Joshimath Sinking: भूधंसाव में खुद का घर उजड़ा, कम नहीं हुआ जज्बा, प्रभावितों की सेवा में जुटी डा. ज्योत्सना
Joshimath Sinking शहर की ही एक युवती डा. ज्योत्सना नैथवाल आपदा में घर उजड़ने के बाद भी पूरी कर्तव्यनिष्ठा से प्रभावितों की सेवा में जुटी हैं। ज्योत्सना की मां गृहणी और पिता दरबान नैथवाल शिक्षा विभाग में वित्त अधिकारी होने के साथ गढ़वाली लोकगायक भी हैं।
देवेंद्र रावत, जोशीमठ(चमोली): Joshimath Sinking: आपदा ने जोशीमठ वासियों के खुशहाल जीवन को पटरी से उतार दिया है। शायद ही कोई होगा, जिसके माथे पर चिंता की लकीरें न उभरी हुई हों।
हालांकि, सरकार आपदा प्रभावितों के विस्थापन को कार्ययोजना तैयार करने में जुटी है, फिर भी जिसका घर उजड़ गया हो, रोजी-रोटी का जरिया छिन गया हो, बच्चों की पढ़ाई ठप पड़ गई हो, उसका भविष्य को लेकर आशंकित होना लाजिमी है।
लेकिन, इस परिदृश्य के बीच शहर की ही एक युवती डा. ज्योत्सना नैथवाल आपदा में घर उजड़ने के बाद भी पूरी कर्तव्यनिष्ठा से प्रभावितों की सेवा में जुटी हैं। परिवार के राहत शिविर में होने के बावजूद उनका एकमात्र ध्येय यही है कि किसी भी प्रभावित को बीमार होने पर यहां-वहां न भटकना पड़े।
सीएचसी जोशीमठ में मिली प्रथम नियुक्ति
32-वर्षीय ज्योत्सना ने वर्ष 2016 में राजकीय मेडिकल कालेज श्रीनगर से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की। इसके बाद वर्ष 2020-21 में उन्होंने एम्स ऋषिकेश से प्राइमरी केयर साइकेट्री का एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स किया। प्रथम नियुक्ति उन्हें सीएचसी जोशीमठ में मिली।
ज्योत्सना की मां गृहणी और पिता दरबान नैथवाल शिक्षा विभाग में वित्त अधिकारी होने के साथ गढ़वाली लोकगायक भी हैं। उनकी तैनाती देहरादून में है।
ज्योत्सना के पिता का सिंहधार में डाकघर के पास तीन मंजिला मकान है, जिसे भूधंसाव के चलते दरारें आने के कारण प्रशासन ने खाली करवा दिया। वर्तमान में उनका परिवार होटल औली डी स्थित राहत शिविर में रह रहा है।
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जब सामने ऐसी परिस्थिति हो तो कोई भी व्यक्ति विचलित हो सकता है, लेकिन ज्योत्सना अलग ही मिट्टी की बनी हैं। कहती हैं, ‘इन हालात में प्रभावितों को संबल देने की जरूरत है, ताकि वे खुद को संभाल सकें।
वर्तमान चुनौतियों का मुकाबला स्थिर मन से ही किया जा सकता है। फिर सरकार ने जो जिम्मेदारी सौंपी है, उसका ईमानदारी पूर्वक निर्वहन करना हर कार्मिक की जिम्मेदारी है। वह भी इससे अलग थोड़े हैं।’
राहत शिविरों में रह रहे लोग ज्यादा परेशान: ज्योत्सना
ज्योत्सना कहती हैं कि इन दिनों उनकी ड्यूटी का कोई समय नहीं है। सीएचसी में मरीजों को देखने के साथ ही एमरजेंसी ड्यूटी की भी करनी पड़ रही है। इसी बीच राहत शिविर या घरों से किसी के बीमार होने की सूचना मिलती है तो वहां जाना भी जरूरी है। एक डाक्टर का यही तो कर्तव्य है।
राहत शिविरों में रह रहे लोग ज्यादा परेशान हैं। उन्हें काउंसलिंग की जरूरत है और संयोग से मैं इस कार्य में सक्षम हूं। मैं चाहती हूं कि जोशीमठ शहर जल्द से जल्द इस आपदा से उबर जाए। इसके लिए मुझसे जो बन पड़ सकता है, कर रही हूं।