सिस्टम की लेटलतीफी पर्यटन पर पड़ रही भारी
पडर नदी में स्थायी पुलों और रास्तों का निर्माण वर्ष 2013 में आई आपदा के बाद अधर में लटका है। 2017 सितंबर को छत्तीसगढ़ का वागीश पिडारी की तरफ गया वह आज तक नहीं लौट सका। वहीं जून 2019 में आठ पर्वतारोहियों की यहां बर्फ में दबकर मौत हुई।
घनश्याम जोशी, बागेश्वर
हिमालय दूर से जितना खूबसूरत है। उतना ही कठिन और साहसिक भी। पिडारी ग्लेशियर को लगभग हरवर्ष एक हजार से अधिक ट्रेकर जाते हैं। लेकिन उनकी एक चूक जिदगी पर भारी पड़ सकती है। पिडर नदी में स्थायी पुलों और रास्तों का निर्माण वर्ष 2013 में आई आपदा के बाद अधर में लटका है। 2017 सितंबर को छत्तीसगढ़ का वागीश पिडारी की तरफ गया, वह आज तक नहीं लौट सका। वहीं जून 2019 में आठ पर्वतारोहियों की यहां बर्फ में दबकर मौत हुई। पिडर घाटी में 2013 में आई आपदा ने तबाही मचाई। पुल, रास्ते आदि पूरी तरह तहस-नहस हो गए थे। आठ वर्ष बाद भी यहां रास्तों की स्थिति में सुधार नहीं हो सका है। पिडारी और कफनी को जोड़ने के लिए पिडर नदी पर स्थायी पुल का निर्माण भी अधर में लटका है। मौसम खराब होते ही ट्रेकरों की परेशानी बढ़ जाती है। गत दिनों हुई अतिवृष्टि के बाद पिडर नदी में द्वाली के समीप बने अस्थायी लकड़ी के पुल बहने से ट्रेकर पांच दिनों तक फंसे रहे। पांच सितंबर 2017 से लापता छत्तीसगढ़ के युवक वागीश सुंदरढूंगा में लापता हो गया था। उसका अब तक पता नहीं चल सका है। तब वह पिडारी ग्लेशियर जाना चाहता था, लेकिन पिडर नदी में पुल बारिश होने से बह गए थे। वह सुंदरढूंगा की तरफ बढ़ा। वागीश के जीजा प्रियंक पटेल और उसका चचेरा भाई तुपेश चंद्रा कई महीनों तक उसकी खोजबीन में जिला मुख्यालय पर बने रहे। लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। 2019 में नंदा देवी ईस्ट पर्वतारोहण के दौरान हिमस्लखन से आठ लोगों की मौत हो गई थी। यह दल इंडियन माउंटेनियरिग फाउंडेशन दिल्ली का था और 14 सदस्य शामिल थे। मरने वालों में छह विदेशियों के साथ एक देसी लाइजनिग आफिसर भी शामिल थे।
वर्ष 2013 की आपदा में पिडारी ग्लेशियर ट्रेकिग रूट का रास्ता नदी में समा गया था। चट्टान काटकर रास्ते का निर्माण किया गया। इसके लिए शासन से 24 लाख रुपये स्वीकृत हुए थे। करीब 300 मीटर रास्ता बना लिया गया है, जबकि 700 मीटर रास्ते का निर्माण अभी होना है। - एसके पांडेय, ईई, लोनिवि