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जड़ी-बूटी उत्पादन से मालामाल हो रहे घेस के 70 परिवार

चमोली जिले के देवाल ब्लॉक का घेस गांव। यहां जनसुविधाओं का घोर अभाव है बावजूद इसके गांव के लोग एक नई दृष्टि के साथ तरक्की की राह पर आगे बढ़ रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Thu, 15 Oct 2020 03:00 AM (IST)Updated: Thu, 15 Oct 2020 05:08 AM (IST)
जड़ी-बूटी उत्पादन से मालामाल हो रहे घेस के 70 परिवार
जड़ी-बूटी उत्पादन से मालामाल हो रहे घेस के 70 परिवार

देवेंद्र रावत, गोपेश्वर

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चमोली जिले के देवाल ब्लॉक का घेस गांव। यहां जनसुविधाओं का घोर अभाव है, बावजूद इसके गांव के लोग एक नई दृष्टि के साथ तरक्की की राह पर आगे बढ़ रहे हैं। परंपरागत खेती करने वाले ग्रामीणों ने अब अपना पूरा ध्यान औषधीय खेती पर केंद्रित कर लिया है। इससे गांव के 70 परिवार घर बैठे लाखों कमा रहे हैं। इनमें लॉकडाउन के दौरान गांव लौटे 80 प्रवासी भी शामिल हैं।

कुमाऊं के अल्मोड़ा जिले की सीमा से लगे 350 परिवारों वाले घेस गांव की आबादी 3500 के आसपास है। गांव में परंपरागत रूप से राजमा, चौलाई व फाफर का उत्पादन बहुतायत में होता है। इससे ग्रामीणों को अच्छा-खासा मुनाफा भी हो रहा था। लेकिन, दस वर्ष पहले गांव के पूर्व प्रधान कैप्टन केसर सिंह ने नकदी फसलों की जगह जंगलों मे उगने वाली जड़ी-बूटियों के कृषिकरण का निर्णय लिया। इससे उन्हें खासा मुनाफा हुआ। बकौल केसर सिंह, वर्तमान में जड़ी-बूटी उत्पादन से गांव का प्रत्येक परिवार प्रति सीजन एक लाख से रुपये से अधिक आसानी से कमा लेता है। जबकि, परंपरागत फसलों से 40 हजार रुपये तक की ही कमाई होती थी। इस पर जंगली जानवर भी फसलों को काफी नुकसान पहुंचाते थे।

केसर सिंह बताते हैं कि कुटकी समेत अन्य जड़ी-बूटियों की खरीदारी के लिए बाहरी क्षेत्रों से ठेकेदार गांव में ही पहुंच जाते हैं। हर साल घेस से करीब 30 क्विंटल जड़ी-बूटियां बिकती हैं। खासकर कुटकी तो दो से ढाई हजार रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकती है। बताया कि वर्तमान में गांव के करीब 70 परिवार जड़ी-बूटी उत्पादन से जुड़े हुए हैं। इनमें लॉकडाउन के दौरान रोजगार छिनने से गांव वापस लौटे 80 प्रवासी भी अच्छी-खासी आय अर्जित कर रहे हैं।

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खाली हाथ गांव लौटे और बन गए कारोबारी

गोवा के होटल में वर्षो से शेफ रहे दिनेश सिंह भंडारी जब लॉकडाउन के दौरान गांव वापस लौटे तो उनके पास कोई रोजगार नहीं था। लेकिन, जड़ी-बूटी उत्पादन से जुड़कर उनकी सारी चिंताएं दूर हो गईं। अब तो उन्हें एडवांस में ऑर्डर भी मिलने लगे हैं। गोवा में ही होटल व्यवसाय से जुड़े देवेंद्र सिंह को भी गांव लौटकर जड़ी-बूटी कृषिकरण से रोजगार मिला है। वह कहते हैं कि जड़ी-बूटी को जंगली जानवर भी नुकसान नहीं पहुंचाते। ऐसे में घाटे का तो सवाल ही नहीं उठता।

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इन प्रमुख वनस्पतियों की हो रही खेती

नाम, प्रति किलो बाजार मूल्य

कुटकी, 2500 रुपये

कूट, 500 रुपये

जटामासी, दस से 15 हजार रुपये

सतुआ, 9000 रुपये

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फोटो परिचय

10जीओपीपी 1 : औषधीय वनस्पतियों से लकदक घेस गांव के खेत।

10जीओपीपी 2 : घेस गांव के खेतों में उगी हुई जड़ी-बूटियां।

10जीओपीपी 3 : घेस गांव का मनमोहक नजारा।


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