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प्रकृति व पुरुष की एकता का प्रतीक है शिवलिंग

भारतीय संस्कृति में व्यक्ति ही नहीं ऋतु व महीनों को भी देव-तुल्य माना गया है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 26 Jul 2021 10:49 PM (IST)Updated: Mon, 26 Jul 2021 10:49 PM (IST)
प्रकृति व पुरुष की एकता का प्रतीक है शिवलिंग
प्रकृति व पुरुष की एकता का प्रतीक है शिवलिंग

जासं, बागेश्वर : भारतीय संस्कृति में व्यक्ति ही नहीं, ऋतु व महीनों को भी देव-तुल्य माना गया है। प्रत्येक माह को देवताओं से जोड़कर काल की सार्वभौमिकता को स्वीकारा गया है। वर्षाकाल के माह श्रावण को महाकाल भगवान शंकर के पूजन हेतु प्रशस्त माना गया है। शिवलिग व च्योतिíलंग के साथ ही पाíथव पूजन का विशेष महत्व है। पाíथवं तु कलौयुगे।

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इंटर कालेज के प्रवक्ता डा. गोपालकृष्ण जोशी ने बताया कि शिव का लिग स्वरूप प्रकृति व पुरुष की एकता का प्रतीक है। अलग-अलग इच्छाओं की पूíत के लिए भिन्न-भिन्न पदार्थों से भिन्न-भिन्न संख्या में पाíथव पूजन किया जाता है। पाíथव पूजन के लिए गौर, पीत, रक्त व कृष्ण वर्ण की मिट्टी प्रशस्त बताई गई है। सामान्य रूप से सर्वमनोकामना पूर्ण के लिए मिट्टी, दूर्वा, गुरुचि, हरिद्रा, गोबर व पारद निíमत 108 या 1100 पाíथवों का पूजन व अभिषेक किया जाता है। शक्ति, नंदी सहित शिव की अष्टमूíतयों का पूजन करें। भस्म, रुद्रांक्ष, बिल्बपत्र, रुद्रीपाठ विशेष है। प्रथम बार पाíथव पूजन उत्तरायण से आरंभ करें और शिवास भी देखने की परंपरा है। पुरुष ओम नम: शिवाय व माताएं ओम शिवाय नम: का जाप करें।

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शिव को भांग नहीं चढ़ता है

कतिपय भक्त भांग आदि चढ़ाने की बात करते हैं, जो उचित नहीं है। भगवान ने भांग नहीं संसार की रक्षा के लिए कालकूट जहर का पान किया था। जिसका भाव है जगत कल्याण हेतु आत्मोत्सर्ग के लिए तैयार रहें। शिवतत्व कल्याण का द्योतक है। जल, जीवन का आधार तत्व है। अत: कल्याण प्राप्ति के लिए शिव का जलभिषेक कर जलसंरक्षण के प्रति भारतीय ²ष्टिकोण प्रगट किया गया है।

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ऐसे करें पाíथव पूजन

-विद्या के लिए मिट्टी 1000

-रोगनाश के लिए गोबर-700

-संतान के लिए चावल-1500

-लक्ष्मी के लिए नवनीत यानी मक्खन के पार्थव पूजन किया जाता है।

मंत्र-नम: शिवाय साम्बाय, सगणाय स सूनवे। पुराण पुरुषाय, शंकराय नमो नम:।

-वर्जन-

नव विवाहिताओं को श्रावण माह के मंगलवार को गौरी पूजन सहित व्रत का विधान बताया गया है। इसे मंगला गौरी व्रत कहते हैं। नवविवाहिता को यह व्रत 5 वर्ष तक करना चाहिए।

-डा. गोपालकृष्ण जोशी, प्रवक्ता इंटर कॉलेल क्वैराली, बागेश्वर।


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