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आपातकाल की दास्तां सुनाकर भावुक हो जाते हैं बसंत

1975 में लगा आपातकाल काले अध्याय से कम नहीं था।

By JagranEdited By: Published: Fri, 24 Jun 2022 06:47 PM (IST)Updated: Fri, 24 Jun 2022 06:47 PM (IST)
आपातकाल की दास्तां सुनाकर भावुक हो जाते हैं बसंत
आपातकाल की दास्तां सुनाकर भावुक हो जाते हैं बसंत

आपातकाल की दास्तां सुनाकर भावुक हो जाते हैं बसंत

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घनश्याम जोशी, बागेश्वर

पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी के शासन के दौरान 1975 में लगा आपातकाल काले अध्याय से कम नहीं था। इस दौरान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचला गया। आपातकाल के दौरान पूरे देश में लोकतांत्रित तरीके से आंदोलन हुए। बागेश्वर में भी इसकी चिंगारी उपजी। लेकिन सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग भी हुआ। स्वतंत्रता आंदोलन की विरासत से निकले लोगों के आगे सरकार झुकी। आपातकाल के गवाह जिले के बसंत बल्लभ पांडे बने।

आपातकाल के दौरान जेल में रहे बसंत बल्लभ पांडे उस दौर के बारे में बताते हैं। कहते हैं कि लोकतंत्र की सही मयानों में तब हत्या हुई थी। 1975 में अल्मोड़ा जिले की बागेश्वर तहसील थी। तहसील मुख्यालय में पांच जुलाई 1975 को जनसंघ के नेताओं की बैठक चल रही थी। आपातकाल को लेकर चर्चा हो रही थी। कुछ देर बाद तत्कालीन उपजिलाधिकारी चनर राम व कलेक्टर मुकुल सनवाल का फरमान पहुंचा। तब जनसंघ के तेज तर्रार युवा नेता बसंत बल्लभ पांडे पुत्र दुर्गा दत्त पांडे को गिरफ्तार किया गया। उन पर डीआइएस और 17 क्रिमिनल ला एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज हुआ। उन्हें छह जुलाई 1975 को अल्मोड़ा जेल भेज दिया गया। जहां 20 अन्य लोगों के साथ रखा गया। वह दो वर्ष तक अल्मोड़ा जेल में रहे। 28 जनवरी 1977 को उन्हें रिहा किया गया।

रोटी में छिपाकर आते थे संदेश

बसंत बल्लभ पांडे ने बताया कि आपातकाल के दौरान बाहर की जानकारी नहीं मिल पा रही थी। तब उस समय एक युक्ति के जरिये उनके पास सूचनाओं का आदान-प्रदान होता था। तब अल्मोड़ा में जनसंघ के महामंत्री गोविंद सिंह बिष्ट हुआ करते थे। उनके लिए घर से रोटी सब्जी आती थी। रोटी के अंदर छिपाकर संदेश भी भेजा जाता था। जिससे बाहर की गतिविधियों की जानकारी मिल जाती थी। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में यह किसी काले अध्याय से कम नहीं है।

जेल में की भूख हड़ताल

आपातकाल के दौरान पकड़े गए लोगों को अल्मोड़ा में सामान्य कैदी की तरह ही रखा जाता था। उन्हें कीड़े लगे चावल और पानी वाली दाल मिलती थी। जब उनके साथ भी यही बर्ताव हुआ तो अन्य साथियों के साथ वह भूख हड़ताल पर बैठ गए। पांच दिन तक चली भूख हड़ताल के बाद उन्हें जीत मिली। उन्हें तब राजनीतिक कैदी का दर्जा भी मिला। उसके बाद प्रत्येक कैदी के लिए 16 रुपये दिए जाने लगे। भोजन भी अच्छा मिलने लगा।

1969 में जनसंघ से जुड़े पांडे

70 वर्षीय पांडे 1969 में जनसंघ से जुड़े। इसी दौरान वह सरस्वती शिशु मंदिर रुद्रपुर में आचार्य के रूप में कार्य करने लगे। 1982 तक वह आचार्य रहे। जब 1980 में भाजपा बनी तो वह भाजपा के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में कार्य करने लगे। वर्तमान में वह व्यवसाय करते हैं। उनका जनरल स्टोर और मिठाई की दुकान है। उनके दो पुत्र व दो बेटियां हैं।


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