इस नदी को 25 सालों की कोशिश के बाद जीआइएस से मिलेगा पुनर्जन्म
उत्तराखंड की कोसी नदी को पुनर्जन्म मिलेगा। जीआइसी की मदद से नदी का पुनर्जन्म होगा।
रानीखेत, [दीप सिंह बोरा]: उत्तराखंड में बहने वाली गंगा की सहायक नदी कोसी को भौगोलिक सूचना तंत्र (जीआइएस) की मदद से पुनर्जन्म मिल सकेगा। उत्तराखंड सूचना विज्ञान केंद्र के निदेशक प्रो. जीवन सिंह रावत ने 25 वर्षों के सतत शोध के बाद नदी के 14 रिचार्ज जोन और 1820 सहायक बरसाती नालों की खोज की है। इन रिचार्ज जोन और बरसाती नालों को सक्रिय कर नदी को नया जीवन देने को खाका खींचा जा रहा है। यह पहली गैरहिमानी नदी होगी, जिसके उद्धार के लिए इस तरह की तकनीक का सहारा लिया जा रहा है।
प्रो. रावत बताते हैं कि विस्तृत स्थलीय सर्वेक्षण कर और ग्रामीणों से जुटाई गई जानकारी के आधार पर नदी का भौगोलिक सूचना तंत्र (जीआइएस) विकसित किया जा सका। इसमें नदी के 14 रिचार्ज जोन व 1820 बरसाती नाले खोजने में सफलता मिली है। इनमें से अधिकांश अब विलुप्त होने की स्थिति में हैं। नदी इन्हीं से आने वाले पानी पर निर्भर रही है।
बागेश्वर जिले के कौसानी के पास धारपानी से निकल यह अल्मोड़ा में कोशी घाटी का निर्माण करते हुए आगे बढ़ती है। नैनीताल जिले के रामनगर से होते हुए यह उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है और रामगंगा में मिल जाती है। उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर, रामपुर, मुरादाबाद जिलों में यह बड़े भूभाग को सिंचित करती आई है।
यह है कार्ययोजना
बकौल प्रो. रावत, गैरहिमानी कोसी को उसके उद्गम के आसपास के 14 रिचार्ज जोन से निकलने वाले 1820 बरसाती नालों से जोड़ कर फिर से रिचार्ज किया जा सकता है। इसका डाटाबेस तैयार है। सबसे पहले इन्हीं नालों को संरक्षित करना होगा। इन्हें यांत्रिक व जैविक विधि से रिचार्ज करना होगा ताकि ये भूमिगत जल भंडार से जुड़ सकें। इससे बरसाती पानी को भूगर्भ तक तक पहुंचाया जा सकेगा।
225 किमी बहती थी, 41 पर सिमटी
कोशी नदी उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की एक प्रमुख नदी है। कौसानी के निकट धारपानी धार से निकलने के बाद उत्तराखंड में इसकी 21 सहायक नदियां और 97 अन्य जलधार हैं। सहायक नालों के रूप में 1820 विलुप्त जल धाराएं भी खोज ली गई हैं। इन्हीं के बूते करीब 40 वर्ष पूर्व यह 225.6 किमी लंबी यात्रा करती थी। मगर स्रोतों व सरिताओं के दम तोड़ते जाने से अब उत्तराखंड में मात्र 41.5 किमी क्षेत्रफल में सिमट कर रह गई है।
कोसी जलागम की ऐसी ही 49 सहायक नदियां भी हैं, जो लगभग सूख चुकी हैं। इनके उद्गम स्थल, और अधिकांश प्रवाह क्षेत्र वन विभाग के अधीन हैं। जहां इसके संवर्धन-संरक्षण की पूरी संभावनाएं हैं। बता दें कि नेपाल से निकल कर बिहार में प्रलय मचाने वाली कोसी से इसका बस नाम ही मिलता है। उत्तराखंड में उथला, पथरीला और टूटा-फूटा प्रवाह क्षेत्र ही अब इसकी पहचान है।
उत्तराखंड सूचना विज्ञान केंद्र के निदेशक प्रो. जीवन सिंह रावत ने बताया कि 25 वर्षं के शोध के बाद हम कोसी नदी के विलुप्त हो चुके 14 रिचार्ज जोन और 1820 सहायक बरसाती नालों की खोज करने में सफल हुए हैं। इन रिचार्ज जोन और नालों को सक्रिय कर नदी को नया जीवन देने का प्रयास किया जाएगा।
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