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Joshimath Sinking: फटती जमीन और टूटते घर देख सदमे में लोग, रो-रोकर बुरा हाल, बोले- 'अपना कहने को कुछ नहीं बचा'

Joshimath Sinking जोशीमठ में फटती जमीन और टूटते घर देखकर लोग सदमे और दुख में हैं। इस आपदा ने उनका सब-कुछ छीन लिया है। जीवनभर की कमाई से मकान खड़ा किया था वह भी नियति ने छीन लिया।

By Devendra rawatEdited By: Nirmala BohraPublished: Fri, 13 Jan 2023 03:27 PM (IST)Updated: Fri, 13 Jan 2023 03:27 PM (IST)
Joshimath Sinking: जोशीमठ में फटती जमीन और टूटते घर देखकर लोग सदमे और दुख में हैं।

देवेंद्र रावत, जोशीमठ(चमोली): Joshimath Sinking: जोशीमठ में फटती जमीन और टूटते घर देखकर लोग सदमे और दुख में हैं। जहां उनका जीवन बीता उस जगह की यह दुर्दशा देख उनका रो-रोकर बुरा है। उनका कहना है कि अब यहा अपना कहने को कुछ नहीं बचा।

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‘इस आपदा ने मेरा सब-कुछ छीन लिया। मां वर्ष 2008 में चल बसी और बुजुर्ग पिता के पास कोई रोजगार नहीं। दो छोटे भाई हैं, जिनमें एक दसवीं में पढ़ रहा है और एक ने घर के हालात के चलते स्कूल छोड़ दी।

15-16 साल की उम्र से लोगों के मवेशियों के लिए घास लाकर, उनके खेतों में काम करके परिवार की गुजर कर रही थी, लेकिन नियति से यह भी नहीं देखा गया। तीन कमरों का मकान था, जो दरारों से पट चुका है। थोड़ा-बहुत खेती की जमीन थी, वह भी धंस गई। अब हम राहत शिविर में रह रहे हैं।

वहां फिलहाल तो रोटी मिल जा रही है, लेकिन आगे क्या होगा, कुछ नहीं मालूम। मेहनत-मजदूरी कर गृहस्थी का जो सामान जुटाया था, वह भी उजड़ रहे घर में ही पड़ा है। कोई ठौर नहीं है, कोई ठिकाना नहीं है। कहां उस सामान को ले जाऊंगी और कैसे बूढ़े पिता व दो बेरोजगार भाइयों के लिए खाने-कपड़े का इंतजाम करूंगी, यह सोच-सोचकर ही कलेजा मुंह में आ जा रहा है।’

यह पीड़ा है सिंहधार निवासी 20-वर्षीय ज्योति की, जो स्कूल का मुंह इसलिए नहीं देख पाई कि उसे परिवार की गुजर-बसर के लिए काम करना था। बकौल ज्योति, ‘घर में अन्न का दाना तक नहीं है। राहत शिविर में खाना नहीं मिलेगा तो हम भूखे मर जाएंगे। पता नहीं आगे क्या होगा। जिन लोगों के भरोसे दो वक्त की रोटी का इंतजाम होता था, वो खुद नियति की मार झेल रहे हैं। पता नहीं, किस्मत में क्या-क्या लिखा है।’

यह कहते-कहते ज्योति की आंखें छलछला आईं। वहीं पास में भागीरथी देवी का तीन मंजिला मकान है, जो दरारें आने से ढहने के कगार पर है।

60-वर्षीय भागीरथी के पति मोहन शाह के शरीर का एक हिस्सा काम नहीं करता। बिस्तर पर ही उनकी जिंदगी कट रही है। दो बेटे हैं और दोनों की शादी हो चुकी है। एक बेटा अपने परिवार के साथ अलग मकान बनाकर रहता है, जबकि दूसरा बेटा पत्नी व तीन छोटे-छोटे बच्चों के साथ माता-पिता के घर में ही रहता है। रोजगार कुछ है नहीं, बस! मकान के किराये से ही गुजर होती थी। लेकिन, अब यह सहारा भी छिन गया।

सिसकते-सिसकते भागीरथी देवी कहती हैं, ‘मकान दरकने के बाद प्रशासन ने हमें वहां से हटा दिया। अब आस-पड़ोस वालों के घर में रहकर दिन काट रहे हैं। समझ नहीं आ रहा कि बिस्तर पर पड़े पति और बेरोजगार बेटे के परिवार की गुजर कैसे होगी।

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जीवनभर की कमाई से मकान खड़ा किया था, वह भी नियति ने छीन लिया। अब तो जीवन में अंधेरा ही अंधेरा है। पता नहीं कैसे जीवन चलेगा, चलेगा भी या नहीं।’ यह ऐसा द्रवित कर देने वाला दृश्य है, जिसे शब्दों में बयां करना आसान नहीं। भागीरथी देवी की दास्तान सुनते-सुनते मेरी भी आंखें नम हो गईं।

खैर! भावनाओं को नियंत्रित कर मैं कुछ आगे बढ़ा तो वहां बदहवास-सा चक्कर लगाता एक युवक नजर आया। पूछने पर उसने अपना नाम पंकज जैन और उम्र 30 वर्ष बताई। बदहवासी का कारण पूछा तो पंकज बोला, ‘भाई! सारी उम्मीदें धरती में समा गई हैं। दो मंजिला मकान था, वह जमीन में धंसकर पूरी तरह दरक गया। फटे हुए फर्श से मटमैला पानी निकल रहा है। इसलिए प्रशासन ने मुझे वहां से हटा दिया। अब सड़क पर हूं।

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आस-पड़ोस वाले खाना खिला दे रहे हैं। फिलहाल अब उन्हीं का आसरा है, लेकिन कब तक रहेगा, कहना मुश्किल है। मेरे पास तो अब कुछ भी नहीं बचा है। दो साल पहले मां चल बस बसी थी और एक साल पहले पिता। इस 14 तारीख को पिता का वार्षिक श्राद्ध था। लेकिन, मैं बदनसीब अब उनका श्राद्ध भी नहीं कर पाऊंगा।

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पास में ही मेरी छोटी-सी दुकान थी, वह भी दरक गई। भगवान न जाने किस जन्म के पापों की सजा दे रहा है।’ पूरे दिन में मुझे ऐसे ही कई लोग मिले, जिनके पास अब अपना कहने के लिए कुछ भी नहीं बचा है। यहां तक आंखों का पानी भी।


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