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शक्ति रूप में होती है मां कोट भ्रामरी की पूजा

चंद्रशेखर बड़सीला गरुड़ कत्यूर घाटी के मध्य में स्थापित भगवती का कोट भ्रामरी मंदिर जन-ज

By JagranEdited By: Published: Fri, 12 Apr 2019 11:13 PM (IST)Updated: Fri, 12 Apr 2019 11:13 PM (IST)
शक्ति रूप में होती है मां कोट भ्रामरी की पूजा
शक्ति रूप में होती है मां कोट भ्रामरी की पूजा

चंद्रशेखर बड़सीला, गरुड़:

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कत्यूर घाटी के मध्य में स्थापित भगवती का कोट भ्रामरी मंदिर जन-जन की आस्था का प्रतीक है। मां नन्दा-सुनंदा व भ्रामरी के इस मंदिर में वर्ष में दो बार विशाल मेला लगता है। चैत्र मास की शुक्ल अष्टमी को भ्रामरी देवी की पूजा अर्चना के साथ मेला लगता है। शनिवार को चैत्राष्टमी मेला आयोजित किया जाएगा।

कत्यूरी राजाओं के शासन करने के कारण ही गरुड़ क्षेत्र कत्यूर घाटी कहलाता है। इन्हीं कत्यूरी राजाओं ने कत्यूर घाटी के महत्वपूर्ण स्थानों को किले के रूप में स्थापित किया था। वर्तमान कोट मंदिर को भी किले का रूप दिया गया था। मंदिर की स्थापना के संबंध में कहा जाता है कि कत्यूर क्षेत्र में अरुण नामक दैत्य का बेहद आतंक था। उसी दौरान कत्यूरी राजा आसन्तिदेव व बासन्तिदेव कत्यूर को राजधानी बनाने के लिए यहां आए। दैत्य से पीड़ित जनता ने राजाओं से अपनी व्यथा कहीं। उनका अरुण दैत्य से भयंकर युद्ध हो गया। तब राजाओं ने भगवती मैया से इसका समाधान मांगा।

विधि विधान से पूजा अर्चना करने के बाद मैया भंवरे के रूप में प्रकट हुई तथा मैया ने अरुण दैत्य का वध कर दिया। तब कत्यूर के लोगों को अरुण दैत्य से मुक्ति मिली। मैया की इसी असीम अनुकंपा के कारण ही मैया की भंवर के रूप में पूजा होती है। मंदिर में कत्यूरी राजाओं की अधिष्ठात्री देवी भ्रामरी तथा चंदवंशावलियों द्वारा प्रतिष्ठापित नंदा देवी स्थापित की गई है। भ्रामरी रूप में देवी की पूजा अर्चना यहां पर मूíत के रूप में नहीं बल्कि शक्ति के रूप में की जाती है। जबकि नंदा के रूप में मूíत पूजन, डोला स्थापना व विसर्जन का प्रचलन है।

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