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रंग्युं बाखरु नाटक के जरिए किया बलि प्रथा पर प्रहार

फोटो 30 जीओपीपी 2 कैप्शन गोपेश्वर के श्रीदेव सुमन विवि परिसर में नाटक का मंचन करते छा˜

By JagranEdited By: Published: Sat, 30 Mar 2019 08:15 PM (IST)Updated: Sun, 31 Mar 2019 06:33 AM (IST)
रंग्युं बाखरु नाटक के जरिए किया बलि प्रथा पर प्रहार

संवाद सहयोगी, गोपेश्वर: श्रीदेव सुमन विवि परिसर गोपेश्वर में अक्षत नाट्य संस्था व अंग्रेजी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में गढ़वाली नाटक रंग्युं बाखरू का शानदार मंचन किया गया। नाटक के माध्यम से कलाकारों ने पुश बलि प्रथा के दुष्प्रभावों की जानकारी आम लोगों को दी गई।

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रंग्युं बाखरू नाटक के जरिए यह दिखाया गया कि इंसान भी कितना स्वार्थी प्राणी है। जो अपने परिवार की खुशहाली के लिए अपने ईष्टदेव की प्रसन्नता, दैवीय प्रकोप के निवारण एवं धर्म के अज्ञानी ठेकेदारों की तृप्ति के लिए बकरी जैसे भोले बेजुबान और निरीह प्राणी की बलि देता है। यह नाटक भारतीय समाज खासकर गढ़वाल, कुमाऊं में फैले अंधविश्वास को लेकर था। जिसमें मुख्य पात्र मंगसीरु, खती, जती, पुछ्यारु, पुजारी एवं बाखरु के माध्यम से दर्शकों को यह बताने की कोशिश की गई कि किस तरह छोटी सी बीमारी को भी हमारा समाज दैवीय दोष या प्रकोप मान लेता है। उस बीमारी के इलाज के लिए किस तरह उसके पांव अस्पताल की चौखट से पहले, पुछ्यारु या पुजारी के घर तक जाते हैं। यहां से शुरू होता है अंधविश्वास के भावनात्मक शोषण का कभी खत्म न होने वाला खेल। नाटक के मुख्य खलनायक खती और जती बहुत पीड़ित परिवार के अनपढ़ मुखिया जिनका एक ही पुत्र है मंगसीरु। जिसे वे मंदबुद्धि (लाटा) समझते हैं और उसकी पत्नी बसंती, को कुशलता पूर्वक अपने झूठ और प्रपंच के जाल में फंसाते हैं और छल पुजाई के लिए जरुरी काली बकरी न मिलने के कारण स़फेद बकरी को ही काले रंग से रंगने का काम करते हैं। हालांकि बाद में एक शिक्षिका एवं मंगसीरु की सूझबूझ से इस षड़यंत्र का पर्दाफाश हो जाता है। इस अवसर पर अक्षत नाट्य संस्था के अध्यक्ष विजय वशिष्ठ, प्राचार्य डॉ. एमके उनियाल, डॉ. बीपी देवली, डॉ. एसएस सारस्वस्त, अंग्रे•ाी विभागाध्यक्ष डॉ. दर्शन नेगी समेत अन्य लोग मौजूद थे।


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