67 वर्ष की नंदुली पैतृक कार्य से आत्मनिर्भर
बागेश्वर जिले के सूपी गांव की 67 साल की नंदुली देवी ने रिगाल से बने बर्तनों को बनाकर आत्मनिर्भर होने की सीख पहाड़ के अन्य लोगों को दे रही हैं।
घनश्याम जोशी, बागेश्वर
सूपी गांव की 67 साल की नंदुली देवी ने रिगाल से बने बर्तनों में महारथ हासिल की है। इसके लिए उन्होंने कोई प्रशिक्षण नहीं लिया है। बावजूद वह अपने परिवार की आíथकी निरंतर मजबूत करने में जुटी हुई हैं। रिगाल से बनी डलिया, मोहटे, सूपे, कलमदान और अन्य सामान को बनाने में उन्हें महारथ हासिल है। वह इस सामान को गांव के विक्रेताओं को देती हैं और वह बाजार से लेकर गांव-गांव तक फेरी लगाकर उसे बेचते हैं। रिगाल उनका पैतृक कार्य है। इसके अलावा होम स्टे भी चलाती हैं। कपकोट तहसील का सूपी गांव हिमालय की तलहटी पर बसा हुआ है। यहां से हिमालय के दर्शन होते हैं। नंदुली ने बताया कि वह प्रतिमाह करीब 15 हजार रुपये तक स्वरोजगार से आमदनी कर रही हैं। लाकडाउन में होमस्टे का काम प्रभावित हुआ। अब अनलाक होने के बाद कुछ लोग हिमालय की तरफ आने लगे हैं। वह कुमाऊं भट की चुरकानी, गहत की दाल, गडेरी की सब्जी, मडुवा की रोटी और चौलाई के लड्डू पर्यटकों को परोसती हैं।
पूर्व शिक्षक भगवत कोरंगा ने बताया कि नंदुली रिगाल से बर्तन बनाकर अपनी आजीविका चला रही हैं। उन्होंने पांच बेटियों की पढ़ाई के साथ ही उनका विवाह भी इस पैतृक धंधे से किया है। वर्तमान में उनकी बेटियां अच्छे घरों में हैं और नंदुली आत्मनिर्भर है। कहा कि यह काम युवाओं के लिए प्ररेणास्त्रोत हैं। कोरोना वायरस के संक्रमण के बाद घर लौटे युवा भी अब पैतृक कार्य को करने में जुट गए हैं। यह आत्मनिर्भर भारत की दिशा में अहम कदम साबित होगा।
..... वर्जन कीवी की खेती करने का भी निर्णय लिया है। स्थानीय अन्य महिलाओं को भी इसके लिए प्रेरित किया जा रहा है। अपनी बेटी के ससुराल हिमांचल प्रदेश से कीवी के पेड़ मंगा कर लगा भी दिए हैं। रिगाल से बने बर्तन उनका पैतृक काम है। युवाओं को भी स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया जा रहा है। -नंदुली देवी।