शिव-पार्वती विवाह के साक्षी बने सैकड़ों श्रद्धालु
संवाद सहयोगी गोपेश्वर चमोली जिले की उर्गम घाटी के देवग्राम में भगवान शिव व पार्वती के अनूठे
संवाद सहयोगी, गोपेश्वर : चमोली जिले की उर्गम घाटी के देवग्राम में भगवान शिव व पार्वती के अनूठे विवाह के सैकड़ों श्रद्धालु साक्षी बने। जिस प्रकार मनुष्य का विवाह होता है उसी परंपरा के आधार पर भगवान भूम्याल देवता के सानिध्य में देवग्राम के आदि केदारेश्वर मंदिर में मां पार्वती के गौरा रूप का विवाह भगवान शंकर से हुआ। इस दौरान मांगल, जागर गीत गाते हुए विवाह संपन्न कराया गया और उसके बाद मां गौरा को कैलाश के लिए विदा किया गया।
उर्गम घाटी के देवग्राम में शिव-पार्वती विवाह की परंपरा सदियों से चली आ रही है। असल में देवग्राम में मां गौरा का पौराणिक मंदिर है। प्रत्येक वर्ष नवरात्र की षष्टमी को मंदिर से मां गौरा को बाहर लाकर डोली में विराजित किया जाता है। यह डोली आठ दिनों तक मंदिर परिसर में ही रहती है। इस दौरान यहां पर धार्मिक आयोजन व पूजा पाठ का कार्यक्रम चलता है। नौवें दिन होता है भगवान शंकर से गौरा का विवाह। जागर व मांगलिक गीतों के बीच मां गौरा की मूर्ति को केदारेश्वर मंदिर में लाया जाता है। यहां पर भगवान शंकर के प्रतीक के रूप में निशाण भी लाया जाता है। गांव के ईष्ट देवता भूम्याल के सानिध्य में गौरा-शिव का विवाह रचाया जाता है। देवग्राम निवासी रघुवीर सिंह नेगी का कहना है कि परंपरा के अनुसार विवाह की वेदी बनाई जाती है। इस वेदी में भगवान शिव व गौरा नौ फेरे लेते हैं। शादी के बाद मां गौरा को ससुराल कैलाश विदा किया जाता है। वह बताते हैं कि यह परंपरा देवग्राम में सदियों से चली आ रही है। जागरों के माध्यम से ही मां नंदा को कैलाश तक विदा किया जाता है। आयोजन समिति के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह नेगी का कहना है कि शिव-पार्वती विवाह के दौरान देवग्राम में मेले का आयोजन भी किया गया। इस दौरान दूर-दूर के गांवों से यहां पहुंची ध्याणियों ने मां गौरा को चुनरी चढ़ाई। बाद में भंडारा आयोजित कर सभी को प्रसाद वितरित किया गया।