117 वर्ष पूर्व आज के दिन चम्पावत आए थे युगनायक
दीपक सिंह बोहरा, चम्पावत बात कुछ 117 वर्ष पुरानी है। जब युगनायक व युगपुरुष की ख्याति प्राप्त
दीपक सिंह बोहरा, चम्पावत
बात कुछ 117 वर्ष पुरानी है। जब युगनायक व युगपुरुष की ख्याति प्राप्त स्वामी विवेकानंद के चरण पहली बार चम्पावत में पड़े थे। वह आज ही का दिन था जब अद्वैत आश्रम मायावती के संस्थापक कैप्टन सेवियर की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी को सांत्वना देने स्वामी विवेकानंद बैलूर मठ के लिए लौटे तो उन्होंने चम्पावत के जिला पंचायत में बने डाक बंगले में रात गुजारी थी। जहां उन्होंने आध्यात्म के साथ ही यहां की नैसर्गिकता पर लोगों से विस्तार से चर्चा की थी।
28 अक्टूबर 1900 को स्वामी जी के परम शिष्य और अद्वैत आश्रम मायावती के संस्थापक ब्रिटिश कैप्टन सेवियर का देहावसान हो गया था। उस समय स्वामी जी पेरिस की यात्रा पर थे। जब स्वदेश लौटे तो बैलूर मठ पहुंचने पर उन्हें यह दुखद समाचार मिला और उन्होंने मिसेज सेवियर को सांत्वना देने के लिए मायावती जाने का निर्णय लिया। वह 27 दिसंबर 1900 को कलकत्ता से चलकर 29 दिसंबर को काठगोदाम पहुंचे। उनके साथ स्वामी शिवानंद, सदानंद गुप्त महाराज भी थे। काठगोदाम में विश्राम के बाद वह मायावती से पहुंचे स्वामी कालीकृष्ण, विरजानंद व अल्मोड़ा के गोविंद लाल के साथ डोली से मायावती की ओर रवाना हुए। पहले दिन धारी में विश्राम किया। दूसरे रोज से वर्षा के साथ ही हिमपात होने लगा। वर्षा व बर्फबारी के बीच ही पहाड़पानी, मौरानौला, धूनाघाट होते हुए 3 जनवरी को स्वामी जी का काफिला मायावती पहुंचा। जहां स्वामी जी 17 जनवरी 1901 तक प्रवास में रहे। वापसी की यात्रा 18 जनवरी को शुरू हुई और पहला पड़ाव चम्पावत हुआ। जहां उन्होंने जिला पंचायत के डाक बंगले में रूके। वहां उन्होंने रात व्यतीत की। इस दौरान उन्होंने आध्यात्म के साथ ही हिमालय दर्शन पर व्यापक चर्चाएं की। स्वामी जी चम्पावत की नैसर्गिकता पर काफी अभिभूत हुए थे। दूसरे रोज यहां से उनका काफिला दियूरी, श्यामलाताल होते हुए टनकपुर की ओर रवाना हुआ। स्वामी जी की इन यादों को पुस्तक युगनायक विवेकानंद भाग तीन में हिमालय की अंतिम यात्रा में विस्तार से वर्णित किया गया है।
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उपेक्षित पड़ा है स्मृति पटल
स्वामी जी के चम्पावत प्रवास की यादों को समेटने के लिए वर्ष 2001 में तत्कालीन जिला पंचायत अध्यक्ष स्व. मदन सिंह महराना ने पहल की थी। जिस डाक बंगले में स्वामी जी रूके थे वहां एक स्मृति पटल स्थापित किया गया था लेकिन देखरेख के अभाव में अब वह उपेक्षित पड़ा है। हालात यह हैं कि अब पटल की लिखावट भी धुंधली पड़ गई है। लेकिन हुक्मरानों और प्रशासनिक अमले को इससे कोई सरोकार नहीं है। यहां तक कि स्वामी जी की सार्द्धशती मना रही समिति ने भी इस स्मृति पटल की ओर ध्यान नहीं दिया।
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..जब खाया कच्चा घी-भात
18 जनवरी को रात्रि विश्राम के बाद जब स्वामी जी चम्पावत से 19 जनवरी 1901 को दूसरे पड़ाव दियूरी व श्यामलाताल की ओर रवाना हुए। दोपहर में एक बजे काफिला दियूरी पहुंचा। सभी लोगों को जोरों की भूख लगी थी। खाना बनाने की तैयारी हुई। जिस बर्तन में चावल पकाए गए, वह बर्तन छोटा था और चावल अधिक होने के कारण भात कच्चा ही रह गया। लेकिन भूख के चलते स्वामी जी के सुझाव पर सभी ने घी के साथ कच्चे भात का स्वाद लेकर भूख मिटाई।
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डाक बंगले में चल रहा दूरदर्शन केंद्र
जिस डाक बंगले में स्वामी जी ने रात्रि विश्राम किया था वर्तमान में उस भवन में दूरदर्शन केंद्र संचालित है। भवन में आज भी स्वामी जी के उस समय की फोटो लगी है। जो रखरखाव के अभाव में जीर्णशीर्ण हो गई है। एक साल पूर्व इसकी मरम्मत भी कराई गई थी लेकिन वर्तमान में भवन की छत से बारिश में पानी टपकता रहता है।