बागेश्वर में होल्यारों में होता था मुकाबला
जागरण संवाददाता बागेश्वर सरयू-गोमती नदी के संगम तट पर बसे बाबा बागनाथ की भूमि का अपना एक
जागरण संवाददाता, बागेश्वर: सरयू-गोमती नदी के संगम तट पर बसे बाबा बागनाथ की भूमि का अपना एक अलग ही इतिहास रहा है। होली के त्योहार का समापन भी संगम पर ही होता है। बसंत पंचमी से होली का आगाज होता है।
चतुर्थी के दिन पूर्व में सतराली यानि सातगांव व ताकुला के होल्यारों की यहां प्रतियोगिता होती थी। स्थानीय होल्यारों के साथ रातभर होलियां गाई जाती थी। चीर तथा वाद्य यंत्रों को छीनने की प्रथा थी। जिस गांव के होल्यार चीर छीन कर ले जाते थे, दूसरे साल चीर वापसी के लिए पुन: जंग होती थी। फाल्गुन एकादशी को चीर बंधन होता था। कहीं-कहीं अष्टमी को चीर बांधते थे। कई लोग आलम एकादशी के दिन व्रत भी रखते थे। इसी दिन भद्रा रहित काल में देवी-देवताओं में रंग डालकर दोबारा अपने कपड़ों में रंग छिड़कने हैं और गुलाल डालते हैं। छरड़ी तक रोज रंग और गुलाल की धूम रहती है। गाना, नृत्य दावत आदि समारोह होते थे। यह पर्व छह से सात दिन तक धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
सतराली तथा पचार की होलियां यहां प्रसिद्ध हैं। गांवों में भी बैठकें होती हैं। मिठाई व गुड़ वितरित किया जाता है। होलिकादहन के दूसरे दिन प्रतिपदा का छरड़ी मनाई जाती है। घर-घर में घूमकर होलिका मनाकर सायंकाल को रंग के कपड़े बदलते हैं। उसके बाद देव मंदिरों में विशाल भंडारा का आयोजन होता है। होली के दिन बना हलवा प्रसाद भंडारे को टीका भी कहा जाता है।
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छलड़ी 21 को
इस साल 21 को होली की छलेड़ी है। होल्यार होली की तैयारियों में जुट गए हैं। घरों में तरह-तरह के पकवान बनाए जा रहे हैं। खासकर गुजिया व चिप्स से होल्यारों का स्वागत होता है। होली पर्व को लेकर बच्चों व महिलाओं व युवाओं में काफी उत्साह है।