों में मिट्टी के क्षरण की दर 2.5 प्रति हेक्टेयर से अधिक नहीं होनी चाहिए। यह बात भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान के अध्ययन में सामने आई है।

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    संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. गोपाल कुमार ने मृदा क्षरण पर किए गए अध्ययन को साझा करते हुए बताया कि ढाल वाले खेतों में भी मिट्टी का क्षरण प्रति हेक्टेयर 12.50 टन से अधिक नहीं होना चाहिए, जबकि देश में यह स्तर 16.35 टन प्रति हेक्टेयर है। करीब 35 फीसद पर्वतीय क्षेत्रों में यह दर 80 टन तक भी है। हालांकि, उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्रों के खेतों में मिट्टी के क्षरण की दर कुछ कम 15 टन प्रति हेक्टेयर है।

    डॉ. गोपाल के अनुसार पर्वतीय क्षेत्रों में मिट्टी का नुकसान अधिक होने से 30 फीसद तक फसल उत्पादन की कम हो रहा है। प्रदेश में कुल मिट्टी के बह जाने का आकलन फसल उत्पादन से किया जाए तो सालाना 13 से अधिक मिलियन टन उपज कम हो रही है। वर्ष 2008-09 के न्यूनतम समर्थन मूल्य के हिसाब से कम कृषि उपज का यह नुकसान लगभग ढाई अरब रुपये बैठता है। मिट्टी के क्षरण को लेकर सबसे जटिल बात यह कि जब भी मिट्टी की सुरक्षा के उपाय किए जाएं तो कम से कम 10 साल में उसका असर नजर आता है।

    मृदा क्षरण रोकने को वैज्ञानिकों के सुझाव 

    • ढालदार खेतों में ढाल के विपरीत फसल बोयें।
    • लंबे समय तक एक ही प्रकृति की फसलों से परहेज। 
    • फसल चक्र का पालन अनिवार्य किया जाना चाहिए। 

    मिट्टी में बोरोन की मात्रा सबसे कम

    जो बोरोन तत्व पौधों में फूल व फल बनाने में सहायक होता है, उसकी मात्रा उत्तराखंड की मिट्टी में सबसे कम है। भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान ने प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से मिट्टी के 250 सैंपल लिए थे। संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. गोपाल कुमार के अनुसार सभी सैंपल में बारोन की मात्रा कम पाई गई है। वहीं, 40 सैंपल में कार्बन की मात्रा कम पाई गई। कार्बन वह तत्व है जिसके आधार पर मिट्टी की क्षमता तय होती है। यह मिट्टी में पोषण का स्तर बनाए रखने व पानी को सोखने में मदद करता है। इसके अलावा सैंपलों की जांच में नाइट्रोजन मध्यम स्तर का पाया गया। जबकि फासफोरस, पोटेशियम, सल्फर, जिंक, आयरन व मैग्नीज की मात्रा पर्याप्त पाई गई। डॉ. गोपाल के अनुसार तुलनात्मक रूप मिट्टी की सेहत ठीक है, लेकिन जो तत्व कम हैं, उनके लिए ऑर्गेनिक के साथ इनॉर्गेनिक खाद का प्रयोग किया जाना जरूरी है।

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