बर्फबारी से दबे चारागाह, चारे का संकट
संवाद सूत्र, बदरीनाथ: श्री बदरीनाथ धाम के आसपास मौजूद चारागाह लगातार हो रही बर्फबारी से दब गए हैं। इ
संवाद सूत्र, बदरीनाथ: श्री बदरीनाथ धाम के आसपास मौजूद चारागाह लगातार हो रही बर्फबारी से दब गए हैं। इससे मवेशियों के लिए चारा नहीं मिल पा रहा है। ग्रामीणों ने चारे का भंडारण किया था, लेकिन वह भी समाप्त होने को है। ऐसे में पशुपालकों के सामने मवेशियों को निचले क्षेत्रों में वापस लाने के अलावा कोई अन्य चारा नहीं बचा है। वर्ष 2006 में भी कपाट खुलने के बाद बर्फबारी के चलते यह स्थिति सामने आई थी।
श्री बदरीनाथ धाम के निकटवर्ती गांव माणा, बामणी, इंद्रधारा, धनतोली, पाट्या, हेलीपैड, नागणी समेत अन्य गांवों में यात्राकाल के दौरान तकरीबन एक हजार से अधिक लोग पशुपालन के जरिये अपनी आजीविका चलाते हैं। ये लोग दूध व दूध से बने सामान की बिक्री करते हैं। बदरीनाथ धाम में भगवान नारायण का बाल भोग व खीर भोग भी काली गाय के शुद्ध दूध से बनाया जाता है। बामणी गांव के पशुपालक मंदिर समिति को काली गाय का दूध उपलब्ध कराते हैं। इसके अलावा भगवान नारायण का स्नान भी गाय के शुद्ध दूध से ही होता है। शीतकाल में ये लोग माइग्रेशन वाले स्थलों पर रहते हैं, जबकि ग्रीष्मकाल में बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के बाद ये लोग धाम के निकटवर्ती गांवों में प्रवास करते हैं। शीतकाल के दौरान बदरीनाथ धाम में इस बार कम बर्फबारी हुई। परंतु कपाट खुलने के बाद बदरीनाथ धाम के निकटवर्ती चारागाह बर्फ से दब गए हैं। ऐसे में काश्तकारों के पास अपने मवेशियों को वापस लाने के अलावा कोई और चारा नहीं बचा है। अगर चारे के अभाव में पशुपालक अपने मवेशियों को वापस लाते हैं, तो इससे बदरी विशाल की पूजा के लिए भी दूध का संकट पैदा हो जाएगा। बामणी गांव की महिला पशुपालक विजया देवी मेहता का कहना है कि बदरीनाथ धाम के निकटवर्ती सारे चारागाह बर्फ से दबे हुए हैं। भंडारित चारा भी समाप्त होने वाला है। मौसम का यही मिजाज रहा तो मवेशियों को वापस लाना पड़ेगा।