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    हिमालय सा बुलंद है सीमांत गांवों का हौसला, चीन सीमा पर निभा रहे प्रहरी की भूमिका

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    Updated: Tue, 09 Jun 2020 01:30 PM (IST)

    चमोली जिले की नीति घाटी का भूगोल भले ही विषम हो लेकिन यहां के दर्जन भर गांवों का हौसला हिमालय सा बुलंद है।

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    हिमालय सा बुलंद है सीमांत गांवों का हौसला, चीन सीमा पर निभा रहे प्रहरी की भूमिका

    गोपेश्वर(चमोली), जेएनएन। चीन सीमा पर स्थित चमोली जिले की नीति घाटी का भूगोल भले ही विषम हो, लेकिन यहां के दर्जन भर गांवों का हौसला हिमालय सा बुलंद है। भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल (आइटीबीपी) के हिमवीरों के साथ वे भी कंधे से कंधा मिलाकर सीमा प्रहरी की भूमिका निभा रहे हैं। यही वजह है कि बाड़ाहोती में भले ही चीनी सैनिक उनके मवेशियों को खदेड़ देते हों या कई बार सामान भी नष्ट कर देते हैं, लेकिन अपने इस भूभाग पर ग्रामीण हर साल मवेशियों के साथ अवश्य जाते हैं। वे कहते हैं कि यह हमारी जमीन है और कोई हमें यहां आने से नहीं रोक सकता।

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    पलायन की पीड़ा से जूझ रहे उत्तराखंड में भले ही 1700 से ज्यादा गांव जनशून्य हो गए, लेकिन सुकून यह है कि सीमांत क्षेत्रों में गांव आज भी भरे हुए हैं। चमोली की नीति घाटी के गमसाली गांव तक पहुंचने के लिए जोशीमठ से 75 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। वर्ष 2000 तक जोशीमठ से मलारी तक ही सड़क थी। यहां से 15 किलोमीटर का रास्ता पैदल ही तय करना होता था। अब सड़क बन चुकी है। 

    सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस इलाके में सड़क बनने से सेना के लिए आवाजाही आसान हुई ही, ग्रामीणों को भी इसका लाभ मिला है। गमसाली गांव में 200 परिवार हैं। आजीविका का मुख्य साधन खेती और पशुपालन है। नीती, बाम्पा , फरख्या, मेहरगांव और कैलाशपुर में भी अच्छी आबादी है। इस इलाके में मुख्यतौर पर भोटिया जनजाति के लोग निवास करते हैं। बांपा गांव के रहने वाले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के सेवानिवृत्त अधिकारी 63 वर्षीय बच्चन सिंह पाल सिंह कहते हैं कि जनजाति समुदाय के लोग अपनी परंपरा से प्यार करते हैं। इसीलिए लोग नौकरी के लिए कहीं भी रहें, लेकिन अपनी माटी से दूर नहीं रहते।
    दीपावली की तरह मनाते हैं स्वतंत्रता दिवस 
    नीती घाटी के लिए स्वतंत्रता दिवस किसी त्योहार से कम नहीं है। होली और दीपावली की तरह ही यहां आजादी का जश्न मनाया जा है। गमसाली गांव के चंद्रमोहन फोनिया बताते हैं कि 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ तो नीती घाटी के गांवों को इसका पता नहीं था। तब आज की तरह संचार के साधन नहीं थे। यह सूचना घाटी में 20 अगस्त को पहुंची और उस दिन खूब जश्न हुआ। घर-घर में दीप जलाए गए और पकवान बनाए गए। बस तब से परंपरा बन गई कि 15 अगस्त के दिन हर साल आसपास के सभी गांवों के लोग पारंपरिक वेशभूषा में गमसाली गांव में एकत्र होते हैं। 
    प्रत्येक गांव जुलूस की शक्ल में अपनी झांकी के साथ गमसाली पहुंचता है। इसके बाद सभी गांव के पास गम्फूधार नाम स्थान पर जाते हैं और तिरंगा फहराया जाता है। इसके बाद सामूहिक भोज होता है। गमसाली गांव के यशवंत सिंह बिष्ट कहते हैं अब यह लोक उत्सव बन चुका है।