कुमाऊं और गढ़वाल को एक सूत्र में बांधती है मां नंदा सुनंदा
संवाद सहयोगी, चम्पावत : भाद्र शुक्लपक्ष की अष्टमी को परंपरागत व धार्मिक माहौल में मनाया जाने वाला
संवाद सहयोगी, चम्पावत : भाद्र शुक्लपक्ष की अष्टमी को परंपरागत व धार्मिक माहौल में मनाया जाने वाला नंदाष्टमी पर्व कुमाऊं और गढ़वाल को एक सूत्र में पिरोता है। वर्ष 1673 में चंद राजा गढ़वाल के जूनागढ़ किले को जीतने के बाद रण देवी के रुप में नंदा की प्रतिमा को अपने साथ कुमाऊं लाए थे। जिसका एक भाग बैजनाथ और दूसरा भाग अल्मोड़ा में स्थापित किया गया है। पूरे उत्तराखंड में यह पर्व अलग-अलग अंदाज में मनाया जाता है।
कुमाऊं की उत्पत्ति एवं चंद शासकों के स्वर्णकाल का मूक साक्ष्य बना चम्पावत वर्ष 1563 तक चंद राजाओं की राजधानी था। जिसकी पुष्टि यहां के प्राचीन मंदिर व कलाकृतियां देती हैं। बाद में चंद राजाओं की राजधानी अल्मोड़ा स्थानांतरित हो गई। साम्राज्य का विस्तार करते हुए 1673 में राजा बाज बहादुर चंद ने गढ़वाल के जूनागढ़ किले को जीत लिया और वह अपने साथ माँ नंदा देवी की प्रतिमा ले आए। अल्मोड़ा पहुंचने से पूर्व राजा और सैनिकों ने नंदा देवी के डोले के साथ गरुड़ में विश्राम किया। दूसरे दिन जब राजा राजगुरु के साथ डोले में रखी प्रतिमा की पूजा करने आए तो मूर्ति दो भागों में खंडित हो चुकी थी। विचार-विमर्श के बाद मूर्ति के एक भाग को वहीं स्थापित कर कोटमाई के नाम से प्रतिष्ठा की गई। जबकि दूसरी मूर्ति को अल्मोड़ा के राजमहल में अपनी कुलदेवी गौरा के साथ स्थापित किया गया। वर्ष 1857 तक इसका पूजन चम्पावत वंश के चंद राजाओं द्वारा किया जाता रहा। लेकिन, अंतिम राजा आनंद सिंह की अविवाहित अवस्था में मौत हो जाने के बाद काशीपुर के चंद वंशजों द्वारा पूजन की परंपरा को आगे बढ़ाया गया। जो आज भी जारी है। गढ़वाल में नंदा राजजात यात्रा तथा कुमाऊं में नंदा सुनंदा के आयोजन उत्तराखंड को एकसूत्र में पिरोते हैं। देव डंगरियों की रहती है अहम भूमिका
यहां आयोजित होने वाले नंदा सुनंदा महोत्सव में देव डंगरियों की मुख्य भूमिका रहती है। नंदा सुनंदा के डोल यात्रा के साथ ही कदली वृक्ष आमंत्रण व आगमन के मौके पर देव डंगरिए अवतरित होकर आर्शीवाद देते हैं। जिससे चम्पावत की ऐतिहासिकता के साक्षात दर्शन होते हैं। चम्पावत में नंदा महोत्सव का हुआ आगाज
मुख्यालय में शुक्रवार को छह दिवसीय नंदा-सुनंदा महोत्सव का आगाज हुआ। सुबह पांच बजे देव स्नान व दिन मे श्री वेदी निर्माण किया गया। समिति के अध्यक्ष ने बताया 15 सितम्बर को गणेश, मातृका, नवग्रह, क्षेत्रपाल, वास्तु व चौसठ यागिनी पूजन के बाद स्कूली बच्चों व छोलिया टीम द्वारा झांकी निकाली जाएगी। 16 सितम्बर को गणेश, शिव, हनुमान पूजन के बाद सांय चार बजे देव डांडरों के साथ कदली वृक्ष आमंत्रण के लिए नागनाथ को प्रस्थान होगा, 17 सितम्बर को देव डांगरों के साथ कदली वृक्ष का आगमन, प्राण प्रतिष्ठा, मां नंदा सुनंदा पूजन, 18 सितम्बर को मां का विशेष पूजन व कन्या पूजन तथा 19 सितम्बर को मंडल पूजन, हवन, पूर्णाहुति के बाद दिन में डोला यात्रा व मूर्ति विसर्जन के साथ महोत्सव का समापन होगा तथा 20 सितम्बर को बालेश्वर मंदिर में विशाल भंडारे का आयोजन किया जाएगा।