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सात मिनट तक बग्वाली वीरों ने दिखाया दम, आठ दर्जन से अधिक घायल

बारिश के बीच मां बाराही धाम देवीधुरा में इस बार भी बदले स्वरूप के बीच फल फूलों के साथ ही पत्थरों से खोलीखाड़ दूबाचौड़ मैदान में रणबाकुरों के बीच पाषाण युद्ध हुआ।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 07 Aug 2017 04:03 PM (IST)Updated: Mon, 07 Aug 2017 10:42 PM (IST)
सात मिनट तक बग्वाली वीरों ने दिखाया दम, आठ दर्जन से अधिक घायल
सात मिनट तक बग्वाली वीरों ने दिखाया दम, आठ दर्जन से अधिक घायल

लोहाघाट (चंपावत), [जेएनएन]: रक्षाबंधन पर्व पर देवीधुरा स्थित मां बाराही मैदान खोलीखांड़ दूबाचौड़ में झमाझम बारिश के बीच विश्व प्रसिद्ध बग्वाल(उत्सव) खेली गई। इस स्थानीय धार्मिक त्योहार में चार खामों(टीम) के लोग एक दूसरे पर फल बरसाते हैं। पहले पाषाण युद्ध होता था, लेकिन हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद अब फल फेंके जाते हैं। 

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हालांकि कुछ देर के लिए पत्थर चल ही जाते हैं। इस बार भी सात मिनट चली बग्वाल में चारो खामों के आठ दर्जन से अधिक रणबांकुरे घायल हुए। बग्वालीवीरों में उत्साह इतना अधिक रहा कि बग्वाल बंद होने का शंखनाद होने के बाद भी वह दो मिनट तक रण में डटे रहे। इस अद्भुत व अलौकिक दृश्य के एक लाख से अधिक लोग साक्षी बने।

सोमवार सुबह से मां बाराही धाम देवीधुरा में झमाझम बारिश होती रही। बग्वाल देखने स्थानीय लोगों के अलावा देश-दुनिया से लोग पहुंचे। दोपहर करीब डेढ़ बजे बाद बग्वालीवीर खोलीखांड़ दूबाचौड़ मैदान में एकत्रित होने शुरू हो गए। सबसे पहले वालिक खाम के लोग बद्री सिंह बिष्ट के नेतृत्व में मैदान में पहुंचे। इसके बाद चम्याल खाम के लोग गंगा सिंह के  नेतृत्व में आए। लमगड़िया खाम फिर गहरवाल खाम के त्रिलोक सिंह बिष्ट के नेतृत्व में बग्वालीवीर मैदान में पहुंचे। सभी खामों के बग्वालीवीरों ने मां के गगनभेदी जयकारों के साथ मंदिर व मैदान की परिक्रमा की। 

बारिश के बीच दोपहर 2:42 बजे बग्वाल शुरू हुई और 2:49 तक चली। इसके बाद मंदिर के पुजारी धर्मानंद चवर हिलाते हुए मैदान में पहुंचे और शंखनाद किया। इसके बाद भी बग्वाली वीरों में उत्साह कम नहीं हुआ और वह दो मिनट और पत्थर व फल बरसाते रहे। बग्वालीवीरों के साथ ही बग्वाल देखने पहुंचे लोग रोमांच से भर उठे। बग्वाली रण के दौरान आठ दर्जन रणबांकुरे सहित कुछ दर्शक भी घायल हो गए। सभी का प्राथमिक उपचार पीएचसी  देवीधुरा व मंदिर में बने चिकित्सा कक्ष में उपचार किया गया। 

नर बलि रोकने को खेली गई थी बग्वाल

बुजुर्ग बताते हैं कि पूर्व में यहां नरबली दी जाती थी। एक समय ऐसा आया कि चम्याल खाम के एक बुजुर्ग महिला के परिवार में एक ही पोता शेष रह गया था। अगर वह पोते की बलि दे तो पूरा वंश ही खत्म हो जाता। उस बुजुर्ग महिला ने मां बाराही की दिन रात पूजा आराधना शुरू कर दी। उस महिला की पूजा से मां प्रसन्न हो गईं और नरबली की जगह दूसरा विकल्प दिया। 

जिसमें चारों खामों के लोगों ने मां के आदेश के बाद पत्थर से बग्वाल खेलनी शुरू कर दी। इस बग्वाल में एक व्यक्ति के शरीर के बराबर रक्त बहता है। बताया जाता है कि मां बाराही किसी का भी रक्त नहीं लेती हैं, लेकिन उनका गण कलवा बेताल यह रक्त लेता है। रक्षा बंधन के दिन धर्म व आस्था के लिए लड़े जाने वाले इस युद्ध में मां बाराही की शक्ति का बखान करना भी लोक आस्था का ही हिस्सा है। जब युद्ध चरम सीमा पर होता है तब मंदिर के आचार्य इसकी गाथा का बखूबी बखान करते हैं। 

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