128 सालों से रामलीला मंचन बन गई सीमांत की पहचान
संवाद सहयोगी, चम्पावत : जनपद के अनेक क्षेत्रों में नवरात्र से रामलीला का शुभारंभ होने जा रहा
संवाद सहयोगी, चम्पावत : जनपद के अनेक क्षेत्रों में नवरात्र से रामलीला का शुभारंभ होने जा रहा है। यहां भी दस अक्टूबर से प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी नागनाथ मंदिर के पास रामलीला का मंचन किया जाएगा। जो कि सन 1890 से चली आ रही है। 128 साल पहले रामलीला आज की तरह परिपूर्ण संसाधनों के साथ नहीं होती थी। तब रौशनी के लिए भी मशाले और लालटेन का प्रयोग किया जाता था। लेकिन फिर भी सीमित संसाधनों में रामलीला का मंचन होता था। जब भले ही संसाधनों का अभाव रहा हो लेकिन लोगों के उत्साह में कोई कमी नहीं थी।
नागनाथ मंदिर के पास विगत 128 सालों से लगातार रामलीला का मंचन किया जा रहा है। आज आधुनिकरण के साथ लोगों में व्यापक संसाधनों में भी रामलीला का क्रेज कम होता दिखाई दे रहा है। जबकि पहले सीमित संसाधनों में लोग रामलीला का आनंद उठाते थे और रामलीला भी कई महीनों चलती थी। क्षेत्र के बुजुर्ग व्यक्तियों का कहना है प्रारंभ में मशाल की रौशनी, फिर मिट्टी तेल से जलने वाले लालटेन, बाद में गैस के पैट्रोमैक्स की रौशनी में रामलीला का मंचन होता था। आज विद्युतीकरण होने से रात्रि में प्रकाश की अच्छी व्यवस्था हो जाती है। नागनाथ में वर्ष 2010 मे रामलीला के लिए पक्के स्टेज की व्यवस्था हुई। आज के मुकाबले होती थी ज्यादा भीड़
रामलीला समिति के अध्यक्ष भगवत सरन राय ने बताया कि यहां 128 सालों से रामलीला चल रही है। उनका कहना है उनके पूर्वज बताया करते थे कि पहले सड़क की सुविधा न होने के बाद भी रामलीला देखने वाले बड़ी दूर-दूर से आते थे। तब रौशनी के लिए आज की तरह लाइट नहीं थी। वे मशाल, लालटेन के प्रकाश में रामलीला का मंचन किया करते थे। उन दिनों केवल यहीं पर रामलीला होने से चल्थी, अमोड़ी, धौन, बनलेख तथा आसपास के सभी ग्रामवासी पैदल चलकर रामलीला का आनन्द लेने आते थे।
---------- पहले के कलाकार आज के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन करते थे और लोगों मे रामलीला के प्रति काफी रुचि होती थी। अब जगह जगह रामलीला होने से लोगों की भीड़ मे पहले के मुकाबले कमी है। खास खास दिनों जैसे धनुष यज्ञ, लक्ष्मण शक्ति आदि दिनों में अभी भी काफी भीड़ होती है। - भगवत सरन राय, रामलीला कमेटी अध्यक्ष। आठ साल की उम्र से लगातार 25 सालों तक राम, लक्ष्मण, भरत, सत्रुघन, दशरथ, रावण, जनक आदि पाठ खेले हैं। तब लोग अपने अपने पाठ के प्रति समर्पित रहते थे मगर अब लोगों में इसका रुझान कम हो गया है। पहले की अपेक्षा अब भीड़ भी कम दिखाई देती है। तब लाउडस्पीकर की भी व्यवस्था नहीं थी पाठ खेलने वाले की आवाज में ही बहुत दम होता था। - अशोक वर्मा। चालीस साल पूर्व रामलीला में मंच आपसी सहयोग से लकड़ी का बनाया जाता था और तिरपाल आदि बिछाकर स्टेज सजाया जाता था। मगर अब हमारी संस्कृति को पुनर्जीवित करती इस प्रथा में युवाओं की कोई रुचि नहीं है। इसका कारण लोगों का टेलीविजन और मोबाइल के प्रति लगाव है। मैंने रामलीला में 20 साल में राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघन, दशरथ, जनक, केकई, सुर्मनखा आदि के पाठ खेले। - जगदीश पचौली।